1 जुलाई से लागू तीन नये आपराधिक कानूनों ने मानव अधिकार कार्यकर्ताओं की क्यों बढ़ाई है चिंता…!

इंदौर, 01 जुलाई 2024

डेढ़ सौ करोड़ आबादी वाले भारत के लगभग डेढ़ दशक से ज्यादा पुराने आपराधिक न्याय शास्त्र को आज सोमवार 1 जुलाई से बदल दिया गया है। भारतीय दंड संहिता 1860 (IPC), भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (crpc) , इंडियन एविडेंस एक्ट 1872 की जगह अब भारतीय न्याय संहिता 2023 (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 (BSA) प्रभावी हो गया है। इन बदलावों के आज से लागू होते ही देश का बुद्धिजीवी वर्ग, मानव अधिकार कार्यकर्ता, सामाजिक कार्यकर्ता और विशेष तौर पर देश की कई अधिवक्ता परिषदों ने इन प्रभावी क़ानूनों की विसंगतियों को लेकर नए क़ानूनों के विरोध में मोर्चा खोल दिया है।

वरिष्ठ पत्रकार, स्वतंत्र आलोचक और मानव अधिकार कार्यकर्ता जितेंद्र सिंह यादव के अनुसार इन क़ानूनों के प्रभावी होने के बाद राज्य पूरी तरह पुलिस स्टेट में तब्दील हो गया है। उधर इन क़ानूनों का स्वागत करने वाले विधि विख्याता और भाजपा विधि प्रकोष्ठ से जुड़े पंकज वाधवानी ने कहा कि देश की विधि और कानून व्यवस्था में ये बदलाव सकारात्मक बदलाव लेकर आया है।

नए कानून में नए अपराध हुए शामिल- वाजपेयी

विधि विद्वान अधिवक्ता नकुल वाजपेयी ने बताया कि नए क़ानूनों में नए अपराधों को शामिल किया गया है, जैसे शादी का वादा कर धोखा देने के मामले में 10 साल की जेल, जाति, संप्रदाय, समुदाय और लिंग के आधार पर भीड़ हमला ( मोब लिंचिंग) के मामले में आजीवन कारावास जैसे प्रावधान किए गए हैं। इसके अलावा राजद्रोह की जगह देशद्रोह को परिभाषित करना , देश के खिलाफ अलगाववाद का प्रयास करना, देश की एकता और अखंडता के खिलाफ गतिविधियों को परिभाषित किया गया है।

आपको बता दें कि एक जुलाई की रात 12 बजे से देश भर के 650 से ज्यादा जिला न्यायालयों और 16 हजार से ज्यादा पुलिस थानों को ये नई व्यवस्था के तहत काम करना है। प्रथम दृष्टया अपराध (एफआईआर) दर्ज करने के लिए पुरानी आईपीसी की धारा 154 की जगह भारतीय न्याय संहिता की धारा 173 में दर्ज किया जाएगा। ऐसा नहीं है कि इन क़ानूनों का विरोध केवल विपक्ष शासित राज्य ही कर रहे हैं, इन क़ानूनों के विरोध में ऐसे कई राज्यों के सुर मुखर हुए हैं जहां बीजेपी की सरकारें हैं।  

इंदिरा जय सिंह ने हाल ही में पत्रकार करण थापर को दिये गए एक इंटरव्यू में नए आपराधिक क़ानूनों पर कहा कि यह तीन नए कानून हमारे सामने एक बड़ी न्यायिक समस्या लेकर आ रहे हैं। उन्होने दावा किया कि इससे अभियुक्त की जिंदगी और आज़ादी खतरे में पड़ सकती है। इंदिरा के अनुसार कानून का मूलभूत तत्व है कि कोई भी तब तक सजा का पात्र नहीं है, जब तक ये सिद्ध नहीं हो जाता , उसने अपराध किया है। इसे कानून की भाषा में substentive law यानि मूल कानून कहते हैं जबकि नए क़ानूनों के तहत अब जो पहले अपराध नहीं था आज वो अपराध बन गया है। अधिवक्ता इंदिरा जय सिंह ज़ोर देते हुए कहती हैं पुरानी दंड प्रक्रिया संहिता की अतीत में व्याख्या हुई है।

नए कानून न्याय पालिका के क्षेत्राधिकार पर अतिक्रमण है- यादव

स्वतंत्र आलोचक जितेंद्र सिंह यादव ने कहा हमारी न्याय व्यवस्था में अपराध दर्ज कर जांच करने का काम पुलिस और अन्य जांच एजेंसियों के लिए तय था। जबकि जांच प्रक्रिया की परख करना और गुण दोष के आधार पर प्रकरण का विचारण करना न्यायालय का कार्य क्षेत्र था। अब नई व्यवस्था के तहत प्रकरण दर्ज किया जाये या न किया जाये, ये पुलिस तय करेगी। यह एक तरह से न्यायपालिका के क्षेत्राधिकार पर पुलिस या ये कहें पुलिस को संचालित करने वाली राज्य सरकार का अतिक्रमण है। पुलिस को एफआईआर दर्ज किए जाने या नहीं किए जाने के फैसले लेने की शक्ति दिये जाने के परिणाम निष्पक्षता को निश्चित तौर पर प्रभावित करेंगे। आप देखिये, डेढ़ सौ करोड़ की आबादी पर लागू कानून हमारे जनप्रतिनिधियों ने महज ध्वनिमत से उस समय लागू किया जबकि देश की 60 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाला विपक्ष सदन से निलंबित था। बगैर मुकम्मल बहस और चर्चा के इस तरह आपराधिक क़ानूनों को बदल दिये जाना लोकतान्त्रिक नहीं है।

नए कानून क्रांतिकारी परिवर्तन है- वाधवानी

हाई कोर्ट अधिवक्ता पंकज वाधवानी ने बताया कि सरकार द्वारा आपराधिक कानून को लाकर देश में क्रांतिकारी परिवर्तन किया है इससे अनेक सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलेंगे। न्याय व्यवस्था पर उठ रही विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए यह बहुत जरूरी था, किंतु पुलिस कस्टडी जो पहले अधिकतम 14 दिन होती थी उसे बढ़ाकर 60-90 दिन तक कर दिया गया है। इस बात की पूर्ण आशंका है कि पुलिस इस शक्ति का दुरुपयोग कर सकती है। पुलिस के द्वारा कस्टोडियन हरासमेंट के मामले बढ़ सकते हैं। इसके अलावा मामले में आरोप तय करने के लिए 60 दिन की जो समय सीमा तय की गई है, वह सही है । इसके अलावा अगर कोई जज किसी मामले में आदेश सुरक्षित रख लेता है तो 45 दिन के अंदर उसे आदेश सुनाना होगा।

By Neha Jain

नेहा जैन मध्यप्रदेश की जानी-मानी पत्रकार है। समाचार एजेंसी यूएनआई, हिंदुस्तान टाइम्स में लंबे समय सेवाएं दी है। सुश्री जैन इंदौर से प्रकाशित दैनिक पीपुल्स समाचार की संपादक रही है। इनकी कोविड-19 महामारी के दौरान की गई रिपोर्ट को देश और दुनिया ने सराहा। अपनी बेबाकी और तीखे सवालों के लिए वे विख्यात है।