सुप्रीम कोर्ट ने इंदौर के शासकीय ला कॉलेज के प्रिंसिपल पर दर्ज एफआईआर रद्द की

मध्य प्रदेश शासन और मप्र कोर्ट को लिया आड़े हाथों

इंदौर   

सुप्रीम कोर्ट की युगल पीठ के जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस संदीप मेहता ने मंगलवार को उस मामले में राज्य सरकार और मध्य प्रदेश उच्च न्यायलय को आड़े हाथों लिया है जिसमें उसने शासकीय विधि महाविध्यालय के प्रचार समेत अन्य 3 के खिलाफ गंभीर धाराओं में दर्ज एफआईआर की रद्द करने की याचिका खारिज कर दी थी । देश के बहुचर्चित इस मामले में शासकीय विधि महाविध्यालय के तत्कालीन प्राचार्य, एक असिस्टेंट प्रोफेसर, विवादित किताब के प्रकाशक और लेखक  के खिलाफ भंवरकुआ पुलिस ने धार्मिक कट्टरता फैलाने की 8 गंभीर  धाराओं एक तहत एफआईआर दर्ज की थी। यह एफआईआर अखिल भारतीय परिषद के छात्र लकी आदिवाल की शिकायत पर दर्ज की गई थी।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता जोसेफ ने बताया कि मध्य प्रदेश उच्च न्यायलय ने इस मामले में सेक्शन 482 के तहत दर्ज मामले में फैसला नहीं दिए जाने और एफआईआर रद्द करने से रोक लगाने पर सर्वोच्च न्यालाय की शरण ले ली थी।

क्या कहा कोर्ट ने

जस्टिस गवई ने पूछा, “राज्य (मध्य प्रदेश) ऐसे मामले में एक अतिरिक्त महाधिवक्ता को पेश करने में क्यों दिलचस्पी रखता है?” वह भी केविएट पर?! जाहिर है, यह उत्पीड़न का मामला लगता है! किसी को उसे (याचिकाकर्ता को) परेशान करने में दिलचस्पी है! हम आईओ (जांच अधिकारी) के खिलाफ नोटिस जारी करेंगे! राज्य को कैविएट दाखिल करने में दिलचस्पी क्यों है?” पीठ को बताया गया, “ऐसे अन्य उदाहरण भी हैं जहां राज्य इसी तरह के मामलों में पेश होता है।”

जस्टिस गवई ने कहा “हमने पाठ्यक्रम देखा है जिसे अकादमिक परिषद द्वारा अनुमोदित किया गया है। पाठ्यक्रम में ‘सामूहिक हिंसा और आपराधिक न्याय प्रणाली’ पर एक विषय शामिल है…”

“एकल न्यायधीश अपने निहित क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने में विफल रहे हैं”


युगल पीठ ने कहा, “विद्वान एकल न्यायाधीश ने केवल इस आधार पर अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया है कि याचिकाकर्ता को पहले ही अग्रिम जमानत का लाभ दिया जा चुका है। विद्वान एकल न्यायाधीश ने अंतरिम राहत की प्रार्थना पर विचार किए बिना मामले को केवल 10 सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया है।” इस संदर्भ में, पीठ ने कहा कि “सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट का अधिकार क्षेत्र का उद्देश्य कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग और न्याय के गर्भपात को रोकना है।” पीठ ने कहा, “हमने पाया है कि ऐसे तुच्छ मामलों में भी, हाईकोर्ट के विद्वान एकल न्यायाधीश अपने निहित क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने में विफल रहे हैं।”

“एफआईआर असगंत है”

पीठ ने जोर देकर कहा कि “एफआईआर को पढ़ने से पता चलता है कि कि एफआईआर एक absurdity (बेतुकेपन/असंगत) के अलावा और कुछ नहीं है।” उक्त टिप्पण‌ियों के साथ सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर और आपराध‌िक कार्यवाही को रद्द करने का निर्णय लिया।

By Jitendra Singh Yadav

जितेंद्र सिंह यादव वरिष्ठ पत्रकार | आरटीआई कार्यकर्ता | राजनीतिक विश्लेषक 15+ वर्षों का पत्रकारिता अनुभव, UNI से जुड़े। Save Journalism Foundation व इंदौर वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन के संस्थापक। Indore Varta और NewsO2.com से जुड़े। निष्पक्ष पत्रकारिता व सामाजिक सरोकारों के लिए समर्पित।