किराया नहीं देने वाले किराएदारों पर हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि कोई भी किराएदार बिना किराया दिए मकान में नहीं रह सकता। न्यायमूर्ति द्वारका धीश बंसल की एकलपीठ ने 43 वर्षों से चले आ रहे एक विवाद में मकान मालिक के पक्ष में फैसला सुनाया और किराएदार को दो महीने के भीतर मकान खाली करने के निर्देश दिए।
खंडवा के राजपुरा मोहल्ले में कबीर खान और शाबिर अहमद ने 1999 में हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। उनका दावा था कि किराएदार शेख हबीब 1982 से मकान में रह रहे थे, लेकिन कभी किराया नहीं दिया। निचली अदालतों ने पहले उनकी याचिकाएं खारिज कर दी थीं, लेकिन हाईकोर्ट ने साफ कर दिया कि मकान मालिक को किराया न मिलने पर संपत्ति खाली कराने का पूरा अधिकार है।
वन संरक्षण को लेकर सरकार को हाईकोर्ट की फटकार
प्रदेश में अवैध रूप से हो रही पेड़ों की कटाई और लकड़ी के अवैध परिवहन को लेकर हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है। न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति विनय सराफ की खंडपीठ ने जबलपुर निवासी विवेक कुमार शर्मा और नीमच के आनंद मानावत द्वारा दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया।
याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि 2015 में मप्र ट्रांजिट (वन उत्पाद) नियमों में संशोधन कर 53 प्रजातियों के पेड़ों के परिवहन पर ट्रांजिट पास की अनिवार्यता खत्म कर दी गई थी, जिससे अवैध कटाई बढ़ गई। हाईकोर्ट की फुल बेंच ने पहले ही निर्देश दिया था कि बिना ट्रांजिट पास के परिवहन न हो, लेकिन सरकार की कार्रवाई संतोषजनक नहीं पाई गई। अगली सुनवाई 1 अप्रैल को होगी।
छतरपुर में बिना अधिग्रहण निजी भूमि पर सरकारी भवन निर्माण, कलेक्टर से मांगा जवाब
छतरपुर जिले के बड़ा मलेहरा में कोर्ट बिल्डिंग का एक हिस्सा निजी भूमि पर बनाए जाने के मामले में हाईकोर्ट ने वहां के कलेक्टर से शपथपत्र मांगा है। न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि “कलेक्टर जिले का राजा होता है, उसे भी पता होना चाहिए कि उसके अधीनस्थ अधिकारी क्या कर रहे हैं।”
यह मामला ग्राम बक्सवाहा निवासी रामवती कुसमैया और अन्य ने दायर किया था। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि उनकी 0.012 हेक्टेयर भूमि पर बिना अधिग्रहण के वेंकट कंस्ट्रक्शन कंपनी ने कोर्ट बिल्डिंग का निर्माण शुरू कर दिया। उन्होंने बताया कि न तो कोई सीमांकन हुआ और न ही उन्हें कोई नोटिस मिला। अब अदालत ने कलेक्टर को 12 मार्च तक जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं, अगली सुनवाई 13 मार्च को होगी।
एवरेडी कंपनी की याचिका की सुनवाई से न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल ने खुद को अलग किया
भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से जुड़े एक मामले में हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है। अब यह मामला 27 मार्च को किसी अन्य बेंच में सुना जाएगा।
एवरेडी इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने 2007 में यह याचिका दायर कर लेबर कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें 21 कर्मचारियों को बर्खास्तगी के बाद वेतन और पुनः बहाली के निर्देश दिए गए थे। कंपनी का दावा है कि 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के बाद फैक्ट्री बंद हो गई थी, लेकिन लेबर कोर्ट ने कर्मचारियों के पक्ष में फैसला सुनाया था।
ट्रेन में दिव्यांग यात्री के साथ अभद्रता, डीआरएम के खिलाफ जमानती वारंट जारी
हाईकोर्ट ने पश्चिम मध्य रेलवे के डीआरएम के खिलाफ 500 रुपये का जमानती वारंट जारी किया है। यह मामला एक दिव्यांग यात्री अदीबुल हसनैन के साथ टीटीई और जीआरपी कर्मियों द्वारा की गई कथित बदसलूकी से जुड़ा है।
याचिकाकर्ता का आरोप है कि 7 अक्टूबर 2017 को गोदान एक्सप्रेस में यात्रा के दौरान टीटी कैलाश कुमार पचौरी ने शराब के नशे में टिकट चेकिंग के बहाने उनके साथ दुर्व्यवहार किया। बाद में इटारसी स्टेशन पर जीआरपी ने उन्हें हिरासत में ले लिया और रेलवे कोर्ट में मामला दर्ज कर दिया। हालांकि, विभागीय जांच में टीटीई दोषी पाए गए।
हाईकोर्ट ने डीआरएम को पहले ही नोटिस जारी किया था, लेकिन उनके अनुपस्थित रहने पर यह कार्रवाई की गई। अगली सुनवाई 19 मार्च को होगी।
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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल के दिनों में कई अहम मामलों पर सख्त रुख अपनाया है, जिससे नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा और सरकारी जवाबदेही तय करने की दिशा में महत्वपूर्ण संदेश गया है। चाहे किराएदारों से जुड़ा मामला हो, अवैध वृक्ष कटाई, सरकारी भूमि अधिग्रहण विवाद, कर्मचारियों के हक की लड़ाई हो या दिव्यांगों के अधिकारों से जुड़ा विषय—इन सभी मामलों में हाईकोर्ट के फैसले दूरगामी प्रभाव डाल सकते हैं।