स्टेट प्रेस क्लब के संवाद कार्यक्रम में कहा कार्टून कोना ढब्बू जी के जनक श्री आबिद सुरती ने

इंदौर,31 जुलाई 2024

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“वो दौर और था जब कार्टूनिस्ट राजनेताओं के प्रिय हुआ करते थे क्योंकि राजनेता उन्हें सच दिखाने वाला आईना मानते थे। आज के दौर में कड़वा सच सुनने की सहनशक्ति नेताओं में नहीं है इसलिए कार्टून बनाना आसान नहीं रहा। आज नेताओं की तारीफ़ की बजाय सरकारी तंत्र का दमन कार्टूनिस्टों को मिल सकता है।” यह बात कभी देश की प्रमुख पत्रिका धर्मयुग में अन्तिम पृष्ठों पर कई दशकों तक प्रकाशित बेहद लोकप्रिय कार्टून कोना ढब्बू जी के माध्यम से देश का प्यार पाने वाले वरिष्ठ कार्टूनिस्ट आबिद सुरती ने स्टेट प्रेस क्लब, मध्यप्रदेश द्वारा आयोजित संवाद कार्यक्रम में पत्रकारों – कार्टूनिस्टों से चर्चा करते हुए व्यक्त किए। 1935 में जन्में श्री सुरती ने पुराने समय को याद करते हुए कहा कि 1947 में नेहरूजी – सरदार पटेल कार्टूनिस्टों के बड़े फेवरेट थे। ये नेता कार्टूनिस्ट शंकर को अपने गाइड की तरह मानते थे और कार्टूनिस्टों के प्रति कभी दुर्भावना नहीं रखते थे। इंदिरा जी की आर.के. लक्ष्मण जी से उनकी बहुत ज़्यादा लंबी नाक बनाने को लेकर मीठी नोंक – झोंक चला करती थी। लेकिन आज का दौर ऐसा है कि सच बोलने पर कार्टूनिस्ट और मीडिया हाउस दोनों मुसीबत में डाल दिए जाते हैं। ऐसे समय में कौन सच बोलने की हिम्मत करेगा और सच बोले बिना कार्टून बनाया नहीं जा सकता।

देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान से मुंबई आने के बाद बेहद मुफलिसी के दिनों में अपने साथी छोटे बच्चों के साथ ट्रेन के यात्रियों से कुछ खाने का सामान पाने की लालसा में भटक रहे बाल आबिद को एक अंग्रेज द्वारा फेंकी गई मिकी माउस की कॉमिक्स के कुछ पृष्ठ हाथ लगे और उन्हें लगा कि ऐसी आकृतियां तो वे भी बना सकते हैं। यहां से शुरू हुआ उनका र्काटून का सफ़र। बचपन में ही धर्मयुग में अंग्रेज सम्पादक के द्वारा पहला कार्टून छपने के साथ परवान चढ़ा। बाद में ढब्बू जी की लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि ओशो रजनीश तक ढब्बूजी के हास्य में अपनी आध्यात्मिक बातें जोड़कर अपने प्रवचनों में शामिल करने लगे। तीस सालों तक लगातार अंतिम पृष्ठों पर प्रकाशित ढब्बू जी के कारण लोग धर्मयुग को पीछे के पृष्ठों से खोलने लगे। इस बात की मीठी शिकायत स्वयं श्री धर्मवीर भारती ने अटल बिहारी बाजपेयी जी से की थी। श्री सुरती ने देश के कॉमिक सुपर हीरो बहादुर की कई कॉमिक्स भी बनाईं तथा अमेरिका में एक समय बहादुर कॉमिक्स क्लब भी खुले जहां ये कॉमिक्स बहुत ही ऊंचे दाम मिल जाया करते थे। अपनी पेंटिंग प्रदर्शनियों की रोचक दास्तान सुनाते हुए उन्होंने कहा कि नकारात्मक माहौल में पेंटिंग बनाने से उनकी पहली पांच पेंटिंग की एक्जीबिशन इतनी फ्लॉप रहीं कि वे कर्जे में डूब गए और सब कुछ छोड़कर गांव जाने की तैयारी कर ली थी, तभी फोक आर्ट में मिरार कोलाज का उपयोग करने का उनका प्रयोग सफल रहा और उसके बाद उनकी कई प्रदर्शनियाँ देश – विदेश में सफलतापूर्वक हुईं।

पानी बचाने के अपने यूएनओ द्वारा प्रशंसित अभियान के संदर्भ में उन्होंने बताया कि बचपन में गरीबी में रहने के दौरान उन्होंने एक – एक बूंद पानी के लिए खूब लड़ाइयां देखीं और तब पानी का मोल पहचाना। बाद में देखा कि मित्रों के यहां कई महीनों तक नल टपकते रहते और धीरे धीरे पानी का अपव्यय होता रहता लेकिन कोई ठीक नहीं कराता क्योंकि छोटे काम के लिए प्लम्बर आने को तैयार नहीं होते। तब उन्होंने स्वयं प्लम्बर को ले जाकर टपकते हुए नलों को ठीक करने का काम शुरू किया जो धीरे धीरे अभियान में तब्दील हो गया। उनका एनजीओ आज जल संरक्षण की दिशा में बड़ा काम कर रहा है। उन्होंने लेखक बतौर अपनी यात्रा की भी रोचक बातें बताईं।