त्वरित टिप्पणी: संविधान विरोधी होने के दाग……. क्या संवैधानिक मूल्यों को ताक पर रख कर… मिटाने की कोशिश कर रही है भाजपा….!
पहले पीएम, फिर लोकसभा अध्यक्ष और अब राष्ट्रपति ने क्यों दिलाई आपातकाल की याद ?
नेहा जैन
18 वीं लोक सभा चुनाव से पहले जहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपने बलबूते 400 सीटें हासिल करने का दावा कर रही थी, वहीं 240 सीटों पर सिमट कर भाजपा अपने बूते बहुमत भी हासिल नहीं कर सकी है। भाजपा के मिशन 400 पर सबसे बड़ा ब्रेक चुनाव के दौरान भाजपा के संविधान विरोधी होने के आरोपों से लगा था। दरअसल जिस तरह चुनाव की शुरुआत में ही भाजपा के कई दिग्गज नेताओं ने 400 सीट मिलते ही संविधान बदलने का दावा किया था, कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने इसी दावे को जन सामान्य के बीच ले जाकर भाजपा को अपने बलबूते सरकार बनाने से रोक दिया है। इतना ही नहीं कांग्रेस के साथ इंडिया गठबंधन के विपक्षी घटक दल निर्वाचित होने के पहले और बाद से संविधान की प्रति हाथ में लिए इस बात को पुरजोर तरीके से प्रचारित कर रहे हैं कि वे ही संविधान बचाने में जुटे लोकतन्त्र के असल सिपाही हैं।
शुरुआत में तो भाजपा ने विपक्ष की इस रणनीति को हलके में लिया और इस पर पलटवार न कर इसे एक तरह से नजरअंदाज ही किया। लेकिन अब भाजपा ये जान और पहचान चुकी है कि भाजपा संविधान विरोधी होने का लगातार यह आरोप यूं ही बदस्तूर जारी रहा तो लोक सभा अल्पमत के साथ अब महाराष्ट्र , हरियाणा, दिल्ली जैसे राज्यों में होने वाले विधान सभा चुनाव में भी भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। यही वजह है कि भाजपा ने सदन की पारंपरिक मर्यादाओं को ताक पर रख कर पहले लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से भरे सदन में 49 वर्ष पहले लगे आपातकाल पर निंदा प्रस्ताव पारित करवाया और दो मिनट का मौन रख कर समूचे इंडिया गठबंधन को जनसामान्य की नजरों में संविधान विरोधी करार देने की कुटिलता को अंजाम दिया। आपको याद होगा 24 जून 2024 को सदन में शपथ के लिए दाखिल होने से पहले प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने संवाददाताओं से बात करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री स्व इन्दिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल को संविधान पर बड़ा हमला बताया था। इसके पश्चात सदन के भीतर 26 जून को पहले लोक सभा अध्यक्ष निर्वाचित हुए ओम बिरला ने और आज 27 जून को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु के अभिभाषण में आपात काल का जिक्र करवाकर भाजपा खुद पर लगे संविधान विरोधी होने के दाग धोने का क्या प्रयास कर रही है ?
दरअसल मुख्य धारा की मीडिया के एक बड़े हिस्से को अपने प्रचार तंत्र में शामिल कर चुकी भाजपा इस तरह की कूटनीति अख़्तियार कर भारतीय जनसामान्य का ब्रेन वॉश करती रही है।
समाचार माध्यमों और Headline Management कर विपक्षियों की छवि को दागदार करना भाजपा का कथित चाल चरित्र बनकर रह गया है। अभी कल ही की बात है जब केन्द्रीय जांच एजेंसी सीबीआई ने मीडिया में ये खबरें लीक कर दी थीं कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कथित शराब घोटाले का ठीकरा अपने ही निकट तम सहयोगी और दिल्ली सरकार में मंत्री रहे आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया पर फोड़ दिया है। कल दोपहर भर मुख्य धारा के मीडिया मंचों पर ये खबर इतनी तेजी से फैली कि केजरीवाल को अपनी बचाव यातना के बीच कोर्ट के समक्ष सीबीआई के इस कांड का खुलासा करना पड़ा। गनीमत रही कि कोर्ट के हस्तक्षेप से आज सुबह के ज़्यादातर अखबारों में ठीकरा फोड़ने की जगह यह तथ्य प्रकाशित हुआ कि सिसोदिया पर आरोप मढ़ने वाली बात भ्रामक है। अखबारों ने आज ये भी खुलासा किया कि ये सीबीआई की केजरीवाल को बदनाम करने की साजिश है। ये साजिश सीबीआई किसके इशारे पर कर रही थी, आप पाठकों को यह बताने की आवश्यकता नहीं है। पुनश्च: अपनी ही दूषित कार्यशैली में उलझ कर दागदार हुई भाजपा अब और अतिरेक नैतिक मूल्यों को ताक पर रख कर विपक्ष को घेर कर क्या अपनी छवि चमका पाएगी ?