इंदौर,10 अगस्त 2024

अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज के चातुर्मास धर्म प्रभावना रथ के दूसरे पड़ाव के ग्यारहवें दिन हाई लिंक सिटी में भक्तामर महामंडल विधान का आयोजन भक्ति भाव से हुआ। इस अवसर पर 224 अर्घ्य अर्पित किए गए। धर्म समाज प्रचारक राजेश जैन दद्दू ने बताया कि इस पावन अवसर पर जिनेंद्र भगवान के अभिषेक व शांति धारा का सौभाग्य रविकांत, उर्मिला, अंकित, शिखा आर्या सेठिया परिवार को प्राप्त हुआ।

कार्यक्रम के दौरान नित्य नियम पूजन के साथ भक्तामर महामंडल विधान में कुल 42 काव्यों के साथ 2352 अर्घ्य समर्पित किए गए। आचार्य अभिनंदन महाराज के चित्र अनावरण और दीप प्रज्वलन का सौभाग्य भी रविकांत, उर्मिला सेठिया परिवार को प्राप्त हुआ। अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज के पाद प्रक्षालन का सौभाग्य हाई लिंक सिटी, लीड्स, तिरुमला टाउनशिप की बी. सी. सखी मंडल को मिला, जबकि शास्त्र भेंट का सौभाग्य मधु पाटनी को प्राप्त हुआ।

आत्मिक सुख की अनुभूति होने पर दुख का सामना नहीं करना पड़ता- पूज्य सागर

इस अवसर पर मुनि श्री ने कहा कि इस संसार में जन्म से मरण तक इंसान की एक ही चाह होती है कि दुख दूर हो और सुख की प्राप्ति हो। यदि सुख का तात्पर्य केवल भोग के साधनों से समझा जाए, जैसे अच्छा भोजन और अच्छा घर, तो वह कभी भी सच्चा सुख नहीं दे सकता। सच्चा सुख वही होता है जो एक बार मिल जाए और कभी न जाए। जिन्होंने आत्मिक सुख की अनुभूति कर ली है, उन्हें दुख का सामना नहीं करना पड़ता।

मुनि श्री ने कहा कि सच्चा मित्र केवल देव, शास्त्र और गुरु होते हैं, जो आपके लिए कभी बुरा नहीं सोच सकते। उन्होंने आचार्य भगवंत के उद्धरण का हवाला देते हुए कहा कि पुण्य का काम स्वतंत्र होकर करना चाहिए। पूजा के दौरान यह भावना होनी चाहिए कि “हे भगवान, मैं आपके जैसा बन जाऊं।” माला फेरते समय अगर संसार की बातें याद आती हैं, तो उन्हें आने दें, लेकिन ऐसी भावना रखें कि ये बातें हमें छूट जाएं। यही भावना मोक्ष की प्राप्ति की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाती है। मुनि श्री ने कहा कि शाश्वत सुख की प्राप्ति के लिए श्रणिक सुख को छोड़ना पड़ेगा। पुद्गल से निर्मित वस्तुएं श्रणिक सुख का कारण होती हैं, और शाश्वत सुख प्राप्त करने के लिए इनसे दूर रहना आवश्यक है।