जबलपुर / मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने उमरिया कलेक्टर द्वारा पारित जिला बदर के आदेश को निरस्त कर दिया है। अदालत ने इस आदेश को मनमाना करार देते हुए कलेक्टर पर ₹25,000 की कॉस्ट लगाई है।

संभागायुक्त पर सख्त टिप्पणी

अदालत ने संभागायुक्त शहडोल की भूमिका पर भी सवाल उठाए और कहा कि वे “डाकघर की तरह काम नहीं कर सकते”। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी अपील पर विचार करते समय प्रशासनिक अधिकारियों को अपने विवेक और तर्कशीलता का उपयोग करना आवश्यक है।

याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं

उमरिया जिले के पाली थाना क्षेत्र की निवासी मुन्नी उर्फ माधुरी तिवारी ने जिला बदर आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। याचिका में उन्होंने बताया कि उनके खिलाफ छह आपराधिक मामले दर्ज हैं, लेकिन किसी भी मामले में उन्हें सजा नहीं हुई।

हाईकोर्ट ने पाया कि कलेक्टर ने महज पुलिस अधिकारी मदनलाल मरावी के बयान के आधार पर याचिकाकर्ता को जिला बदर कर दिया, जबकि उनके खिलाफ कोई ठोस प्रमाण नहीं था।

सरकार को मुआवजा देने का आदेश

अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि कलेक्टर सात दिनों के भीतर याचिकाकर्ता को ₹25,000 का भुगतान करें। साथ ही, भविष्य में इस तरह के मामलों में विधि सम्मत निर्णय लेने की हिदायत दी गई।

By Jitendra Singh Yadav

जितेंद्र सिंह यादव वरिष्ठ पत्रकार | आरटीआई कार्यकर्ता | राजनीतिक विश्लेषक 15+ वर्षों का पत्रकारिता अनुभव, UNI से जुड़े। Save Journalism Foundation व इंदौर वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन के संस्थापक। Indore Varta और NewsO2.com से जुड़े। निष्पक्ष पत्रकारिता व सामाजिक सरोकारों के लिए समर्पित।