भोपाल/इंदौर, 29 जुलाई 2024
आम चुनाव 2024 के बाद एनडीए सरकार का पहला आम बजट 2024-25 जनता की उम्मीदों के विपरीत है। इस बजट में स्वास्थ्य के क्षेत्र में कोई महत्वपूर्ण प्रावधान नहीं किया गया है। केंद्रीय बजट में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की मजबूती और निजी स्वास्थ्य सेवाओं के नियंत्रण पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। देश भर में सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों और प्रशिक्षित चिकित्सकों की संख्या अत्यंत कम है, लेकिन बजट में इसका कोई समाधान नहीं दिख रहा है। साथ ही, प्राथमिक सेवाओं के लिए महत्वपूर्ण योजना राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन को भी अनदेखा किया गया है, जिससे जनता को मजबूरन निजी स्वास्थ्य संस्थानों में इलाज के लिए जाना पड़ सकता है। ये कहा स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अमूल्य निधि ने। उन्होने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर आरोप लगाते हुए कहा कि देश में निजी स्वास्थ्य संस्थानों द्वारा महंगी दरों पर स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जा रही हैं, जिन पर कोई नियंत्रण नहीं है और न ही इस पर कोई प्रयास दिखाए गए हैं। इससे स्पष्ट होता है कि सरकार स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण की स्पष्ट वकालत कर रही है।
एस. आर. आजाद ने कहा केंद्रीय बजट में स्वास्थ्य के लिए 2% से कम का प्रावधान किया गया है और इस साल 1869 करोड़ रुपये की वृद्धि बहुत कम है। स्वास्थ्य का हिस्सा 2021-22 के 2.36% से घटकर 1.96% रह गया है। पिछले साल के बजट अनुमान से वृद्धि केवल 0.33% है, जबकि संशोधित अनुमान में 12% की वृद्धि दिखाई गई है। सरकार ने कैंसर की महज 3 दवाओं को सीमा शुल्क से राहत दी है और कुछ एक्स-रे मशीनों पर भी कर में छूट दी है, लेकिन इसका जनता के स्वास्थ्य पर कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं दिखता।
राकेश चांदौरे और धीरेंद्र आर्य ने कहा वर्ष 2017 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के अनुसार, सरकार ने वर्ष 2024-25 तक स्वास्थ्य क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद का 2.5% खर्च करने का लक्ष्य निर्धारित किया था, लेकिन वर्तमान बजट अनुमान इस लक्ष्य के आस-पास भी नहीं हैं।
सुधा तिवारी ने कहा जन स्वास्थ्य अभियान ने सरकार से मांग की है कि जन स्वास्थ्य की मजबूती के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र में बजट प्रावधान में पर्याप्त वृद्धि की जाए और सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों को निजी हाथों में देने की प्रक्रिया को बंद किया जाए।