"कुंभ मेले में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ और अव्यवस्था""प्रयागराज कुंभ 2025 में लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी, लेकिन प्रशासनिक अव्यवस्था के कारण अव्यवस्थित हालात बन गए। अव्यवस्थित सुरक्षा व्यवस्था और बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण भगदड़ जैसी घटनाएं सामने आईं।"

नई दिल्ली । कुंभ मेले में अव्यवस्था। रेलवे स्टेशन पर हाल ही में हुई भगदड़ में 15 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है, और यह संख्या और बढ़ सकती है। मरने वालों में अधिकतर तीर्थयात्री थे, जो प्रयागराज कुंभ में स्नान के लिए निकले थे। यह घटना एक बार फिर सरकार और प्रशासन की तैयारियों पर गंभीर सवाल खड़े करती है।

तीर्थों का मूल उद्देश्य और बढ़ती भीड़

कुंभ मेले में अव्यवस्था । प्राचीन काल से तीर्थयात्रा कठिन मानी जाती थी। कुंभ और गंगासागर जैसे तीर्थों पर जाने की कठिनाई ही उनकी पवित्रता को और अधिक बढ़ाती थी। लेकिन आज, सरकारें इन आयोजनों को ‘इवेंट’ में बदल रही हैं। कुंभ जैसे आयोजनों की क्षमता से कई गुना अधिक भीड़ को आकर्षित करना प्रशासनिक नाकामी को जन्म देता है।

सरकारी प्रचार बनाम जमीनी सच्चाई

सरकारों को तीर्थस्थलों की सीमाओं और भीड़ नियंत्रण के उपायों को स्पष्ट करना चाहिए। लेकिन इसके उलट, मोदी और योगी सरकारें इसे एक ‘महाउत्सव’ की तरह प्रचारित कर रही हैं। कुंभ जैसे आयोजनों को एक ‘वाइब्रेंट गुजरात’ या ‘प्रवासी सम्मेलन’ की तरह बेचा जा रहा है। क्या सरकार को अंदाजा नहीं था कि जरूरत से ज्यादा भीड़ नियंत्रण से बाहर हो सकती है?

राजनीतिक लाभ के लिए भीड़ जुटाने की होड़

कुंभ मेले में अव्यवस्था । PM narendra modi नरेंद्र मोदी or cm yogi aditya nath सरकार का हर आयोजन एक ‘रिकॉर्ड’ बनाने पर केंद्रित है। ‘राम को लाने’ जैसे जुमलों से लेकर हिंदू आस्था को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने तक, हर चीज़ को राजनीतिक चश्मे से देखा जा रहा है। प्रयागराज कुंभ में आई अभूतपूर्व भीड़ भी इसी रणनीति का नतीजा थी।

संख्याओं का खेल और प्रशासनिक लापरवाही

सरकार दावा कर रही है कि अब तक 50 करोड़ लोगों ने कुंभ स्नान किया है, लेकिन इसी सरकार को मरने वालों की वास्तविक संख्या बताने में मुश्किल हो रही है। वीआईपी घाटों की मौजूदगी आम जनता को अत्यधिक भीड़ और अव्यवस्था में धकेलने का बड़ा कारण बनी।

सोशल मीडिया और ‘फोमो’ (FOMO) की राजनीति

सेलिब्रिटी और वीआईपी स्नान की तस्वीरों ने आम हिंदू जनता को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि अगर वे कुंभ में नहीं पहुंचे, तो उनकी धार्मिक पहचान पर सवाल खड़ा हो सकता है। यही ‘फियर ऑफ मिसिंग आउट’ (FOMO) करोड़ों लोगों को प्रयागराज खींच लाया, जिससे भगदड़ जैसी घटनाएं हुईं।

धर्म का राजनीतिकरण और अखाड़ों पर कब्जा

हिंदू समाज में धार्मिक प्रक्रियाएं स्वाभाविक रूप से चलती आई हैं, लेकिन बीजेपी और आरएसएस अब इन पर पूर्ण नियंत्रण चाहते हैं। अखाड़ों का राजनीतिकरण कभी इस स्तर पर नहीं हुआ था जैसा इस बार देखने को मिला।

भारतीय समाज की संवेदनहीनता बढ़ रही है?

एक समय था जब निर्भया कांड पर पूरा देश सड़कों पर उतर आया था। केरल में गर्भवती हथिनी की हत्या पर भी देश ने कड़ा विरोध किया था। लेकिन प्रयागराज में हुई भगदड़ पर प्रतिक्रिया यही रही कि “ऐसे आयोजनों में यह तो होता ही रहता है।” आखिर हमारी संवेदनशीलता कहां खो गई?

