डिफ़्यूज्ड अक्षय बम कांड ने उड़ा रखी है भाजपा की नींद , इंदौर पहुंचे प्रदेश अध्यक्ष ने किया भाजपा का बचाव,
सवाल- क्या नोटा की अपील अपराध है?
इंदौर
मध्य प्रदेश की लोक सभा सीट पर हुए अक्षय ‘बम कांड’ की गूंज ने जितना कांग्रेस को प्रभावित किया है उससे ज्यादा अब भाजपा अपनी परंपरागत जीती जिताई इंदौर सीट पर हलाकान नजर आ रही है । नैतिक पतन, लोकतन्त्र का अपहरण जैसे आरोप झेल रही भाजपा पिछली 29 अप्रैल 2024 को कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति (जैन) बम का नामांकन वापस कराकर भाजपा में शामिल करने के साथ ही इस मुद्दे से भड़की आग को शांत करने में जुटी हुई है । उधर कांग्रेस का किसी भी निर्दलीय प्रत्याशी को समर्थन नहीं देना और उसके बाद इंदौर के मतदाताओं से नोटा ( NOTA -उपरोक्त में से कोई नहीं) विकल्प पर मुहर लगाने की अपील करने जैसी प्रचार प्रसार मुहिम ने भाजपा की मुसीबतें बढ़ा दी हैं।
अक्षय ‘बम कांड’ के बाद शुरुआती कुछ घंटों तक तो भाजपा इसे अपनी बड़ी उपलब्धि के तौर पर भुनाती जश्न में डूबी दिखाई दी लेकिन एकाएक भाजपा के शीर्ष वयोवृद्ध नेताओं की आलोचना सामने आने के बाद भाजपा पसोपेश की स्थिति में आ गई है । इसी क्रम में पहले भाजपा के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने प्रेस वार्ता की फिर भाजपा में शामिल अक्षय बम को मीडिया के बीच तीन बार लाया गया। आज इसी क्रम में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वी डी शर्मा ने इंदौर आकर एक प्रेस वार्ता की ।
क्या नोटा का प्रचार- प्रसार अपराध है ?
इस मुद्दे पर newso2 शुरू से ही नजर बनाए हुए हैं। आज जब प्रदेश अध्यक्ष वी डी शर्मा से हमने यह पूछा, “क्या नोटा का प्रचार प्रसार करना कोई अपराध है ?” सवाल सुनते ही श्री शर्मा ने कहा, “हाँ, बिलकुल अपराध है । नोटा का विकल्प कब दिया गया था—नोटा का विकल्प दिया था जब उपरोक्त में कोई प्रत्याशी पसंद नहीं आए तब। लेकिन जीतू पटवारी सीधे नोटा दबाने का कह रहे हैं, और नोटा का प्रचार करते घूम रहे हैं जो लोकतंत्र के लिए घातक है । एक जिम्मेदार राजनीतिक दल (कांग्रेस) हो आप । नोटा व्यक्ति की स्वतंत्रता है, व्यक्ति की श्रद्धा है। एक राजनीतिक दल का व्यक्ति नोटा का प्रचार करे, इसका मतलब देश के लोकतंत्र पर आपको विश्वास नहीं है।“
हमने इस मामले पर दोनों ही राजनीतिक दलों के सक्षम कानूनविदों से और निर्वाचन अधिकारी से समझने का प्रयास किया । आइए, जानते हैं किसने क्या कहा: –
राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा ने कहा, “नोटा का प्रचार प्रसार कोई भी कर सकता है, यह अपराध की श्रेणी में नहीं आता है। अपराध वह है जो कानून में नोटिफाइड है। नोटा का प्रचार प्रसार कानून की अनुमति के अनुसार चुनावी प्रक्रिया का वैध अभ्यास है। जो कोई भी कर सकता है। भाजपा डरी हुई है, इसलिए कुछ भी कह रही है।”
अधिवक्ता पंकज वाधवानी (भाजपा विधि प्रकोष्ठ) ने कहा, “यदि कोई रजिस्टर्ड राजनीतिक दल नोटा का प्रचार प्रसार करता है तो वह आचार संहिता का उल्लंघन है। अपंजीकृत संस्था या आम आदमी नोटा का प्रचार प्रसार कर सकता है। ”
वरिष्ठ अधिवक्ता अजय बागड़िया ने कहा, “किसी भी कानून में नहीं लिखा है कि नोटा का प्रचार प्रसार अपराध है या राजीतिक दल प्रचार प्रसार नहीं कर सकता। ये कांग्रेस की गूंज है , जिससे भाजपा डर रही है । नोटा लोकतंत्र के पक्ष में मत है, जो कांग्रेस कर रही है। ये गलत तब होता जब आप किसी को मतदान करने से रोकते । जो व्यक्ति कांग्रेस को वोट देना चाहता है वो क्या करेगा, इसलिए कांग्रेस उन्हें नोटा का विकल्प दे रही है जो गलत नहीं है।
