राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, मालवा प्रान्त का #स्वर_शतकम
स्वर-शतकम में संघ घोष की अनोखी प्रस्तुति
चित्त को आनंद देने वाला संघघोष सत्कर्म की प्रेरणा है-सरसंघचालक
इंदौर, 03 जनवरी 2025,(न्यूजओ2 डॉट कॉम)/7724038126: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। 3 जनवरी को इंदौर में स्वर शतकम से इसकी शुरुआत हुई। दशहरा मैदान में आयोजित इस कार्यक्रम में संघ प्रमुख डॉ मोहन भागवत ने शिरकत की । उन्होने उद्घोष में शामिल स्वयं सेवकों की हौंसला अफजाई की तो उन्होने संघ में सिखाए जा रहे लाठी कौशल का भी महत्व बताया। भागवत ने कहा कि लाठी प्रदर्शन के लिए नहीं न ही लड़ने के लिए सीखते हैं लेकिन लाठी कौशल से वीर वृत्ति प्राप्त होती है। संकट के समय साहस मिलता है।
सरसंघ चालक मोहन भागवत ने घोष और संगीत की महत्वता बताते हुए आगे कहा कि संघ में कार्य की सांघिकता और अनुशासन के अभ्यास के लिये संघ में संगीत अर्थात् घोष को सम्मिलित किया गया। सीमित साधनों में संघ के स्वयंसेवकों ने घोष का विकास किया। चित्त को आनंद देने वाले भारतीय रागों से कार्यकर्ताओं में अनुशासन और सत्कर्म की प्रेरणा मिलती है।
भागवत ने कहा कि संघ के स्वयंसेवकों द्वारा किया जाने वाला घोष वादन किसी प्रदर्शन की प्रेरणा से नहीं, अपितु विशुद्ध देशभक्ति और संघकार्य की प्रेरणा है। संघ की आज्ञा पर घोषवादन सीखना, एक साथ वादन करना, एक ही प्रकार की रचना का साथ-साथ वादन करना, संघ का अनुशासन है। संघघोष, स्वयंसेवकों में सदवृत्तियों की वृद्धि करता है। संघकार्य के व्रत को धैर्य और सातत्य देने में घोष एक साधन भी है। एक ताल में सबके साथ, सबमें एक होने के लिये संयमित होकर वादन करना, अनुशासन का अभ्यास है। सबके आनंद के लिये, सबको सुख की अनुभूति देने वाला, यह एक संहतिबद्ध घोष वादन है।
संघ के गुण, कौशल विकास, घोष, वादन की प्रशंसा करते करते मोहन भागवत ने एक विवादस्पद बयान भी दे डाला। उन्होने भारतीय संगीत की तुलना अन्य देशों के संगीत से करते हुए कहा, ” भारत से बाहर का संगीत चित्त वृत्तियों को उत्तेजित करके उल्लसित करता है, जबकि भारतीय संगीत चित्त वृत्तियों को शांत करके आनंद देता है। वृत्तियों के शांत होने पर सच्चिदानंद आनंद प्राप्त होता है।“
भागवत ने वैभव संपन्न भारत के निर्माण के लिये पूरे समाज से सक्रिय होने का आह्वान करते हुए कहा कि व्यक्तिगत और सामूहिक दृष्टि से गुणसंपन्न होकर, मैं और मेरा के भाव से रहित होकर, विशुद्ध आत्मीयता के भाव से देश और देशवासियों को बड़ा करने के लिये, जो-जो जब-जब करना पड़ता है, ऐसा स्वयंसेवकों का व्यवहार सभी के जीवन में आना चाहिये। सौ वर्षों से साधनारत स्वयंसेवकों के परिश्रम की अनुभूति सभी में हो। राष्ट्र नवनिर्माण के संघ के महाअभियान में समाज भी संघ के साथ कार्य करे।
मालवा प्रांत के तीन दिवसीय घोष शिविर के समापन पर आयोजित स्वर-शतकम कार्यक्रम में मंच पर मुख्य अतिथि के रूप में कबीर भजन गायक पद्मश्री कालूराम बामनिया, प्रांत संघचालक प्रकाश शास्त्री और विभाग संघचालक मुकेश मोढ़ उपस्थित थे।
संघ के शताब्दी वर्ष में कार्य विस्तार एवं गुणवत्ता कार्यक्रम की श्रृंखला में मालवा प्रांत में घेाष वादन का गुणवत्तापूर्ण कार्यक्रम स्वर-शतकम संपन्न हुआ। इसमें मालवा प्रांत के सभी 28 जिलों से सम्मिलित हुए 868 वादकों ने पचास से अधिक घोष रचनाओं की पचास मिनिट से अधिक की अनवरत प्रस्तुति दी। पिछले छः माह से मालवा प्रांत के विभिन्न स्थानों पर स्वयंसेवकों ने वेणु, शंख, आनक, त्रिभुज, पणव, गौमुख, नागांग और तूर्य वाद्यों का प्रशिक्षण लिया।ध्वजारोहण एवं संघ की प्रार्थना के प्रारंभ हुए स्वर-शतकम कार्यक्रम में हजारों की संख्या में जनसामान्य और गणमान्य नागरिक शामिल हुए।