प्रधानमंत्री मोदी की एक दशक की कसौटी !

1 फरवरी को वित्तीय मंत्री करेंगी अंतरिम बजट पेश

बजट में क्या आम जन की  होगी बात ?

कपड़ा, मकान और खान पान, शिक्षा , स्वास्थ्य में क्या होगा खास ?

इंदौर

1 फरवरी 2024 को देश की वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण अंतरिम बजट पेश करेंगी। चूंकि कुछ महीने के बाद ही लोक सभा  चुनाव होने हैं । लिहाजा संभावना है कि अन्तरिम बजट छोटा ओर लोक लुभावना होगा । मौजूदा  सरकार से बजट में आम नागरिकों से लेकर सरकारी कर्मचारियों, विध्यार्थियों, महिलाओं, नौकरी पेशा, उधयोगपतियों मसलन सभी वर्गों  का ध्यान रखे जाने की उम्मीद है । लेकिन देखना होगा कि बढ़ती महंगाई से क्या सरकार आम जन को राहत दे पाएगी ? या बेरोजगारों युवाओं के लिए नौकरी के अवसर पैदा होंगे ? या टैक्स से नौकरी पेशाओं को मिलेगी राहत ?  ग्रहणियों के बजट का क्या बन पाएगा संतुलन ? देखिये क्या कहते हैं हर वर्ग, हर क्षेत्र के लोग:-

टैक्स पेयर्स को मिले लाभ

पुणे में एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने कहा कि बजट में टैक्स पेयर्स को राहत चाहती हैं। वे बताती हैं कि टैक्स पेयर्स को लाभ मिले जैसे टोल टैक्स या अन्य जगहों पर राहत मिलनी चाहिए। वे बताती हैं कि उनके वेतन का 30 प्रतिशत हिस्सा तो टैक्स भरने में चला जाता है। अमेरिका की तर्ज पर भारत में भी बेनीफिट्स मिलना चाहिए । टैक्स पेयर्स को एक बेनीफिट कार्ड इशू किया जा सकता है। अमेरिका में टैक्स भरने पर उसी अनुपात में ओल्ड पेंशन का प्रावधान है। हमारे भारत में टैक्स पेयर को कोई भी सुविधा नहीं मिलती है।

आयकर स्लैब कम हो

बैंगलोर में कार्यरत आईटी प्रोफेशनल दिनेश पाराशर बताते हैं कि सरकार को आयकर स्लैब कम किया जाना चाहिए क्योंकि कर कटौती बहुत अधिक है। दूसरा घरेलू उत्पादों पर जीएसटी  को फिर से परिभाषित किया जाना चाहिए। रसोई गैस और पेट्रोलियम उत्पादों की दरें भी कम होना चाहिए। .विमानन क्षेत्र पर एफडीआई प्रतिशत बढ़ाया जाना चाहिए ताकि उड़ानें थोड़ी सस्ती हों। एफडी और पीपीएफ पर ब्याज दर बढ़ाने की जरूरत है।

मोबाइल, लैपटॉप हों सस्ते, मूक बधिरों को होगा फायदा

मूक बधिरों के लिए लंबे समय से संघर्षरत सामाजिक कार्यकर्ता ज्ञानेन्द्र पुरोहित कहते हैं सरकार को इलेक्ट्रोनिक गैजेट्स जैसे मोबाइल फोन, लैपटॉप सस्ते करना चाहिए। मूक बधिर दिव्यांगों के लिए तकनीक बहुत फायदेमंद साबित हो रही है। ऑनलाइन सेवा जहां उनकी शिक्षा में मददगार है वहीं वीडियो काल के माध्यम से सांकेतिक भाषा में वे अपनी बात कह सकते हैं।