क्या हिंदू धर्म की मूल भावना बदल रही है?

उदारता, करूणा, मानवता और सहिष्णुता हिंदू धर्म की पहचान मानी जाती थी। लेकिन आज आक्रामकता, श्रेष्ठताबोध, घृणा और हिंसा इसका नया चेहरा बनते जा रहे हैं। यह चिंता का विषय है कि हिंदू समाज एक ऐसी भीड़ में तब्दील हो रहा है, जिसे राजनीतिक शक्तियां आसानी से नियंत्रित कर सकती हैं।

क्या यह भविष्य के लिए चेतावनी है?

पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने अपनी नई किताब में इसी तरह के सवाल उठाए हैं। क्या हम इस दिशा में सोचने को तैयार हैं? या फिर हम खुद को गिनी पिग बनाए जाने देने के लिए तैयार हैं?

हालिया कुंभ में हुई घटनाएं: प्रशासनिक विफलता के उदाहरण

2025 के प्रयागराज कुंभ में भीड़ नियंत्रण की भारी विफलता देखी गई। सरकारी वेबसाइट (https://kumbh.gov.in) पर दावा किया गया था कि भीड़ नियंत्रण के लिए विशेष उपाय किए गए हैं, लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत थी। कुछ प्रमुख घटनाएं:

  • पुलिस-प्रशासन की असफलता: लाखों श्रद्धालुओं के आगमन के बावजूद पर्याप्त पुलिस बल और सुरक्षाकर्मियों की तैनाती नहीं थी, जिससे जगह-जगह अव्यवस्था फैल गई।
  • स्वास्थ्य सेवाओं की कमी: मेला क्षेत्र में कई जगहों पर श्रद्धालु बेहोश होकर गिरते देखे गए, लेकिन उन्हें तत्काल चिकित्सा सुविधा नहीं मिल सकी।
  • सुविधाओं की भारी कमी: स्नान घाटों तक पहुंचने के लिए बनाई गई टेंट सिटी में पेयजल, शौचालय और साफ-सफाई की व्यवस्थाएं पूरी तरह चरमरा गईं।
  • ट्रेन और बस सेवा की अव्यवस्था: रेलवे और परिवहन विभाग भीड़ प्रबंधन में विफल साबित हुआ, जिससे हजारों तीर्थयात्री घंटों तक फंसे रहे।
  • मेला क्षेत्र में चिकित्सा आपातकाल: अस्पतालों में पर्याप्त चिकित्सा सुविधा नहीं होने के कारण कई श्रद्धालुओं की हालत बिगड़ी।
  • वीआईपी घाटों की प्राथमिकता: आम श्रद्धालुओं को घंटों इंतजार करना पड़ा, जबकि विशेष वीआईपी बंदोबस्त किए गए।
  • यातायात प्रबंधन की विफलता: सड़कों पर भारी जाम और असंगठित परिवहन के कारण हज़ारों लोग फंसे रहे।

ऐतिहासिक भगदड़ की घटनाएं: क्या हमने कुछ सीखा?

भारत में धार्मिक आयोजनों में भगदड़ की घटनाएं पहले भी होती रही हैं, लेकिन हर बार प्रशासनिक चूक साफ दिखाई देती है। कुछ प्रमुख घटनाएं:

1992 मैसूर दशहरा समारोह: चामुंडी पहाड़ियों पर भगदड़ में 50 से अधिक लोग मारे गए।

2013 इलाहाबाद रेलवे स्टेशन भगदड़: महाकुंभ के दौरान स्टेशन पर भीड़ के दबाव से एक पुल ध्वस्त हो गया, जिससे 36 लोग मारे गए।

2008 नंदा देवी मंदिर भगदड़: हिमाचल प्रदेश के इस मंदिर में भगदड़ मचने से 162 श्रद्धालु मारे गए।

2005 मंडहर देवी मंदिर, महाराष्ट्र: मंदिर परिसर में लगी आग और भगदड़ में 300 से अधिक लोग मारे गए।

By Jitendra Singh Yadav

जितेंद्र सिंह यादव वरिष्ठ पत्रकार, आरटीआई कार्यकर्ता और राजनीतिक विश्लेषक 15+ वर्षों का पत्रकारिता अनुभव, यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (UNI) से जुड़े। स्वतंत्र विश्लेषक, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर गहरी पकड़। Save Journalism Foundation व इंदौर वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन के संस्थापक। Indore Varta यूट्यूब चैनल और NewsO2.com से जुड़े। 📌 निष्पक्ष पत्रकारिता व सामाजिक सरोकारों के लिए समर्पित।

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