टिप्पणी: विश्व गुरु का सपना संजोए भारत, अपने ही शिष्यों के साथ क्यों नहीं कर पा रहा है न्याय …!
नेहा जैन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 जून को विश्व की शैक्षणिक धरोहर नालंदा यूनिवर्सिटी के नवनिर्मित भवन का उदघाटन किया। उल्लेखनीय है नालंदा यूनिवर्सिटी का एक वैश्विक स्तर के विश्वविध्यालय होने का स्वर्णिम इतिहास रहा है। इधर विश्व धरोहर नालंदा यूनिवर्सिटी का उदघाटन समारोह चल रहा था, उसी वक्त तमाम टीवी चैनलों पर प्राध्यापक (प्रोफेसर) का सपना सँजोए NET परीक्षा में शामिल हुए 11 लाख अभ्यर्थियों के परिश्रम को भ्रष्ट हो चुकी भारत की उच्च शैक्षणिक व्यवस्था रौंद चुकी थी।
आपको बता दें नेट परीक्षा रद्द कर दी गई है। उसके साथ ही कथित व्यापम घोटाला, कथित नर्सिंग घोटाला, एमबीए पेपर लीक कांड, पुलिस भर्ती घोटाला और हालिया 23 लाख से ज्यादा बच्चों के भविष्य पर संकट के रूप में मंडराने वाल नीट घोटाले ने हमारे शिष्यों के साथ अन्याय किया है । सियासी शोरगुल में चौतरफा उठ रहे आरोप- प्रत्यारोप के हल्ला के बीच देश के भविष्य को न्याय देने में हम क्यों असफल हो रहे हैं ? ऊपर से गर्व की चादर ओढ़े स्वयं को महिमामंडित करने वाले हम भारतवासी क्यों नैतिक मूल्यों को खोते जा रहे हैं ? स्कूल शिक्षा, चिकित्सीय शिक्षा , यांत्रिकी शिक्षा जैसे संस्थान क्यों निष्पक्षता, पारदर्शिता और समानता की कसौटियों पर निष्फल होते जा रहे हैं ? भव्य आयोजनों, लाइव टेलीकास्ट , गर्व की अनुभूति कराते भाषणों के बीच खोखली हो चुकी हमारी व्यवस्था न केवल देश की प्रतिभाओं के साथ अन्याय कर रही है, बल्कि अमूल्य समय को अनायास संघर्षों में व्यर्थ करने की दिशा में लगातार धकेल रही है। सोचिए कि आपने आपके जनतंत्र को कहाँ लाकर खड़ा कर दिया है ? हमने कब वोट देते वक्त शिक्षा, स्वास्थ्य और समान अवसरों को प्राथमिकता में रखा था ? पुनश्च विश्व गुरु का सपना संजोए हम भारत के लोग अपने शिष्यों या ये कहें देश के भविष्य के साथ आखिर क्यों न्याय नहीं कर पा रहे हैं ? जिम्मेदार हम सब हैं । जवाबदेही हम सब की है ।
भव्य निर्माणों से क्या लौट आएगा भारत का विश्वगुरु का वैभव ?
मौजूदा एक नजर नालंदा परिसर पर..
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल बुधवार को नालंदा यूनिवर्सिटी के भव्य भवन का उदघाटन किया । 300 कमरे, 7 बड़े हॉल वाले इस यूनिवर्सिटी परिसर के उदघाटन के साथ 1600 वर्ष पुरानी परंपरा को पुनर्जन्म देने के एक प्रयास के रूप में प्रचारित किया गया है। बिहार की राजधानी पटना से 90 किमी दूर इस विश्वविध्यालय को तक्षशिला के बाद दुनिया का सबसे प्राचीन दूसरा विश्वविध्यालय माना जाता है। एतिहासिक दस्तावेज़ बताते हैं कि सम्राट कुमार गुप्त प्रथम ने 450 ई. में इस विश्वविध्यालय की स्थापना की थी। 12 वीं शताब्दी में आक्रमणकारियों द्वारा इस विश्वविध्यालय को ध्वस्त करने से पहले यहाँ 800 वर्षों तक अध्यन कार्य हुआ । यहाँ तब धर्मगंज 9 मंज़िला पुस्तकालय हुआ करता था।
अब जबकि नया भवन बन कर तैयार हो चुका है, दावा किया जा रहा है कि यहाँ बौद्ध अध्ययन, फिलोसोफी, इतिहास, पारिस्थितिकी और पर्यावरण स्टडीज़ के साथ मैनेजमेंट की भी पढ़ाई कराई जाएगी। जबकि पुराने समय में यहाँ साहित्य, ज्योतिष, मनोविज्ञान, विधि (कानून), खगोल शास्त्र, विज्ञान, युद्ध नीति, इतिहास, गणित, वास्तु कला, भाषा विज्ञान, अर्थ शास्त्र और चिकित्सा जैसे विषय पढ़ाए जाते थे।