सीनियर सिटीजन को मिले लाभ

बैंक से रिटायर्ड अधिकारी आलोक खरे कहते हैं सरकार का टैक्स कलेक्शन इस बार काफी अच्छा हुआ है। इसलिए इन्कम टैक्स छूट की सीमा पर सरकार को विचार करना चाहिए। खास तौर पर सीनियर सिटीजन की एग्जेंप्शन लिमिट नॉर्मल लिमिट से 40-50 हजार अधिक है, इसे बढ़ाना चाहिए, क्योंकि उनके मेडिकल और अन्य खर्चे अधिक होते हैं। बचत को इनसेंटिव टैक्स के मिलने चाहिए। ये काफी कम है। 80 सी, 80 बी इसमें बड़ोत्री करना चाहिए। सेविंग में पैसा लगाएंगे तो देश के ही काम आएगा।

कृषि आर्थिक व्यवस्था की रीढ़ लेकिन वही है विकास से अछूती

युवा किसान सेना के रविन्द्र चौधरी कहते हैं कि बजट में सरकार को कृषि उत्पादों, बीजों को सस्ता करने के साथ सहज उपलब्ध करवाना चाहिए। साथ ही किसानों को एमएसपी का लाभ मिलना चाहिए जो नहीं मिल रहा है। सोयाबीन की कीमतें भी गिर गई हैं। देश में सबसे पावरफुल विभाग कृषि मंत्रालय होना चाहिए लेकिन कृषि मंत्री लूप लाइन में रहते हैं। मप्र चुनाव के बाद कृषि मंत्री का अता-पता नहीं है। कृषि आर्थिक व्यवस्था की रीढ़ लेकिन वही  विकास से अछूती है।

न शिक्षा की न रोजगार की बात, नहीं है कोई उम्मीद बजट से

बेरोजगार युवाओं के आंदोलन के प्रतिनिधियों में शामिल और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे सुरेन्द्र यादव बताते हैं कि बजट तो हर साल आता है लेकिन युवाओं के लिए न शिक्षा की बात होती है न रोजगार की । नीतियाँ कागजों में बनती हैं, धरातल में उतरती नहीं है। हम सबके जीवन में कोई उन्नति, सकारात्मक परिवर्तन नहीं है तो हम कहाँ से कहेंगे विकास हो रहा है? आज भी शिक्षा और स्वास्थ्य का बजट सबसे कम है। लंबे अरसे से हम युवा बेरोजगार संघर्षरत हैं लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं है।  

श्रमिकों के न्यूनतम वेतनमान में वृद्धि हो

एक फार्मासीयूटिकल कंपनी में यूनियन लीडर मनोहर सालुंके कहते हैं सरकार श्रमिकों का ही ध्यान नहीं रखती है। ये वर्ग विकास से अछूता है। सरकार को चाहिए कि श्रमिकों के न्यूनतम वेतनमान में वृद्धि करे ताकि उनकी आर्थिक स्थिति सुधरे। इतनी महंगाई में घर खर्च चलाना बहुत कठिन है। बच्चों की शिक्षा देना और भी कठिन हो रहा है। सरकार को श्रमिकों और उनके और परिवार के लिए कल्याणकारी योजनाएँ लाना चाहिए।

ग्रेचुएटी, डीए, पीएफ , पेंशन के मामलों का हो निराकरण

अखिल भारतीय विश्वविध्यालय कर्मचारी महासंघ के सचिव सोहेल परवेज़ कहते हैं कि कर्मचारियों की ग्रेचुएटी, डीए, पीएफ, पेंशन के मामले अटके हैं, उनका निराकरण किया जाए। काम के घंटों के हिसाब से मानदेय देने से बेहतर सभी के लिए समान प्रणाली लागू की जाये। सातवाँ वेतनमान लागू हो। सप्ताह में 5 दिन काम की नीति भी ठीक नहीं है। इससे काम प्रभावित होता है। साथ ही यूनिवर्सिटी में इवेंट्स कम करके शिक्षा पर अधिक फोकस करना चाहिए जो कर्मचारी, अधिकारी और छात्रों के हित में कारगर कदम होगा।

