इंदौर में पुलिस कूटरचना का मामला: परंतु अधिकारी ने नहीं की FIR, छात्र नेता ने हाईकोर्ट में लगाई गुहार
पुलिस अधिकारी पर सहकर्मी को बचाने का आरोप, न्यायिक प्रक्रिया पर उठे सवाल
इंदौर, 7 जून 2025
संयोगितागंज थाना क्षेत्र से जुड़ा एक गंभीर मामला सामने आया है, जहां एक पुलिसकर्मी द्वारा की गई कथित कूटरचना के बावजूद ज़ोन 3 के पुलिस उपायुक्त एवं विशेष कार्यपालक दंडाधिकारी द्वारा कोई प्रकरण दर्ज नहीं किया गया। इस मामले ने न केवल पुलिस की कार्यप्रणाली, बल्कि न्यायिक निष्पक्षता पर भी गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं।
यह मामला छात्र नेता राधेश्याम जाट के विरुद्ध भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 129 के अंतर्गत चल रही प्रतिबंधात्मक कार्रवाई से जुड़ा है। संयोगितागंज थाना द्वारा प्रस्तुत इस्तगासा में राधेश्याम को “आदतन अपराधी” बताते हुए ₹30,000 की प्रतिभूति पर 3 वर्ष के लिए बंद पत्र की मांग की गई थी।
प्रकरण में जांच अधिकारी रहे सहायक उप निरीक्षक भारत सिंह परिहार का परीक्षण 28 मई 2025 को हुआ। राधेश्याम जाट के मुताबिक उनके अधिवक्ता जयेश गुरनानी द्वारा की गई जिरह के दौरान परिहार ने यह स्वीकार किया कि उन्होंने थाना प्रभारी के दस्तावेज़ों पर फर्जी हस्ताक्षर किए थे — जो कि स्पष्ट रूप से एक कूटरचना (Forgery) है।
इस स्वीकारोक्ति के बाद राधेश्याम ने परिहार के विरुद्ध FIR दर्ज करने का आवेदन न्यायालय में प्रस्तुत किया, जाट का आरोप है कि न्यायालय द्वारा उनके आवेदन पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया। उलटे परिहार ने अपनी सफाई में एक नया आवेदन देकर कहा कि परीक्षण के दौरान उनकी तबीयत खराब थी और उन्होंने चश्मा नहीं पहना था, जिससे गलती हो गई। अदालत ने यह आवेदन तो स्वीकार कर लिया, लेकिन राधेश्याम का आवेदन नजरअंदाज कर दिया गया।
इस कथित पक्षपात से व्यथित होकर राधेश्याम जाट ने हाईकोर्ट की शरण ली है। उन्होंने अपनी याचिका (MCRC/25308/2025) में ज़ोन 3 के पुलिस उपायुक्त हंसराज सिंह पर गंभीर आरोप लगाए हैं — कि वह एक आरोपी पुलिसकर्मी को अनुचित संरक्षण दे रहे हैं और अपने पद का दुरुपयोग कर रहे हैं।
याची राधे जाट ने कहा कि छात्र हित में शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने के कारण उन पर प्रकरण लादे जा रहे हैं। वे छात्र हित में बात करते हैं और उन्हें पुलिस आदतन अपराधी बताने पर तुली हुई है। उधर याची के अधिवक्ता जयेश गुरनानी ने कहा कि हाई कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली है, जल्द ही सुनवाई हो सकती है। वहीं सवालों के घेरे में उप निरीक्षक भारत सिंह परिहार ने उन पर लगे सभी आरोपों से इंकार करते हुए यह तक कह डाला कि उन्हें इस मामले की कोई जानकारी नहीं है और उनका किसी भी तरह से इस मामले से संबंध है।
इस मामले में सवाल यह है:
जब एक पुलिसकर्मी ने न्यायालय में खुद स्वीकार किया कि उसने फर्जी दस्तावेज़ बनाए, तो FIR क्यों नहीं हुई?
क्या न्यायालय और कार्यपालक दंडाधिकारी द्वारा की गई निष्क्रियता पुलिस व्यवस्था पर से जनता का भरोसा तो नहीं डिगा रही?
क्या यह मामला न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता पर एक काला धब्बा नहीं बनता?