सतीश जैन, इंदौर

21 अगस्त 2024


हर महापुरुष के जीवन का चरम वैराग्य है, यह उद्गार आज मुनि श्री विनम्र सागर जी महाराज ने छत्रपति नगर के दलाल बाग में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किए। मुनि श्री ने अपने प्रवचन में कहा कि संसार दो शब्दों से संचालित होता है – एक है आसक्ति और दूसरा विरक्ति। जब व्यक्ति घर-परिवार से ऊबने लगता है, तब उसकी आसक्ति विरक्ति में बदल जाती है और उसे जागृति के भाव आने लगते हैं।

मुनि श्री ने समझाया कि आसक्ति वह है जो आ तो सकती है लेकिन जा नहीं सकती। साधुओं को तप में आसक्ति होती है, जबकि महापुरुषों के जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य वैराग्य होता है। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जैसे कुत्ते के काटने के बाद आदमी को हाइड्रोफोबिया हो जाता है और वह पानी से डरने लगता है, वैसे ही जब किसी व्यक्ति को मान का “कुत्ता” काट जाता है, तो वह दूसरों से दूरी बनाए रखता है। इसी प्रकार, जब किसी व्यक्ति से दान की बात की जाती है, तो वह धार्मिक कार्यों से दूर भागने लगता है। मुनि श्री ने कहा कि यदि दान नहीं कर सकते, तो कम से कम उसकी अनुमोदना अवश्य करें। उन्होंने भक्तों से आग्रह किया कि वे प्रभु जी से प्रार्थना करें कि जो प्रकल्प विनम्र सागर जी ने सोचकर शुरू किया है, वह अवश्य पूरा हो।

इस धर्मसभा के आयोजन के बारे में दिगंबर जैन समाज सामाजिक संसद के प्रचार प्रमुख सतीश जैन ने जानकारी दी। उन्होंने बताया कि आज प्रातः गुरुदेव के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन के बाद, दिगंबर जैन परिवार सभा के सदस्यों ने गुरुदेव की आठ द्रव्यों से पूजन करने का सौभाग्य प्राप्त किया। इस अवसर पर मनोज बाकलीवाल, कैलाश चंद जैन नेताजी, गौतम जैन, मनीष नायक, सतीश डबडेरा, विनय चौधरी, प्रमोद जैन (अभय वकील साहब), आनंद जैन आदि विशेष रूप से उपस्थित थे। पूज्य मुनि श्री निस्वार्थ सागर जी महाराज भी मंच पर विराजित थे। प्रतिदिन प्रातः 8:30 बजे से आचार्य श्री जी की पूजन और 9:00 बजे से प्रवचन दलाल बाग में होते हैं। धर्मसभा का सफल संचालन भरतेश बड़कुल ने किया।