बुरहानपुर: सिनेमा का प्रभाव सिर्फ भावनाओं तक सीमित नहीं रहता, कभी-कभी यह कुदाल और फावड़े भी उठा देता है। ऐसा ही कुछ बुरहानपुर के असीरगढ़ किले में देखने को मिला, जहां छावा फिल्म देखकर जनता अचानक ‘पुरातत्व विशेषज्ञ’ बन गई। फिल्म में दिखाया गया कि मुगलों ने मराठों से लूटा हुआ खजाना इस किले में छिपा रखा था, और फिर क्या था—लोगों ने थिएटर से सीधा खजाने की खोज में किले का रुख कर लिया।
खजाने की तलाश में जनता, प्रशासन बना ‘विलेन’
स्थानीय लोगों ने हाथों में कुदाल और फावड़े उठाए, जैसे हीरो फिल्म के क्लाइमैक्स में तलवार उठाते हैं। “इतना सोना दबा पड़ा है, और हम बस टिकट लेकर फिल्में देख रहे हैं? यह अन्याय नहीं सहेंगे!”—ऐसा कहते हुए कुछ लोगों ने खुदाई शुरू कर दी। लेकिन उनकी इस ऐतिहासिक ‘एक्सपेडिशन’ में प्रशासन ने ‘विलेन’ की भूमिका निभाई और खुदाई को रोकने के लिए मौके पर पहुंच गया।
‘इतिहासकारों’ की नई फौज तैयार!
जहां एक तरफ इतिहासकार इस फिल्म को सिनेमाई कल्पना मान रहे हैं, वहीं खजाना खोज रहे लोग तर्क दे रहे हैं—“इतिहास में जो नहीं लिखा, वही असली इतिहास होता है!” एक खोजकर्ता ने कहा, “अंग्रेजों ने असली बातें छुपा दीं, मुगलों ने मिटा दीं, अब हमें खुदाई करके इतिहास फिर से लिखना है!”
प्रशासन की अपील: कृपया इतिहास को किताबों में ही रहने दें
प्रशासन ने लोगों से अपील की है कि कृपया खुदाई का काम छत्रपति संभाजी महाराज के वंशजों पर छोड़ दें और पुरातत्व विभाग को उसकी रोज़ी-रोटी से वंचित न करें। एक अधिकारी ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा, “अगर फिल्मों में दिखाई गई हर बात सच होती, तो बुरहानपुर में स्पाइडर-मैन झूले डाल रहा होता और बाहुबली अभी तक महेश्वर के घाट पर खड़ा होता।”
आगे क्या?
अब देखना यह है कि प्रशासन की चेतावनी का असर होता है या नहीं, या फिर जल्द ही किसी ओटीटी प्लेटफॉर्म की वेब सीरीज़ देखकर लोग असीरगढ़ किले के तहखानों में ‘सीक्रेट टनल’ ढूंढते नज़र आएंगे!