बेंगलुरु : 30 वर्षीय एक व्यक्ति ने पीवीआर सिनेमा, आईनॉक्स और बुक माई शो के खिलाफ उपभोक्ता अदालत में मुकदमा जीतकर 65,000 रुपये का मुआवजा हासिल किया। यह मामला उन दर्शकों के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण है जो सिनेमा हॉल में लंबे विज्ञापनों से परेशान होते हैं।
क्या था मामला?
व्यक्ति ने आरोप लगाया कि उसने फिल्म का शो शाम 4:30 बजे बुक किया था और उसकी योजना फिल्म समाप्त होने के बाद शाम 6:30 बजे काम पर लौटने की थी। हालांकि, उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि फिल्म के निर्धारित समय पर शुरू होने से पहले 25 मिनट तक विज्ञापन और ट्रेलर दिखाए गए, जिससे “समय की बर्बादी” और “मानसिक पीड़ा” हुई।
उन्होंने तर्क दिया कि जब टिकट में फिल्म शुरू होने का समय स्पष्ट रूप से दिया गया था, तो इतने लंबे विज्ञापन दिखाना अनुचित व्यापारिक व्यवहार है। उन्होंने कहा कि इसके कारण उनकी योजनाएं बाधित हुईं और उन्हें मानसिक तनाव का सामना करना पड़ा।
अदालत का फैसला:
बेंगलुरु उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम ने व्यक्ति के पक्ष में फैसला सुनाते हुए पीवीआर सिनेमा, आईनॉक्स और बुक माई शो को 65,000 रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि उपभोक्ताओं को उनके समय का सम्मान किया जाना चाहिए और उन्हें बिना पूर्व सूचना के इतने लंबे विज्ञापनों को सहन करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
उपभोक्ता अधिकारों की नई मिसाल:
यह निर्णय सिनेमा हॉल में लंबे विज्ञापन दिखाने की प्रथा पर सवाल उठाता है और उपभोक्ता अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। भारत में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के तहत, उपभोक्ताओं को अनुचित व्यापारिक व्यवहार से बचाने का प्रावधान है, और यह मामला इसी का उदाहरण है।
सिनेमा हॉल और टिकट बुकिंग प्लेटफार्मों पर असर:
यह फैसला सिनेमा हॉल और टिकट बुकिंग प्लेटफार्मों के लिए एक चेतावनी है कि वे विज्ञापनों और ट्रेलरों की अवधि को लेकर पारदर्शिता बरतें। यह उपभोक्ताओं को समय की बर्बादी और मानसिक परेशानी से बचाने के लिए आवश्यक है।
दर्शकों के लिए राहत भरी खबर:
यह निर्णय उन दर्शकों के लिए राहत की खबर है जो अक्सर सिनेमा हॉल में लंबे विज्ञापनों से परेशान होते हैं। अब, यह उम्मीद की जा सकती है कि सिनेमा हॉल अपने शेड्यूल में स्पष्टता लाएंगे और अनावश्यक विज्ञापन दिखाने से बचेंगे।
यह मामला न केवल उपभोक्ता अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि उपभोक्ता अपनी आवाज उठा सकते हैं और न्याय पा सकते हैं। यदि आप भी सिनेमा हॉल में लंबे विज्ञापनों से परेशान होते हैं, तो यह आपके लिए एक उदाहरण हो सकता है कि उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा के लिए कानूनी कदम उठाए जा सकते हैं।