भारत-अमेरिका रक्षा डील : भारतीय वायुसेना के लिए F-35 सही फैसला है या राजनीतिक मजबूरी? जानिए इस डील के रणनीतिक और कूटनीतिक प्रभाव इस विशेष रिपोर्ट में।

लेखक: जितेंद्र सिंह यादव | प्रकाशन: न्यूज़O2

‘नभः स्पृशं दीप्तम्’ – भारतीय वायुसेना का ध्येय वाक्य और नई डील का संदर्भ

भारतीय वायुसेना का आदर्श वाक्य “नभः स्पृशं दीप्तम्” है, जिसका अर्थ है “गौरव के साथ आकाश को छूना”। लेकिन हाल ही में अमेरिकी लड़ाकू विमान F-35 की खरीद से जुड़े घटनाक्रम को देखते हुए यह सवाल उठता है – क्या यह फैसला रणनीतिक मजबूती के लिए लिया गया, या फिर यह राजनीतिक दबाव का नतीजा था?

भारतीय वायुसेना – एक खिचड़ी बन चुकी ताकत?

वर्तमान में भारतीय वायुसेना के पास रूसी (मिग, सुखोई), फ्रेंच (रफाल, मिराज), स्वदेशी (तेजस) और अब अमेरिकी (F-35) जैसे विभिन्न देशों के लड़ाकू विमान हैं। यह विविधता एक ओर जहां तकनीकी लचीलापन देती है, वहीं दूसरी ओर लॉजिस्टिक्स, मेंटेनेंस और ट्रेनिंग के स्तर पर बड़ी चुनौती भी पैदा करती है।

एक विमान, सिर्फ एक मशीन नहीं – बल्कि एक लॉन्ग-टर्म पैकेज है

लड़ाकू विमान 30-40 साल तक ऑपरेशन में रहते हैं। इस दौरान उनकी मेंटेनेंस, अपग्रेड, पार्ट्स सप्लाई, हथियार सिस्टम और रणनीतिक उपयोग में निरंतर बदलाव आते हैं। इसलिए किसी भी नए विमान की खरीद सिर्फ आज की जरूरत नहीं होती, बल्कि भविष्य की रणनीति और डिप्लोमैटिक रिश्तों से भी जुड़ी होती है।

F-35 की अचानक डील – भारतीय रणनीति में बदलाव या अमेरिकी दबाव?

भारतीय वायुसेना ने जब वैश्विक निविदा निकाली थी, तब F-35 सहित ब्रिटिश, डच, स्वीडिश और रूसी विमानों को तकनीकी आकलन के बाद रिजेक्ट कर दिया गया था। इसके बजाय रफाल को चुना गया, क्योंकि वह भारतीय रणनीतिक जरूरतों और मल्टी-रोल क्षमताओं के हिसाब से उपयुक्त था।

लेकिन हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका में बिना किसी पूर्व निर्धारित एजेंडे के F-35 की खरीद पर हामी भर दी। यह डील कैसे और क्यों हुई? क्या भारतीय सेना की प्राथमिकता बदली, या यह ट्रम्प प्रशासन को खुश करने की कूटनीतिक मजबूरी थी?

‘मेक इन इंडिया’ की अनदेखी?

सुरक्षा के नजरिए से आयातित विमानों की बजाय घरेलू उत्पादन बेहतर होता है।

  • मिराज-2000 और सुखोई-30 MKI को भारत में असेंबल किया गया था।
  • रफाल की पुरानी डील में भी टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की योजना थी।
  • लेकिन F-35 पूरी तरह रेडीमेड विमान होगा, जिसे भारत में बनाने की कोई योजना नहीं है।

मोदी सरकार की रक्षा खरीद नीति – बदली रणनीति या दबाव की नीति?

पहले जहां भारत टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर जोर देता था, अब रेडीमेड विमान खरीदने का ट्रेंड देखने को मिल रहा है।

  • रफाल डील में भी ‘मेक इन इंडिया’ को दरकिनार किया गया।
  • अब F-35 की खरीद भी उसी राह पर जाती दिख रही है।
  • क्या यह भारत की स्वतंत्र रक्षा नीति में बदलाव का संकेत है?

अमेरिकी दौरे का नतीजा – रणनीतिक बढ़त या झुकाव?

प्रधानमंत्री मोदी का हालिया अमेरिकी दौरा कई मायनों में सवालों के घेरे में है।

  • एलन मस्क से मुलाकात, F-35 डील और ट्रम्प से दबाव भरी बातचीत – क्या ये महज संयोग थे?
  • भारत को क्या फायदा हुआ? क्या यह सौदा वास्तव में भारत की जरूरतों को पूरा करता है?

– क्या F-35 भारतीय वायुसेना के लिए सही फैसला है?