घरेलू उपयोग की वस्तुओं के दाम हों कम

गृहणी एकता यादव और नेहा श्रेयांश जैन कहती हैं घरेलू उपयोग में आने वाली सभी वस्तुओं के दामों में आग लगी   हुई है। रसोई गैस सिलेंडर, दालों के दाम, सब्जियों के दाम कम होना चाहिए। रोजमर्रा में प्रयोग होने वाले पेट्रोल डीजल के दाम कम होने चाहिए। स्कूल की फीस कम होना चाहिए।

हेल्थ सेक्टर का बजट बढ़ाया जाए

इंदौर की चोईथराम हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के डिप्युटी डायरेक्टर मेडिकल सर्विसेज डॉ अमित भट्ट कहते हैं सरकार को हेल्थ का बजट बढ़ाने की सख्त जरूरत है। प्राइवेट हेल्थ सेक्टर को बूस्ट करते हुए उन्हें भी सब्सिडी देना चाहिए।  मेडिकल उपकरणों पर हेवी ड्यूटी हटाकर उनके दाम कम करना चाहिए ताकि खरीदी आसान हो। उपकरण सस्ते होंगे तो इलाज भी सस्ता होगा।

सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर हों, स्वास्थ्य अधिकार का बने कानून

स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता अमूल्य निधि कहते हैं केंद्र सरकार का फोकस स्वास्थ्य सेवाओं को निजी हाथों को सौंप कर बीमा आधारित आयुष्मान भारत योजना के जरिए चुनिंदा लोगों को स्वास्थ्य सेवा का लाभ देना  चाहती हैं जबकि यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज की जगह यूनिवर्सल हेल्थ केयर और स्वास्थ्य सेवा सभी के लिए सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था के जरिए पहुंचाया जाना चाहिए। जीडीपी का 5 प्रतिशत स्वास्थ्य में खर्चा करना चाहिए और पीपीपी मॉडल और ठेका आधारित सेवा को खत्म कर ढांचागत सुधार कर सरकारी सेवा को मजबूत कर सभी को स्वास्थ्य सेवा मिले, ये आज की जरूरत है और स्वास्थ्य का अधिकार  कानून बनाने की जरूरत है। इस बजट से जनता की उम्मीद है यह बजट सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूती देने वाला हो और सरकार से हमारी मांग होगी कि स्वास्थ्य सेवाओं में सभी प्रकार के निजीकरण को बंद करे और बीमा आधारित सेवाओं के स्थान पर हमारे सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों को मजबूत करे और वहाँ पर स्वास्थ्य केंद्र के अनुरूप सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध हों। साथ ही सरकार से यह भी मांग है कि स्वास्थ्य सेवाओं में सभी प्रकार से निजी सार्वजनिक भागीदारी को बंद करे और इस प्रकार से ली जा रही सेवाओं जैसे कि विभिन्न प्रकार कि जाँचें, ऑपरेशन, सप्लाई आदि सार्वजनिक संस्थान से हो। सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों और सेवाओं को मजबूत करने के लिए बजट आवंटन में पर्याप्त वृद्धि की जाए और यह वृद्धि सकल घरेलू उत्पाद के कम से कम 5% तक लाने की दिशा में हो। भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र में रिसर्च एंड डिवेलपमेंट के लिए पर्याप्त संसाधन का आवंटन होना चाहिए।

By Neha Jain

नेहा जैन मध्यप्रदेश की जानी-मानी पत्रकार है। समाचार एजेंसी यूएनआई, हिंदुस्तान टाइम्स में लंबे समय सेवाएं दी है। सुश्री जैन इंदौर से प्रकाशित दैनिक पीपुल्स समाचार की संपादक रही है। इनकी कोविड-19 महामारी के दौरान की गई रिपोर्ट को देश और दुनिया ने सराहा। अपनी बेबाकी और तीखे सवालों के लिए वे विख्यात है। 

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