दिल्ली विश्वविद्यालय और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में एक नया दार्शनिक सिद्धांत प्रस्तुत किया है – “डिग्री है, मगर तुम्हारे जानने लायक नहीं!”
अब सवाल उठता है कि नौ साल पहले जब अमित शाह और दिवंगत अरुण जेटली ने खुद प्रेस कॉन्फ्रेंस कर प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री सार्वजनिक की थी, तो वह असली थी या गोपनीयता भंग करने का अपराध?
सॉलिसिटर साहब ने कोर्ट में बड़ी गंभीरता से तर्क दिया कि—
- जानने का अधिकार असीमित नहीं है – यानी डिग्री देखनी है तो RTI छोड़ो, ज्योतिषी से कुंडली मिलवाओ!
- निजता का अधिकार जानने के अधिकार से बड़ा है – बिल्कुल! फिर सरकार को भी जनता की निजी जानकारियां जुटाने से परहेज करना चाहिए।
- अगर ये डिग्री सार्वजनिक हो गई, तो विश्वविद्यालय के लाखों छात्रों की प्राइवेसी खतरे में पड़ जाएगी! – गजब! यानी प्रधानमंत्री की डिग्री खोलते ही लाखों छात्रों के मार्कशीट हवा में उड़ जाएंगे!
यानी अब डिग्री कोई शैक्षिक प्रमाणपत्र नहीं, बल्कि राष्ट्रीय रहस्य बन चुकी है, जिसे देखने के लिए शायद “डिग्री देखने का अधिकार” नाम का कोई नया कानून बनाना पड़ेगा!
अब जनता के पास दो ही रास्ते हैं—
- मोदी जी की डिग्री देखने के लिए पहले उनका जिगरी मित्र बनें।
- दिल्ली विश्वविद्यालय की तिजोरी का ताला खोलने के लिए “डिग्री का ब्रह्मास्त्र” खोजें!
वैसे, इन तमाम दलीलों के बाद अब यह तय हो गया कि “डिग्री सत्य है, परंतु इसे देखने का मोह त्यागना ही मोक्ष है!”