F-35 भले ही दुनिया का सबसे एडवांस लड़ाकू विमान हो, लेकिन क्या यह भारतीय वायुसेना की जरूरतों के अनुरूप है?

  • क्या भारत को इस तरह बिना गहन मूल्यांकन के रक्षा सौदे करने चाहिए?
  • क्या रणनीतिक फैसले अब राजनीतिक प्राथमिकताओं के अनुसार लिए जा रहे हैं?
  • क्या यह फैसला ‘गौरव के साथ आकाश छूने’ की दिशा में उठाया गया कदम है, या फिर यह किसी दबाव का नतीजा है?
  • आने वाले वर्षों में भारतीय वायुसेना इस फैसले की क्या कीमत चुकाएगी – यह देखने वाली बात होगी।

भारतीय वायु सेना: गौरवशाली इतिहास और स्थापना

भारतीय वायु सेना (IAF) देश की रक्षा प्रणाली का एक अभिन्न अंग है, जिसकी स्थापना 8 अक्टूबर 1932 को की गई थी। अपनी स्थापना के बाद से, भारतीय वायु सेना ने कई ऐतिहासिक उपलब्धियां हासिल की हैं और राष्ट्र की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

अब एक नजर वायु सेना के गौरवशाली इतिहास पर

भारतीय वायु सेना की स्थापना

भारतीय वायु सेना की पहली एयरक्राफ्ट फ्लाइट 1 अप्रैल 1933 को अस्तित्व में आई, जिसमें छह RAF-प्रशिक्षित अधिकारी और 19 हवाई सिपाही (वायु सैनिक) शामिल थे। उस समय वायु सेना के बेड़े में चार वेस्टलैंड वैपिटी IIA आर्मी कोऑपरेशन बाइप्लेन थे, जो ड्रिग रोड (कराची, वर्तमान पाकिस्तान) में नंबर 1 (आर्मी कोऑपरेशन) स्क्वाड्रन की नींव के रूप में कार्य कर रहे थे।

प्रारंभिक विकास और भूमिकाएं

शुरुआती वर्षों में भारतीय वायु सेना का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश भारतीय सेना को हवाई सहायता प्रदान करना था। द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) के दौरान, भारतीय वायु सेना ने अपनी क्षमता को सिद्ध किया और कई अभियानों में भाग लिया। 1945 में, इसके योगदान को मान्यता देते हुए इसे “रॉयल इंडियन एयर फोर्स” का दर्जा दिया गया। हालांकि, 15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता के बाद, इसका नाम पुनः भारतीय वायु सेना (Indian Air Force) कर दिया गया।

भारतीय वायु सेना की बढ़ती ताकत

समय के साथ भारतीय वायु सेना ने अपने बेड़े में अत्याधुनिक विमानों को शामिल किया और अपनी शक्ति को बढ़ाया। आज भारतीय वायु सेना में लड़ाकू विमानों, परिवहन विमानों, हेलीकॉप्टरों और ड्रोन की उन्नत तकनीक शामिल है। वर्तमान में, भारतीय वायु सेना राफेल, सुखोई-30MKI, मिराज 2000, तेजस, और मिग-29 जैसे शक्तिशाली लड़ाकू विमानों से सुसज्जित है।

वायु सेना की प्रमुख उपलब्धियां

भारतीय वायु सेना ने कई युद्धों और अभियानों में बहादुरी दिखाई है। इनमें 1947-48 का कश्मीर युद्ध, 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध, 1999 का कारगिल युद्ध और हाल ही में आतंकवाद के खिलाफ किए गए बालाकोट हवाई हमले शामिल हैं।

भारतीय वायु सेना न केवल युद्धक्षेत्र में बल्कि प्राकृतिक आपदाओं और मानवीय सहायता अभियानों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसकी स्थापना से लेकर अब तक, भारतीय वायु सेना ने अपने अदम्य साहस और तकनीकी कौशल से देश को सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

👉 स्रोत: भारतीय वायु सेना आधिकारिक वेबसाइट

By Jitendra Singh Yadav

जितेंद्र सिंह यादव वरिष्ठ पत्रकार, आरटीआई कार्यकर्ता और राजनीतिक विश्लेषक 15+ वर्षों का पत्रकारिता अनुभव, यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (UNI) से जुड़े। स्वतंत्र विश्लेषक, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर गहरी पकड़। RTI और PIL के माध्यम से प्रशासनिक पारदर्शिता के पक्षधर। पीपल फॉर एनिमल्स (इंदौर यूनिट) के सलाहकार। Save Journalism Foundation व इंदौर वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन के संस्थापक। Indore Varta यूट्यूब चैनल और NewsO2.com से जुड़े। 📌 निष्पक्ष पत्रकारिता व सामाजिक सरोकारों के लिए समर्पित।

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