राजेश जैन दद्दू, इंदौर
31 अगस्त 2024
अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज के चातुर्मास के धर्म प्रभावना रथ के तीसरे पड़ाव के पांचवें दिन भक्तामर महामंडल विधान के तीसरे दिन भगवान आदिनाथ की आराधना अर्घ्य चढ़ाकर की गई। धर्म समाज प्रचारक राजेश जैन दद्दू ने बताया कि विधान के प्रारंभ से पहले भगवान का अभिषेक और शांतिधारा की गई। इस अभिषेक और शांतिधारा का लाभ विधान के मुख्य पुण्यार्जक निर्मल, आकाश, राजुल, विकास, रेखा, गीतांश, गतिक, भविक, हितिका पांड्या परिवार, गुमास्ता नगर को प्राप्त हुआ। सुनील गोधा, पवन पाटोदी और संजय पापड़ीवाल ने बताया कि तीसरे दिन चार काव्यों की आराधना के साथ 224 अर्घ्य समर्पित किए गए, जिससे तीन दिन में कुल 672 अर्घ्य समर्पित हो चुके हैं। यह विधान 28 अगस्त तक आयोजित होगा।
इस अवसर पर सभा में चित्र अनावरण और दीप प्रज्वलन मुख्य पुण्यार्जक द्वारा किया गया। मुनि श्री का पाद प्रक्षालन राजेंद्र सोनी मल्हारगंज द्वारा किया गया, और शास्त्र भेंट प्रेमलता पाटनी और गरिमा पाटनी खातेगांव द्वारा किया गया। सभा में उपस्थित सामाजिक संसद के कोषाध्यक्ष राजेंद्र सोनी का स्वागत कमलेश जैन द्वारा किया गया।
मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज ने कहा कि मंदिर वह स्थान है जहां पाप का मल धोया जाता है। मंदिर समवसरण का प्रतीक है, जहां जाकर प्राणी मात्र के अंदर करुणा, दया, प्रेम, और वात्सल्य के भाव जागृत हो जाते हैं। यहां, शत्रु को देखकर भी व्यक्ति मैत्री भाव के साथ भगवान की आराधना करता है। मंदिर संस्कार और संस्कृति का केंद्र है, जहां हम अपनी प्राचीन संस्कृति और संस्कारों को सीखते हैं। मंदिर से हमें परिवार में प्रेम और स्नेह करने का संदेश मिलता है।
मुनि श्री ने आगे कहा कि मंदिर वह स्थान है, जहां बैठकर अनंत भवों के पाप भी क्षण भर में नष्ट हो जाते हैं। आजकल लोग कहते हैं कि मंदिर जाने से क्या होता है, उन्हें मैं बताना चाहता हूं कि मंदिर वास्तु और ज्योतिष के आधार पर बनते हैं, जिससे वहां की ऊर्जा सकारात्मक होती है और हमारे अंदर एक नई चेतना जागृत करती है। इसके माध्यम से हम अपने विचारों और भावों को पवित्र करते हैं।
घर संपूर्ण वास्तु ज्योतिष के अनुसार नहीं बनता है, इसलिए वहां पर साधना का संपूर्ण फल नहीं मिलता। जैसे कपड़ों को धोबी घाट पर धोया जाता है और रोगी का इलाज अस्पताल में होता है, वैसे ही मंदिर वह स्थान है, जिसे हम मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रोगों के इलाज के लिए एक अस्पताल या धोबी घाट कह सकते हैं। मंदिर हमें आपस में जोड़ने की शिक्षा देता है, और जो मंदिर नहीं जाता, वह आपस में कभी एक-दूसरे से जुड़ नहीं सकता। उसके अंदर राग और द्वेष के भाव निरंतर बने रहते हैं।