इंदौर, 16 नवंबर 2024 (न्यूजओ2 डॉट कॉम)/7724038126: मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय High Court की इंदौर खंडपीठ ने एक ऐतिहासिक फैसले में वैवाहिक जीवन में स्वतंत्रता (#MaritalFreedom) और करियर #career के अधिकार को महत्व देते हुए पति द्वारा पत्नी पर नौकरी छोड़ने का दबाव डालने को मानसिक क्रूरता माना और तलाक की मंजूरी दी। यह फैसला मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत और न्यायधीश एस ए धर्माधिकारी की खंडपीठ ने 13 नवंबर, 2024 को यह फैसला सुनाया।
कुटुंब न्यायालय के फैसले को दी थी हाई कोर्ट में चुनौती
यह निर्णय अपीलकर्ता पत्नी द्वारा कुटुंब न्यायालय family court , इंदौर के फैसले को चुनौती देने के बाद आया, जिसमें उसकी तलाक की याचिका को खारिज कर दिया गया था। हाईकोर्ट ने इस मामले में वैवाहिक अधिकारों की व्याख्या करते हुए इसे न्यायिक दृष्टांत के रूप में प्रस्तुत किया।
यह है मामला
पत्नी शासकीय नौकरी में है पदस्थ
अपीलकर्ता पत्नी के वकील राघवेंद्र सिंह रघुवंशी ने अदालत में यह दलील दी कि 2014 में शादी के बाद, दोनों पति-पत्नी भोपाल में सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे थे। 2017 में पत्नी को एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस, इंदौर में सरकारी नौकरी मिल गई, जबकि पति को नौकरी नहीं मिली। इस कारण पति का अहंकार आहत हुआ, और उसने पत्नी पर नौकरी छोड़ने का दबाव डालना शुरू कर दिया। जब पत्नी ने नौकरी छोड़ने से मना कर दिया, तो पति ने उसे मानसिक और भावनात्मक रूप से प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। इसके चलते पत्नी ने पति के खिलाफ तलाक की याचिका दायर की, जिसे परिवार न्यायालय ने साक्ष्यों के अभाव में खारिज कर दिया था।
हाईकोर्ट ने की महत्वपूर्ण टिप्पणी
हाईकोर्ट ने कहा कि वैवाहिक जीवन में किसी भी जीवनसाथी को दूसरे पर करियर को लेकर दबाव बनाने का अधिकार नहीं है।
मानसिक क्रूरता: अदालत ने पति के इस रवैये को मानसिक क्रूरता मानते हुए कहा कि नौकरी करना एक मौलिक अधिकार है। किसी साथी के दबाव में आकर इसे छोड़ने के लिए मजबूर करना अनुचित है।
परिवार न्यायालय की त्रुटि: हाईकोर्ट ने पाया कि कुटुंब न्यायालय ने मामले की साक्ष्यों की सही तरह से जांच नहीं की। पति द्वारा पत्नी पर नौकरी छोड़ने का दबाव और इससे उपजे मानसिक तनाव को नजरअंदाज किया गया था।