भोपाल, 5 मार्च: मध्यप्रदेश लोक शिक्षण संचालनालय ने प्रदेश के सभी सरकारी और निजी स्कूलों में शारीरिक दंड (Corporal Punishment) पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया है। आदेश में स्पष्ट किया गया है कि यदि किसी शिक्षक या विद्यालय द्वारा किसी छात्र को शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है, तो तत्काल अनुशासनात्मक और कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
नियमों का उल्लंघन होगा दंडनीय अपराध
लोक शिक्षण संचालनालय ने अपने आदेश में निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 की धारा 17(1) और 17(2) का उल्लेख करते हुए कहा कि शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना पूर्णतः प्रतिबंधित है और इसका उल्लंघन करने पर यह दंडनीय अपराध माना जाएगा। इसके अलावा, भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 323 के तहत भी शारीरिक दंड प्रतिबंधित है।
जिलों में होगी सख्त निगरानी
प्रदेश के सभी जिलों के जिला शिक्षा अधिकारियों (DEO) को निर्देश दिए गए हैं कि वे अपने अधीनस्थ सभी सरकारी और निजी शिक्षण संस्थानों में शारीरिक दंड के मामलों पर सख्त निगरानी रखें। यदि किसी भी स्कूल में शारीरिक दंड का मामला सामने आता है तो शिक्षक और स्कूल प्रबंधन के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।
इंदौर के निजी स्कूल में छात्रों को टर्मिनेट करने पर बाल आयोग का संज्ञान
इसी बीच, इंदौर के एक प्रतिष्ठित निजी स्कूल में 14 वर्षीय छात्रों को साइबर अपराध से जुड़े एक मामले में स्कूल से टर्मिनेट कर दिया गया था। स्कूल प्रबंधन ने इन छात्रों के विद्यालय में प्रवेश पर रोक लगाकर उन्हें निष्कासित कर दिया। इस घटना पर मध्यप्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने संज्ञान लिया है और इस मामले की जांच इंदौर जिला शिक्षा अधिकारी कर रही हैं।
क्या कहता है जेजे एक्ट की धारा 25?
जुवेनाइल जस्टिस (JJ) एक्ट की धारा 25 स्पष्ट रूप से कहती है कि कोई भी बच्चा, जिसे किसी अपराध में शामिल होने का आरोपी बनाया गया हो, उसे शिक्षा के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। किसी भी विद्यालय या संस्थान द्वारा ऐसे बच्चों को निष्कासित करना कानून का उल्लंघन माना जाता है। ऐसे मामलों में बाल अधिकार आयोग और जिला शिक्षा अधिकारी को जांच कर उचित कार्यवाही करनी होती है।
बाल अधिकार कार्यकर्ताओं और अभिभावकों की प्रतिक्रिया
बाल अधिकार कार्यकर्ताओं का मानना है कि शारीरिक दंड और अनुशासन के नाम पर छात्रों को प्रताड़ित करना उनके मानसिक और शैक्षणिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। वहीं, इंदौर में हुए निष्कासन प्रकरण को लेकर अभिभावकों में भी रोष है। वे मांग कर रहे हैं कि विद्यालय प्रशासन के इस फैसले पर पुनर्विचार किया जाए और छात्रों को शिक्षा के अधिकार से वंचित न किया जाए।
निष्कर्ष
मध्यप्रदेश सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम शिक्षा प्रणाली में छात्रों की सुरक्षा और मानसिक विकास को सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। अब देखना यह होगा कि आदेश का प्रभावी क्रियान्वयन किस हद तक किया जाता है और क्या स्कूल प्रशासन इसे गंभीरता से लेता है या नहीं।