5 माह में दो बड़े आचार्यों को खोया जैन समाज ने, शोक की लहर

इंदौर, 04 जुलाई

राष्ट्रसंत गणाचार्य विरागसागर महाराज की संलेखना समाधि बुध-गुरुवार की मध्यरात्रि 2.30 बजे महाराष्ट्र के जालना में हो गई है। बुंदेलखंड के पहले आचार्य विरागसागर की कम उम्र में आकस्मिक संलेखना का समाचार हर किसी को स्तब्ध कर देने वाला है। जैन समाज अभी आचार्य श्री विध्यासागर जी महाराज की समाधि से उबरा भी नहीं है कि उसे दूसरा बड़ा झटका लगा है। उल्लेखनीय है 18 फरवरी 2024 को आचार्य श्री विध्या सागर महाराज का छत्तीसगढ़ में समाधि हुई थी। गुरुवार को सभी जैन मंदिरों में गुरुवर के लिए प्रार्थना हुई, तो सभी जैन मुनियों ने भी आचार्य विरागसागर के लिए भावना व्यक्त की। कुंडलपुर में विराजमान आचार्य समय सागर ने भी आचार्य विरागसागर को श्रमण संस्कृति की बड़ी क्षति बताया।

मध्य प्रदेश में जन्में, बुंदेलखंड के पहले आचार्य बने

आचार्य विराग सागर का जन्म 2 मई 1963 को मप्र के दमोह जिले के पथरिया में हुआ था। उनके बचपन का नाम अरविंद था। उन्होने पथरिया के ही शासकीय प्राथमिक शाला में पांचवीं तक शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद 1974 में 11 वर्ष की आयु में वे कटनी शांति निकेतन जैन संस्कृत विद्यालय में पढऩे के लिए चले गए। यहाँ उन्होने अपना शास्त्र ज्ञान और धर्म ज्ञान बढ़ाते हुए मेट्रिक पास की। इसके बाद वह शास्त्री बन गए और साधु, संतों के साथ रहते हुए अरविंद का का ज्ञान और बढ़ता गया। यहीं से उन्होने दीक्षा लेने का विचार किया। उनके माता पिता भी दीक्षित होकर समाधि ले चुके हैं।

17 की उम्र में दीक्षा,20 में मुनि, 29 में आचार्य बने

उनके तप से प्रभावित होकर आचार्य सन्मति सागर ने मप्र के शहडोल जिले के बुढ़ार में अरविंद शास्त्री को महज 17 वर्ष की उम्र में 20 फरवरी 1980 को क्षुल्लक दीक्षा दी। इसके बाद आचार्य विमलसागर महाराज ने 9 दिसंबर 1983 को महाराष्ट्र के औरंगाबाद में उन्हें मुनि दीक्षा दी। तब वे 20 साल के थे। यहीं से उनका नाम मुनि विराग सागर हुआ। धर्म की प्रभावना बढ़ाते देख उनके गुरू आचार्य विमलसागर ने 8 नवंबर 1992 को मप्र के छतरपुर जिले के द्रोणागिरी में मुनि विरागसागर को आचार्य पद जैसी बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी। तब उनकी उम्र महज 29 वर्ष ही थी।

29 की उम्र में ही आचार्य पद की जिम्मेदारी मिलने के बाद विराग सागर ने जैन संस्कृति की धर्म प्रभावना को ऐसा बढ़ाया कि न केवल मप्र बल्कि उप्र, विहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र सहित अन्य प्रांतों में लोग उनसे जुडते गए। इस दौरान आचार्य विरागसागर ने संघ में 94 मुनियों, 73 आर्यिकाओं, 5 ऐलक, 23 क्षुल्लक, 32 क्षुल्लिका दीक्षाएं देकर युवाओं को मोक्ष मार्ग की और प्रशस्त किया। इस तरह करीब 222 साधु, साध्वियां विराग सागर के बड़े संघ में हैं।

इस तरह बने गणाचार्य

विराग सागर ऐसे मुनि हैं जिन्होने वृद्धजनों को भी दीक्षा देकर उनका मोक्ष मार्ग प्रशस्त किया। उन्होने 110 ऐसे वृद्धजनों को दीक्षा देकर संलेखना की ओर ले गए, जिनका जीवन पूरी तरह धर्म में व्यतीत रहा हो। आचार्य विराग सागर ने अपने शिष्यों के ज्ञान की परख करते हुए बीच में ही 9 मुनियों को आचार्य पद दे दिया था। इसीलिए बुंदलेखंड के प्रथम आचार्य विराग सागर इस तरह गणाचार्य बन गए थे।

विरागसागर ने 150 से अधिक पुस्तकों का किया लेखन

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक आचार्य विरागसागर ने 6 से अधिक साहित्य पर शोध किया था। उन्हें राष्ट्रसंत की उपाधि भी थी। शोध में वारसाणुपेक्या पर 1100 पृष्ठीय सर्वोदयी संस्कृत टीका, रयणसार पर 800 पृष्ठीय रत्नत्रयवर्धिनी संस्कृत टीका, लिंग पाहुड़ पर श्रमण प्रबोधनी टीका, शील पाहुड़ पर श्रमण संबोधनी टीका, शास्त्र सार समुच्चय पर चूर्णी सूत्र और अनेक शोधात्मक ,शुद्धोपयोग, सम्यक्दर्शन, आगमचक्खूसाहू आदि, चिन्तनीय बालकोपयोगी कथा अनुवाद गद्य संपादित साहित्य, जीवनी व प्रवचन साहित्य 150 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया।

दस वर्ष पूर्व इंदौर में हुआ था चातुर्मास

जैन समाज सामाजिक संसद के सतीश जैन ने बताया कि आचार्य विराग सागर महाराज को 10 वर्ष पूर्व पथरिया से विहार करवाकर इंदौर लाया गया था। उनका यहाँ दलाल बाग में 68 पिच्छियों के साथ चातुर्मास सम्पन्न किया था। आज इंदौर में कई स्थलों पर उन्हें विन्याजली दी गई है।

विशुद्ध सागर महाराज होंगे अगले पट्टाचार्य

विरागसागर महाराज ने अपने अंतिम समय में अपने परम शिष्य विशुद्ध सागर महाराज को अपनी ज़िम्मेदारी सौंपी है। विराग सागर महाराज का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें वे कह रहे हैं कि विशुद्ध सागर महाराज इस ज़िम्मेदारी को निभाने में सक्षम हैं।