इंदौर, 31 जुलाई 2024
इंदौर की एक स्थानीय अदालत में बीते दिनों एक जज द्वारा एक दुष्कर्म पीड़िता की इज्जत उछाले जाने के मामले में आज शहर की महिला संगठनों ने राष्ट्रपति और भारत के मुख्य न्यायधीश के नाम ज्ञापन संभागआयुक्त को सौंपा है। साथ ही संभाग आयुक्त कार्यालय से पैदल चल कर जिला न्यायालय पहुँच कर प्रधान न्यायधीश को ज्ञापन सौंपा गया। यह पहली बार है जब किसी जज के खिलाफ महिलाएं और कई महिला एडवोकेट्स उतर आई हों और प्रधान जिला एवं सत्र न्यायधीश के कक्ष तक जाकर उन्हें ज्ञापन सौंपा हो।
उच्च न्यायालय की अधिवक्ता अपूर्वा शुक्ला ने बताया कि दुष्कर्म के मामलों में समान्यत: पीड़िताएं अन्याय के खिलाफ आवाज नहीं उठा पाती हैं। लेकिन इस पीड़िता ने अपनी आवाज उठाई है, इसलिए मामल प्रकाश में आया है। इस पीड़ित बहन के साथ हम सब महिला अधिवक्ता खड़े हैं।
दामिनी (Devi Ahilya Mahila Initiative for National Integrity) संस्था के बैनर तले हो रहे इस विरोध प्रदर्शन में शहर की महिलाओं के साथ मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की कुछ महिला अधिवक्ता भी ज्ञापन देने में शामिल थीं। महिलाओं का रोष साफ देखा जा सकता था। एक महिला अधिवक्ता ने यहाँ तक कहा कि इस तरह के और भी मामले भी होते हैं लेकिन कोई पीड़िता आवाज उठाने की हिम्मत नहीं कर पाती है। महिला संगठन ने पहले संभाग आयुक्त को ज्ञापन सौंपा फिर जिला न्यायालय में प्रधान न्यायधीश को ज्ञापन सौंपा।
दामिनी संस्था की माला ठाकुर ने कहा कि माता अहिल्या की नगरी और न्याय के मंदिर में एक जज द्वारा एक पीड़ित महिला की गरिमा को तार तार किया गया है। हम उस देश में रहते हैं जहां महिला के सम्मान में महाभारत तक का युद्ध हुआ हुआ है। हम माता अहिल्या की नगरी में रहते हैं, यहाँ इस तरह की घटना न केवल निंदनीय, चिंतनीय हैं बल्कि दुर्भाग्यपूर्ण भी है। महिला के सम्मान से ऊपर न्यायधीश नहीं हैं। ज्ञापन में न्यायधीश देवेन्द्र प्रसाद मिश्र के निलंबन की मांग की गई है। महिला की भरे कोर्ट में जिस तरह इज्जत उछाली गई उससे सर शर्म से झुक जाता है। कमरे का दरबाजा खोलकर जज द्वारा दुष्कर्म पीड़िता से अशोभनीय, अमर्यादित प्रश्न पूछना न्यायधीश के लिए पानी में डूब मरने जैसा है।
देखें माला ठाकुर ने क्या कहा:- https://www.facebook.com/100063804135297/videos/461763590149473
ज्ञापन में महिला संगठन की ये हैं प्रमुख मांग:
यौन उत्पीडऩ एवं दुष्कर्म के केस में पृथक न्यायालय स्थापित हो, जिसमें महिला जज के सामने सुनवाई हो।
इस प्रकार के केस की सुनवाई अत्यधिक संवेदनशीलता के साथ हो।
इस प्रकार के केस इन कैमरा प्रोसेडिंग्स ही चले। ऐसा न होने की स्थिति में संबन्धित उत्तरदायी अधिकारी के विरुद्ध कड़ी सजा का प्रावधान हो।
इस तरह का अपमानजनक व्यवहार किसी महिला के साथ न हो।
कई पीडि़ताएं इसी कारण न्याय मिलने से वंचित रह जाती हैं कि उनकी इज्जत उछाली जाएगी, इसलिए वे रिपोर्ट नहीं करती है।
ऐसे न्यायाधीश को हटाकर महिलाओं का सम्मान लौटाया जाये।
इनको भेजा ज्ञापन:
महामहिम राष्ट्रपति, नई दिल्ली
मुख्य न्यायधिपति , सुप्रीम कोर्ट, नई दिल्ली
मुख्य न्यायधिपति, मप्र हाईकोर्ट, जबलपुर
प्रशासनिक न्यायधिपति, हाई कोर्ट, इंदौर,
पोर्टफोलियो न्यायधिपति, हाई कोर्ट, इंदौर
जिला न्यायधीश, जिला न्यायालय परिसर, इंदौर
अध्यक्ष-राष्ट्रीय महिला आयोग, नई दिल्ली
अध्यक्ष, न्यायिक अधिकारी संघ, जबलपुर
ये है मामला
दरअसल एक दुष्कर्म पीड़ित युवती ने एक मुस्लिम युवक के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है जिसमें उसने अपना बदल कर महिला से दोस्ती की और शादी का झांसा देकर दुष्कर्म किया और बाद में धर्म परिवर्तन का दबाव बनाया। इसी मामले में जब जिला कोर्ट में बीती 25 जुलाई को युवती के बयानों का प्रति परीक्षण हो रहा था तब जज ने भी उसकी गरिमा का हनन किया। पीड़ित युवती का आरोप है कि प्रति परीक्षण के दौरान जज देवेन्द्र प्रसाद मिश्रा ने आरोपी के वकील को बीच में रोकते हुए कहा कि इसका प्रति परीक्षण तो मैं ही करता हूँ और जिस तरह के सवाल जज ने पीड़िता से पूछे , उससे, उसे और उसके अधिवक्ता को बहुत शर्मिंदगी हुई। पीड़िता ने बताया कि ऐसे अमर्यादित सवाल तो पुलिस ने भी उससे नहीं पूछे हैं। फिर जज प्रोटोकॉल का उल्लंघन करते हुए कोर्ट के दरबाजे खोल कर सबके सामने मुझसे अमर्यादित, अशोभनीय प्रश्न पूछ रहे थे और आरोपी के वकील और अन्य लोग हंस रहे थे। जज ने मुझे बाजारू औरत तक कहा। पीड़िता ने आरोप लगाए कि जज मिश्रा ने उसका चरित्र का हनन और स्त्रियोचित गरिमा का हनन किया है। पीड़िता ने अपने अधिवक्ता प्रशांत वर्मा के माध्यम से राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधिपति, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधिपति और राष्ट्रीय महिल आयोग को पत्र लिखा है जिसमें जज के खिलाफ कार्यवाही की मांग की है यदि कार्यवाही नहीं हो सकती तो इच्छा मृत्यु की मांग की है।
पीड़िता के अधिवक्ता प्रशांत वर्मा ने बताया कि उन्होने पीड़िता की फरियाद पर जिला न्यायालय के प्रधान न्यायधीश के समक्ष सुनवाई का कोर्ट बदलने का आवेदन दिया है। पीड़िता का मानना है कि उनका इस न्यायालय से विश्वास उठ गया है और उन्हें इस न्यायालय से न्याय मिलने की उम्मीद नहीं है।