पर्यावरणविद डॉ चतुर्वेदी ने इंदौर में चेताया–
चिंता: नर्मदा सिकुड़ने लगी है, 30 वर्ष ही मिल सकता है नर्मदा का जल
वर्षा जल को सहेजे और बड़ी संख्या मे लगाए पेड़
इंदौर
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ख्यात पर्यावरणविद्ध डॉ. सुनील चतुर्वेदी ने चेताते हुए कहा कि सतपुड़ा के घने जंगल जिस तरह से कट रहे हैं और नर्मदा क्षेत्र के आसपास जिस तरह के निर्माण हो रहे है, बाँधों का निर्माण हो रहा है उसके चलते जीवनदायिनी नदी नर्मदा दिनों दिन सिकुड़ती जा रही है। ऐसे में इंदौर को नर्मदा का पानी अधिकतम 30 वर्ष और मिल सकता है। अत: हम आज से ही वर्षा के जल को सहेजे और अधिक से अधिक पेड़ लगाए। डॉ.चतुर्वेदी ने यह चिंता श्री मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति सभाग्रह् में बुधवार को अभ्यास मंडल के मंच पर बतौर मुख्य वक्ता उद्बोधन देते हुए जाहिर की।
जलवायु परिवर्तन के दौर में जल सरंक्षण की आवश्यकता एवं महत्व विषय पर बोलते हुए डॉ चतुर्वेदी ने आगे कहा कि जल ही जीवन है और हम सब जल पर निर्भर हैं, लेकिन बीते कुछ वर्षों से जल संकट बढ़ता जा रहा है। नदियां सूख कर नाले में तब्दील हो रही हैं। कुएं और बावडिया रीति होती जा रही है। पोखर और तालाब भी या तो सूख चुके अथवा उन पर अतिक्रमण हो गया है। ऐसे में केवल वर्षा का पानी ही अब हमारे जल का बड़ा स्रोत रह गया है। जल की कमी का एक बड़ा कारण यह भी है कि हम जितना पानी जमीन से निकाल रहे हैं, उतना सहेज नहीं रहे हैं। अत: ये संकट प्रकृति प्रदत्त कम और मानव प्रदत्त अधिक है।
वर्षा ऋतु में 1500 वर्ग फीट की छत पर करीब डेढ लाख लीटर पानी एकत्रित होता है
डॉ .चतुर्वेदी ने आगे कहा कि वर्षा के जल का सरंक्षण कर हम एक बड़े संकट से बच सकते हैं । सबसे अच्छा तरीका यह है कि छतों पर एकत्रित हुए जल को हम पाइप के सहारे जमीन में उतारें। एक अनुमान के मुताबिक वर्षा ऋतु में 1500 वर्ग फीट की छत पर करीब डेढ लाख लीटर पानी एकत्रित होता है जिसमें से अधिकांश बह जाता है। वर्षा के जल को सहेजने का एक तरीका जमीन में चार बाय चार फीट का गड्डा खोदें और उसमें नीचे तक पाइप डालें। इन दोनों तरकीब से भू जल स्तर बढ़ेगा। वर्षा जल से भूजल स्तर को बढ़ाते समय अधिक सावधानी की भी जरूरत है, क्योंकि अगर भूमि पर कार्बन,प्लास्टिक या और कोई अपशिष्ट है तो वह भी वर्षा जल के साथ भूमि में जायेगा, जो रोग का कारण बनेगा। पानी में आर्सेनिक की मात्रा अधिक होगी तो कैंसर का खतरा और यदि फ्लोराइड की मात्रा बढ़ गई तो हड्डियों का कमजोर होना तय है। अत: जिस जल को हम जीवन कहते हैं, वह कभी कभी किलर भी बन जाता है। तीसरा तरीका छत के ऊपर हजार- दो हजार लीटर की पानी की टंकी रखेँ और उसमें वर्षा का जल एकत्रित कर उसे घरेलू कार्यों में उपयोग करें।
डॉ .चतुर्वेदी ने आगे कहा कि सभी ग्रहों में एकमात्र पृथ्वी ही ऐसी है जहाँ जीवन होने के साथ वर्षा की संभावना है। लेकिन इस धरती का तापमान भी बढ़ता जा रहा है। बीते 120 वर्षो में 1 डिग्री बढ़ा और आने वाले वर्षों में यह और बढ़ेगा।अकेले कार्बन डाय ऑक्सएड का स्तर 25 प्रतिशत बढ़ा।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में धर्मेंद्र चौधरी ने कहा कि सरकारी सेवा कार्य के दौरान आदिवासी क्षेत्र झाबुआ में वर्षा जल को सहेजा था उसके अच्छे परिणाम निकले। आवश्यकता इस बात की है कि हम वर्ष भर सचेत रहें और जल को सहेजें।
कार्यक्रम में ये रहे शामिल
मंच पर अभ्यास मंडल के अध्यक्ष रामेश्वर गुप्ता और सचिव श्रीमती माला ठाकुर भी उपस्थित थे। अशोक कोठारी, स्वप्निल व्यास, ,एन के उपाध्याय, हबीब बेग आदि ने अतिथियों का स्वागत तुलसी के पौधे से किया। अतिथियों को प्रतीक चिन्ह पर्यावरणविद एस एल गर्ग और वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा ने प्रदान किये। कार्यक्रम का संचालन वैशाली खरे ने किया और आभार माना सुनील व्यास ने। कार्यक्रम में पर्यावरणविद् ओ पी जोशी, शंकर गर्ग, ओम नरेड़ा , नेताजी मोहिते,संजय गुप्ता , शरद कटारिया, दशरथ गोलाने , अनिल भोजे , किशन सोमानी, फादर लकारा , कुणाल भंवर,ग्रीष्मा त्रिवेदी,दीप्ति गौर आदि उपस्थित थे।