मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: अधिक दिव्यांगता रखने वालों को योग्यता के आधार पर नौकरी में प्राथमिकता
इंदौर, 05 मार्च 2025 – मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने विकलांगों की सरकारी भर्ती प्रक्रिया में अनियमितताओं को देखते हुए बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने 26 जुलाई 2024, 6 अगस्त 2024 और 21 अगस्त 2024 को जारी भर्ती विज्ञप्तियों को रद्द कर दिया और सरकार को चार माह के भीतर नई भर्ती प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया है।
क्या है मामला?
दरअसल कौशल विकास विभाग ने चतुर्थ श्रेणी के 30 पदों के लिए विज्ञापन जारी किया था, जिसमें 40 प्रतिशत दिव्यांगता रखने वाले लोगों को वरीयता दी गई थी। इसी तरह नगर पालिक कन्नोद और जावरा में भी भर्ती निकली थी। इन भर्तियों के खिलाफ विभिन्न याचिकाओं में आरोप लगाया गया था कि भर्ती प्रक्रिया में अत्यधिक विकलांगता वाले उम्मीदवारों को वरीयता नहीं दी गई, जो कि विकलांगता अधिकार अधिनियम, 2016 और सरकारी सर्कुलर 3 जुलाई 2018 के नियमों का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ताओं की वकील शन्नो शगुफ्ता खान ने तर्क दिया कि चयनित उम्मीदवारों की विकलांगता 45% से 75% तक थी, जबकि याचिकाकर्ताओं में कुछ 92.5% से 100% विकलांगता वाले थे। बावजूद इसके, कम विकलांगता वाले उम्मीदवारों को नौकरी दी गई। यदि यही प्रक्रिया रही तो अधिक विकलांगता वाले पात्र उम्मीदवारों को कभी अवसर नहीं मिल सकेगा।
कोर्ट का फैसला
न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर की एकल पीठ ने माना कि भर्ती प्रक्रिया में विकलांगता प्रतिशत को प्राथमिकता नहीं दी गई, जिससे पूरी चयन प्रक्रिया पक्षपातपूर्ण हो गई।
अदालत ने सरकार की ओर से दिए गए तर्कों को खारिज कर दिया और सभी नियुक्तियों को रद्द कर दिया।
नई भर्ती विज्ञप्ति जारी करने का आदेश दिया, जिसमें 3 जुलाई 2018 के सर्कुलर का पूर्ण पालन किया जाए।
क्यों अहम है यह फैसला?
यह फैसला विकलांग उम्मीदवारों के लिए एक बड़ी जीत है, क्योंकि इसमें न्यायालय ने विकलांगता प्रतिशत के आधार पर प्राथमिकता देने के सिद्धांत को मजबूती से लागू किया।
सरकार को अब चार माह के भीतर नई भर्ती प्रक्रिया शुरू करनी होगी, जिससे योग्य और अधिक विकलांग उम्मीदवारों को न्याय मिल सके।