झंडा-बैनर- रैली महंगे चुनाव से जनता का भला नहीं, ईमानदार, कर्मठ प्रत्याशी चुनो- चौरसिया
‘बम कांड’ पर की टिप्पणी ‘बड़े पैसे वाले को प्रत्याशी बनाया, उसी का खामियाजा भुगत रही कांग्रेस’
इंदौर
मुदित चौरसिया उम्र 39, निवासी- भोपाल, शिक्षा- आईटीआई
मप्र के इंदौर से लोकसभा चुनाव 2024 लड़ रहे भोपाल निवासी निर्दलीय प्रत्याशी मुदित चौरसिया बताते हैं कि चुनाव बहुत महंगे हो गए हैं जिनका कोई हिसाब किताब नहीं है। एक आम आदमी के वश की बात नहीं है। मैं सबके पास जाकर जनसम्पर्क कर रहा हूँ। मैंने एक माइक खरीदा है और अपनी कार पर लगाकर अपनी बात कहता हूँ। युवा प्रत्याशी चौरसिया बड़े नेताओं के चुनाव पर कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि झण्डा, बैनर, रैली, महंगे चुनाव से जनता का भला नहीं होने वाला, उसे ऐसा प्रत्याशी चयनित करना चाहिए तो ईमानदार और कर्मठ हो। वे इंदौर में हुए बम कांड पर भी टिप्पणी करते हुए कहते हैं कि पैसे वाला प्रत्याशी चयन का खामियाजा ही कांग्रेस भुगत रही है। वे अपनी पीड़ा बयां करते हुए कहते हैं कि ईमानदार लोगों की कद्र राजनीतिक पार्टियों को नहीं है। चौरसिया दावा करते हैं कि जब वे जनसंपर्क के लिए जाते हैं तो कई लोग उन्हें देशद्रोही कहते हैं। वे यहाँ तक कहते हैं कि चुनाव में तुम उन लोगों (सत्ता) के खिलाफ खड़े क्यों हुए?
मुदित शिक्षित परिवार से आते हैं। पिता इरिगेशन विभाग से सेवानिर्वत्त, माँ शासकीय शिक्षा सेवा में, बहन डॉक्टर और भाई प्रोफेसर है लेकिन मुदित पारंपरिक नौकरी से अलग अपना मिनरल वॉटर का कारोबार करते हैं। चुनावी रण में उतरने के पीछे की वजह भी मुदित कुछ अलग बताते हैं। वे कहते हैं कि उनके दाम्पत्य जीवन का मसला कोर्ट में चल रहा है। वे कोर्ट- कचहरी के चक्कर में बीते कुछ सालों से त्रस्त हो चुके हैं। मुदित कहते हैं आदमी के लिए कोई कानून नहीं बना है। मैंने अपने व्यक्तिगत जीवन में बहुत परेशानी उठाई है। मुझे लगता है कानून में संसोधन होना चाहिए। देश और समाज में बदलाव के लिए मैं चुनावी मैदान में उतरा हूँ। मुदित के अनुसार उन्होने पहला चुनाव विधानसभा 2023 भोपाल से लड़ा था और 196 मत मिले थे।
शिक्षा पाठ्यक्रम में ह्यूमन राइट्स, आरटीआई,ज्यूडिशियल अवेयरनेस हो शामिल
चौरसिया बताते हैं कि शिक्षा पाठ्यक्रम में ह्यूमन राइट्स सूचना का अधिकार (आरटीआई), इलेक्शन अवेयरनेस और ज्यूडिशियल अवेयरनेस शामिल किया जाये। चौरसिया कहते हैं कि सरकार से मेरे तीन प्रश्न हैं जिनका मैं जवाब चाहता हूँ। पहला यह कि न्याय व्यवस्था सरल, सुलभ क्यों नहीं है? वर्षों चलने वाले मामलों में स्पीड लाने क्या किया जा रहा है? उच्च गुणवत्ता का सरकारी अस्पताल और कॉलेज स्तर तक निशुल्क शिक्षा का प्रावधान क्यों नहीं है?