अधिवक्ता अभिनव धनोतकर ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लगी है जिसमें नोटा को प्रत्याशी के बराबर दर्जा दिये जाने की मांग की गई है । इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने नोटिस भी जारी किए हैं । सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का इंतजार करना चाहिए ।”
भूवैज्ञानिक सुधींद्र मोहन शर्मा बताते हैं कि नोटा का प्रचार- प्रसार गलत नहीं है लेकिन इसे राजनीतिक टूल बनाने के बजाय इसे मतदान के अधिकार के रूप में देखना चाहिए । साथ ही नोटा को मजबूत बनाने इसमें संसोधन किए जाने की जरूरत है । यदि नोटा को सबसे अधिक वोट मिलते हैं, तो वहाँ Re-election ( पुन: चुनाव) करवाए जाने चाहिए साथ ही उस चुनाव में खड़े हुए प्रत्याशियों को एक चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करना चाहिए। यदि नोटा को मिले वोट का अंतर हार- जीत के अंतर से अधिक होता है तो उस पर भी गौर किए जाने की जरूरत है।
शिक्षाविद और हाल ही में कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल भाजपा नेता स्वप्निल कोठारी newso2 के पूछे जाने पर कहते हैं, “नोटा का प्रचार-प्रसार बिलकुल गलत है। 14 अन्य प्रत्याशी भी मैदान में हैं। उनका बैक ग्राउंड देखकर जनता उन्हें भी चुन सकती है। वोट किसे देना है, ये जनता का स्वविवेक है लेकिन नोटा के माध्यम से आप उन्हें गुमराह नहीं कर सकते हैं।”
क्यों उठा नोटा के प्रचार पर अपराध का प्रश्न ?
आपको बता दें कि कांग्रेस की नोटा पर मुहर लगाने की अपील का असर सोशल मीडिया, चौक- चौपालों समेत विभिन्न वर्गों में चर्चा का विषय बना हुआ है । दरअसल 2019 लोक सभा चुनाव में इंदौर में कांग्रेस को 52,0815 मत मिले थे और नोटा को 5045 मत मिले थे और 2014 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस को 388071 मत और नोटा को 5944 मत मिले थे। ऐसे में अक्षय बम का नामांकन वापस लेने के बाद कांग्रेस का मतदाता विकल्पहीन हो गया है । माना जा रहा है आदर्श राजनीति का गढ़ रहे इंदौर में इस तरह का फरेब आम आदमी के गले नहीं उतर रहा है। भाजपा को यह भय सता रहा है कि कांग्रेस के वोटर के साथ प्रभावित सामान्य जनमानस या अन्य दलों का वोटर यदि उद्वेलित हुआ, भाजपा भले ही आंकड़ों के खेल में इंदौर लोकसभा सीट से जीत दर्ज कर दे लेकिन नोटा को मिले एक मुश्त वोट भाजपा की इस टेक्टिक्स और कांग्रेस के शब्दों में राजनीतिक माफिया पर जनता का बड़ा प्रहार होगा और इस तरह की नैतिक शिकस्त से बचने का अब भाजपा उपाय खोज रही है ।
इसी सिलसिले में इंदौर में हाल ही में ये घटनाक्रम सामने आए हैं:-
भाजपा विधि प्रकोष्ठ ने निर्वाचन अधिकारी को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक पर ‘ मैं हूँ इंदौर” नाम से प्रकाशित पेज के संचालक पर मतदान प्रभावित करने के उद्देश्य से भ्रामक प्रचार करने के आरोप लगाए हैं। शिकायत में कहा गया है कि किसी अज्ञात व्यक्ति द्वारा विपक्ष के नेताओं के कहने पर भाजपा नेताओं के फोटो के साथ लिखा है, “आओ मिलकर NOTA दबाएँ, बीजेपी को सबक सिखाएँ।“ जो मतदान प्रभावित करने के साथ भाजपा की छवि भी धूमिल करता है।
-भाजपा विधि प्रकोष्ठ ने निर्वाचन अधिकारी को एक अन्य शिकायत में ऑटो रिक्शा पर लोकतंत्र बचाव समिति द्वारा पोस्टर पर ‘vote for nota’ लिखा है। आरोप है कि यह मतदाता को मतदान के अधिकार के प्रति भ्रमित कर रहा है।
-8 मई को एक वीडियो भी सामने आया जिसमें भाजपा की पार्षद संध्या यादव ऑटो रिक्शा पर लगे नोटा के प्रचार के पोस्ट हटवा रही हैं।