मेडिकल पीजी छात्रा से अब 30 लाख नहीं वसूल सकेगा एमजीएम मेडिकल कॉलेज, हाई कोर्ट ने वसूली पर लगाई रोक
इंदौर, 19 जुलाई 2024
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंड पीठ में मध्य प्रदेश सरकार के वर्ष 2019 में जारी उस आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें शासकीय मेडिकल कॉलेजों में अध्यनरत विध्यार्थियों को बीच में ही प्रवेश सीट छोडने पर 30 लाख रु तक की राशि जमा करने का मनमाना आदेश है। रोचक तथ्य ये भी है कि यह मामला लोक सभा में उठने पर केवल मध्य प्रदेश ही नहीं तमाम राज्यों में मेडिकल स्टूडेंट्स पर लादा गया यह तालिबानी आदेश रद्द कर दिया गया था। रद्द किए जाने के बाद अब मध्य प्रदेश सरकार और महात्मा गांधी स्मृति चिकित्सा महाविध्यालय (एमजीएम) अब भी एक अंडर पोस्ट ग्रेजुएट छात्रा से यह कहकर वसूली करने डटा हुआ था कि यह नियम वर्तमान अंडर पोस्ट ग्रेजुएट छात्रों पर ही लागू है। 2022-23 सत्र में प्रवेश लिए गए स्टूडेंट्स को 30 लाख शुल्क सीट छोडने के बदले चुकाना ही होगा। इस आदेश के चलते एक प्रभावित छात्रा शुभांगी राज ने मामले को हाई कोर्ट में चुनौती दी है। बीते शुक्रवार को इंदौर हाई कोर्ट की डबल बेंच के न्यायमूर्ति जस्टिस ए धर्माधिकारी और जस्टिस दुपाला वेंकट रमना ने पीड़ित छात्रा को अन्तरिम राहत देते हुए एमजीएम कॉलेज द्वारा की जा रही 30 लाख की वसूली पर रोक लगाकर तथा छात्रा द्वारा जमा सभी मूल दस्तावेज़ उसे वापस लौटाने के निर्देश दिये हैं।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता आदित्य संघी ने दावा किया कि इस मेडिकल कॉलेज के इस नियम के फलस्वरूप हजारों मेडिकल छात्रों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है। अधिवक्ता संघी ने बताया कि संविधान के आर्टिकल 14 और 19 में हर नागरिक को अधिकार है कि वे अपने भविष्य के लिए शिक्षा के विषय में निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं। मसलन किसी भी नागरिक विध्यार्थी को कोई भी शिक्षण संस्थान पाठयक्रम पूरा करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है। आपको बता दें कि यहाँ पीड़ित छात्रा ने सत्र 2022-23 में एमजीएम मेडिकल कॉलेज में पीजी एनाटोमी में प्रवेश लिया था और नियम अनुसार प्रवेश के दौरान उसने अपने समस्त मूल दस्तावेज़ (मार्कशीट, सर्टिफिकेट) एमजीएम प्रबंधन को जमा कर दिया था। अब जबकि पीड़िता ने प्रवेश लेने के बाद पाठ्यक्रम बीच में ही छोड़ना चाहा तब उसे 30 लाख रु की पेनल्टी की मांग रखते हुए मूल दस्तावेज़ नहीं लौटाए जा रहे थे। ऐसे में इंदौर हाई कोर्ट ने छात्रा को एक बड़ी राहत दी है ।
सवाल -क्या पेनल्टी चुका चुके अन्य विध्यार्थियों को भी मिलेगा लाभ ?
पीड़ित छात्रा के अधिवक्ता आदित्य संघी ने न्यूजओ2 को बताया कि दरअसल लोक सभा में मामला उठने के बाद इस वसूली वाले नियम को शून्य कर दिया है लेकिन अब आपका ये सवाल लाज़मी है कि जो छात्र इस तरह की लाखों की पेनल्टी चुका चुके हैं क्या उनको भी सरकारी मेडिकल कॉलेजों द्वारा राशि लौटाकर राहत दी जाएगी ? सांघी ने कहा कि हमारा प्रयास है कि इस नियम को संविधान विरोधी करार दिये जाने की कवायद लोक सभा में हो चुकी है और राज्य सरकारें भी अपरोक्ष रूप से ये मान चुकी हैं कि ये नियम गलत है, तब इस नियम के भूतलक्षी प्रभाव ( जो छात्र 2022 के पहले प्रवेश लेकर पाठ्यक्रम बीच में छोडने पर लाखों की पेनल्टी चुका चुके हैं) के तहत भी पेनल्टी लौटाई जानी चाहिए। निश्चित तौर पर इस मामले में अंतिम आदेश आने के बाद स्थिति साफ हो सकेगी।
अब सवाल है कि क्यों लगाता है मेडिकल कॉलेज पेनल्टी ?
जानकारों की मानें तो मेडिकल कॉलेजों द्वारा प्रवेश लेकर बीच में ही पाठ्यक्रम छोड़ने वाले छात्रों पर पेनल्टी लगाने के पीछे क्षतिपूर्ति किए जाने की मंशा और मजबूरी है। दरअसल शासकीय कॉलेजों के मेडिकल में स्नातक और पीजी पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए विध्यार्थियों में तगड़ी प्रतिस्पर्धा रहती है। नीट और अन्य परीक्षा माध्यमों से विध्यार्थियों को मेडिकल कॉलेज में प्रवेश दिया जाता है, ऐसे में प्रवेश लेकर बीच में ही पाठयक्रम छोड़ देने से प्रतिस्पर्धा (cut-off) में पिछड़े विध्यार्थियों का नुकसान हो जाता है। बीच में सीट छोड़ने पर उसे दोबारा भरना मेडिकल कॉलेज प्रबंधन के लिए एक बड़ी चुनौती होती है। यही वजह है कि पेनल्टी के जरिये कॉलेज प्रबंधन छात्रों को बीच में ही पाठ्यक्रम न छोड़ने के लिए एक तरह से प्रेरित करता है।
क्यों बीच पाठ्यक्रम में विध्यार्थी छोड़ना चाहते हैं कॉलेज ?
न्यूजओ2 ने इस संबंध में जब कई जानकार और विध्यार्थियों से बात की तो उन्होने बताया कि दरअसल प्रवेश लेने के बाद जब पाठ्यक्रम में शामिल होते हैं, तब कॉलेजों के पढ़ाने का तरीका वहाँ मौजूद उपकरण, प्रायोगिक अध्ययन और सीखने के लिए उपयोगी वातावरण परखने के बाद कई बार और बेहतर कॉलेज तलाशना एक बड़ा कारण है। इसके अलावा मेडिकल कॉलेज में होने वाली रैगिंग, यहाँ जूनियर डॉक्टरों से एक दिन में 12 से 24 घंटे ली जाने वाली सेवाएँ , शासकीय कॉलेजों में पढ़ाने वाली फेकल्टी की गुणवत्ता कॉलेज छोड्ने का बड़ा कारण होते हैं।
क्या कहा कोर्ट ने ?
न्यायालय ने 18 जुलाई को आदेश जारी करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के मूल दस्तावेज़ एमजीएम मेडिकल कॉलेज लौटाए और आगामी चार सप्ताह में न्यायालय के आदेश की पालना किए जाने के संबंध में जवाब प्रस्तुत करे।