उत्तम आकिंचन्य धर्म का महत्व समझाते हुए मुनि श्री विनम्र सागर जी महाराज के प्रवचन
सतीश जैन,इंदौर, 13 सितंबर 2024 (न्यूजओ2 डॉट कॉम)/7724038126। आज इंदौर के दलाल बाग में विनम्र सागर जी महाराज ससंघ के चातुर्मास के दौरान उत्तम आकिंचन्य धर्म का दिन मनाया गया। इस अवसर पर मुनि श्री विनम्र सागर जी महाराज ने अपने प्रवचनों में आकिंचन्य धर्म की महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि आकिंचन्य धर्म जैन शासन की विशेषता है, जिसका अर्थ है “उत्कृष्ट अनासक्ति” यानी राग और द्वेष से मुक्त होना।
मुनि श्री ने कहा कि यह धर्म केवल मुनियों के लिए है, क्योंकि इसे प्राप्त करने के लिए वीतराग चारित्र आवश्यक है। ध्यान की अवस्था में ही इस धर्म को समझा जा सकता है। उन्होंने बताया कि कोई बिरला व्यक्ति ही इस तत्व को समझ पाता है और उस सुने हुए तत्व को आत्मसात कर पाता है। आकिंचन्य धर्म वही धारण कर सकता है, जिसने बाहरी राग और द्वेष को पहले ही छोड़ दिया हो और ध्यान के माध्यम से अंदर के राग-द्वेष से भी मुक्ति पा ली हो।
मुनि श्री ने कहा, “इंद्रिय सुख से ऊपर उठने के बाद भी साता और असाता कर्म हमें परेशान करते हैं। मोहनीय कर्म ही साता-असाता उत्पन्न करते हैं, और राग-द्वेष की ग्रंथियां सहजता से नहीं टूटतीं। आकिंचन्य धर्म को प्राप्त करना कठिन है, यह केवल योगियों को ही प्राप्त होता है, अभिमानी व्यक्ति इसे नहीं प्राप्त कर सकते।”
इस अवसर पर सुबह 5:00 बजे से ही मांगलिक क्रियाएं शुरू हो गई थीं। दोपहर 2:30 बजे से तत्वार्थ सूत्र का वाचन हुआ और रात 7:00 बजे से संगीतमय आरती का आयोजन किया गया। इस धार्मिक अवसर पर सचिन जैन, राकेश सिंघई, सतीश डबडेरा, सतीश जैन, आनंद जैन, महेंद्र जैन चुकरु, श्रुत जैन केवलारी, अखिलेश सोधिया, शिरीष अजमेरा सहित कई समाजजन उपस्थित थे। मुनि श्री निस्वार्थ सागर जी, मुनि श्री निसर्ग सागर जी और क्षुल्लक श्री हीरक सागर जी भी मंच पर विराजमान थे। आचार्य श्री जी की पूजन के पश्चात, सुबह 9:00 बजे से मुनि श्री विनम्र सागर जी के प्रवचन हुए। धर्म सभा का सफल संचालन ब्रह्मचारी मनोज भैया ने किया।