शबेमालवा, शरदपूर्णिमा और चपड़ाचपड़ा

शबेमालवा, शरदपूर्णिमा और चपड़ा

इंदौर, 28 अक्टूबर 2023

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अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। इस बार यह पूर्णिमा , 28 अक्टूबर यानी आज है। इसे रास पूर्णिमा और कोजागिरी भी कहते हैं। पूरे साल में केवल इसी दिन चंद्रमा सोलह कलाओं का होता है। पुराणों के हिसाब से श्री कृष्ण ने इसी दिन महारास रचाया था इसलिए इसे रास पूर्णिमा भी कहते हैं और एक और संयोग इस दिन से जुड़ा है और वो है देवी महालक्ष्मी का जन्मदिन। महालक्ष्मी का जन्मदिन और महारास से जुड़ा होने के कारण इस दिन को धन और प्रेम के पर्व के रूप में जाना जाता है।

अब बात शबे मालवा की – सुबहो बनारस शामे अवध और शबे मालवा के कथ्य से जुड़ी मालवा की रातें कभी वर्ष भर ठंडी हुआ करती थीं और रौनक से भरपूर भी लेकिन दशक बीतते गए और सीमेंट के जंगल में तब्दील शहर और घटते पेड़ों से गर्माता मालवा का पठार अब उतना ठंडा तो नहीं रहा पर अब भी इसकी रातों में ठंडी तासीर बाकी है। इसी मालवा में जब ठंड शरद पूर्णिमा पर अपनी पहली दस्तक देने आती है तो एक परंपरा थी #चपड़ा खाने की।

ये पूरी दुनिया में सिर्फ इंदौर में ही बनता है और सिर्फ एक दिन ही

एक तार की चाशनी से भी कड़क चाशनी बनाकर उसमें पिसी काली मिर्च डालकर गर्म-गर्म चाशनी को उतार कर बेलते हैं और फिर मटके की तिपाई पर धीरे धीरे डालते हैं और वो शंकु आकार में गिरती हुई एक तिकोनी टोपीनुमा आकृति के रूप में कड़क होकर सूख जाती है, जिसे चपड़ा कहते हैं और इसे आयुर्वेद के हिसाब से खाया जाता है क्योंकि ये कड़क चाशनी और काली मिर्च के टुकड़े जब चूसे जाते हैं तो ऋतु परिवर्तन में जमा हुए कफ को पिघलाते हैं और उसका शमन करते हैं। ये दमा और श्वास के मरीजों के लिए भी बहुत फायदेमंद है।

पिछले वर्ष स्वर्गवासी हुए पिताजी को याद करते चपड़े की बात चली (क्योंकि वो हमेशा खिलाते थे) और  छोटा पुत्र आराध्य बोला चलो पापा चपड़ा लेने। चपड़े की तलाश में पिपली बाजार,बजाज खाना, इतवारिया हम दोनों पहुंचे लेकिन कहीं नहीं दिखा। धीरे से पुत्र ने ज्ञान दिया- #गूगल पर देख लो पापा, मुझे हंसते हुए समझाना पड़ा कि ये #ज्ञान गूगल पर नहीं मिलेगा।

आखिर तलाश पूरी हुई लोहार पट्टी के मुहाने मल्हारगंज के टोरी कॉर्नर पर जहाँ दो ठेलों पर चपड़ा विक्रय हो रहा था। लाखों वॉट की रोशनी में चुंधियाते कानफोड़ू डीजे पर थिरकते गरबे के आयोजक और बाजारवाद की #संस्कृति के पहरुए अखबार शायद चपड़े पर नहीं लिखेंगे क्योंकि इसका #बाजार सिमट गया है। पुराने शहर के लोग #पॉश कॉलोनियों के बंगलों में #शिफ्ट होकर अपनी जड़ों से कट गए हैं और ये मालवा का चपड़ा भी किसी दिन वैसे ही विलुप्त हो जाएगा, जैसे मेरे शहर के सीतलामाता और मालगंज की रौनक।

हो सकता है किसी दिन कोई बहुराष्ट्रीय कंपनी की #सिंगलयूज़प्लास्टिक की आकर्षक पैकिंग या खाकी लिफाफे पर छपे ऑर्गेनिक के मोहपाश में बंधे पतली सुतली जैसे स्टार्टअप के द्वारा ये मार्केट में आ जाएँ तो शरद पूनम का चपड़ा भी मालवा में किसी को प्रेम और किसी को धन देकर उपकृत कर दे।

संस्कृति की बहार पुरातन जमावटों और झरोखों वाले धीमे शहरों में ही बसती है साहब! किसी स्मार्ट शहर की तेज गति स्मार्ट सड़क पर नहीं।

डॉ.अवनीश जैन

(पोस्ट लिखने वाले अवनीश जैन एक वास्तु कंसलटेंट है।)

छायाचित्र:आराध्य जैन

By Jitendra Singh Yadav

जितेंद्र सिंह यादव वरिष्ठ पत्रकार, आरटीआई कार्यकर्ता और राजनीतिक विश्लेषक 15+ वर्षों का पत्रकारिता अनुभव, यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (UNI) से जुड़े। स्वतंत्र विश्लेषक, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर गहरी पकड़। Save Journalism Foundation व इंदौर वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन के संस्थापक। Indore Varta यूट्यूब चैनल और NewsO2.com से जुड़े। 📌 निष्पक्ष पत्रकारिता व सामाजिक सरोकारों के लिए समर्पित।