कहने को तो बहुत कुछ है मगर किससे कहें हम..!


प्रसंगवश: सिद्धार्थ माछीवाल, इंदौर

कहने को तो बहुत कुछ है मगर किससे कहें हम, प्रख्यात गीतकार जावेद अख्तर द्वारा फिल्म सिलसिला के एक गीत के लिए लिखी गई यह लाइन इन दिनों मध्य प्रदेश के सत्तासीन राजनीतिक माहौल पर फिट बैठ रही है, राज्य में लंबे समय से सत्ता पर काबिज भाजपा की मोहन सरकार को लगभग साल भर हुआ है और आलम यह है कि टिकट मिलने के लिए संगठन सूत्र साधने से लेकर चुनाव जीतने तक जी तोड़ कोशिश के बाद साल भर पहले विधानसभा पहुंचने वाले विधायक अपने ही लोगों की वाजिब मांग पर न्याय नहीं दिला पाने और जरूरतमंदों की मदद नहीं कर पाने के कारण अपने ही मतदाताओं से आंखें नहीं मिला पा रहे हैं, नतीजतन मऊगंज विधायक प्रदीप पटेल रीवा पुलिस के कार्यालय में जमीन पर साष्टांग दंडवत होकर कहते नजर आए कि शराब माफिया को संरक्षण के चलते आप शराब माफिया से ही मेरा मर्डर करवा दीजिए, इसी स्थिति को लेकर नाराज चल रहे पाटन विधायक अजय बिश्नोई ने भी स्पष्ट किया कि पूरी सरकार शराब माफिया के सामने नतमस्तक हो चुकी है, देवरी विधायक बृज बिहारी पटेरिया का सामना अपने ही क्षेत्र के सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति के परिजनों को न्याय दिलाने के दौरान भ्रष्ट व्यवस्था से हुआ तो उन्हें खुद को असहाय महसूस करते हुए उन्होंने थाने में बैठकर ही अपना इस्तीफा लिख दिया, इस बीच उन्हें मनाने के लिए वरिष्ठतम विधायक गोपाल भार्गव आगे आए जो खुद कई मुद्दों पर नाराज चल रहे हैं विगत दिनों पूर्व ऐसी ही स्थिति भाजपा के वरिष्ठ नेता और नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के समक्ष बनी जब वह अपनी विधानसभा में लोगों को भाजपा की सदस्यता दिलाने पहुंचे तो लोगों ने शराबखोरी और नशाखोरी के कारण सवालों की झड़ी लगा दी नतीजतन उन्हें मौके से ही घोषणा करनी पड़ी की तीन दिन में यदि पुलिस ने नशाखोरी पर लगाम नहीं लगाई तो चौथे दिन अधिकारियों की खैर नहीं, नतीजेतन पुलिस ने जैसे तैसे नशाखोरों पर कार्रवाई की।

ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि कथित कानून व्यवस्था वाले राज्य में जब महिला अपराध, नशाखोरी और भ्रष्टाचार के मामले में भी कार्यवाही के लिए विधायक और मंत्रियों को भी अधिकारियों कर्मचारियों के सामने साष्टांग दंडवत होना पड़े तो फिर आम जनता द्वारा विधायक और मंत्रियों से उम्मीद करना बेमानी है! ऐसा नहीं है कि इस स्थिति का सामना महज आम जनता को करना पड़ रहा हो बल्कि विकास कार्यों से लेकर राहत और जनहित के तमाम मोर्चे पर विधायकों और मंत्रियों की स्थिति भी आम जनता से अलग नहीं है जो खुद अपने-अपने क्षेत्र के हर काम के लिए सरकार के समक्ष दंडवत नजर आते हैं इनमें कई ऐसे हैं जो न चाहते हुए भी अब अपना दर्द बयां कर रहे हैं बल्कि अधिकांश ऐसे हैं जो अब सब देखते सुनते हुए भी कुछ नहीं कहना चाहते ऐसा नहीं है कि सरकार इस स्थिति में सुधार नहीं चाहती लेकिन वित्तीय संकट के दौर में राजस्व जुटाने से लेकर सरकार चलाने की वर्तमान राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्थाएं कहीं ना कहीं इसके लिए जिम्मेदार महसूस होती हैं ऐसे माहौल में सत्ता, संगठन और प्रशासन से लेकर पुलिस तक अपने संरक्षण और हित साधने के लिए अब मुखिया को साधे रखने की परंपरा अब हर कहीं हैं इसलिए भी कई सामान्य और नीतिगत मामलों में तत्काल जनप्रतिनिधियों की सुनवाई नहीं हो पाती लिहाजा इन्हीं परिस्थितियों के दूरगामी परिणामो से जनप्रतिनिधियों को भी दो-चार होना पड़ रहा है। बावजूद इसके सत्ता और संगठन को अपने ही विधायकों की मान मनौवल के डैमेज कंट्रोल के साथ जनता से लेकर जनप्रतिनिधियों के हित और उनके स्वाभिमान की दिशा में प्रशासनिक और राजनीतिक कसावट की बड़ी दरकार है।

By Neha Jain

नेहा जैन मध्यप्रदेश की जानी-मानी पत्रकार है। समाचार एजेंसी यूएनआई, हिंदुस्तान टाइम्स में लंबे समय सेवाएं दी है। सुश्री जैन इंदौर से प्रकाशित दैनिक पीपुल्स समाचार की संपादक रही है। इनकी कोविड-19 महामारी के दौरान की गई रिपोर्ट को देश और दुनिया ने सराहा। अपनी बेबाकी और तीखे सवालों के लिए वे विख्यात है।