इंदौर,दिल्ली, भोपाल, 7 अगस्त 2024

देश के सर्वोच्च न्यायालय ने 6 अगस्त 2024 को सिलिकोसिस पीड़ितों के हक में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। याचिका क्रमांक 110/2006 के तहत सिलिकोसिस पीड़ित संघ की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना भालचन्द्र वारले की युगल पीठ ने यह फैसला दिया।

इस याचिका में सिलिकोसिस पीड़ितों के पुनर्वास, मुआवजा और प्रतिबंधक उपायों को लेकर न्यायालय से गुहार लगाई गई थी। सिलिकोसिस पीड़ित संघ ने कई वर्षों से पीड़ितों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया है और न्यायालय को अध्ययन रिपोर्ट “डेस्टाइंड टू डाई” सहित अन्य दस्तावेजों के माध्यम से पीड़ितों की स्थिति से अवगत कराया है।

सर्वोच्च न्यायालय ने इन रिपोर्ट्स के आधार पर एक समिति का गठन किया था, जिसने देश भर के पीड़ितों की वास्तविक स्थिति का अध्ययन किया। इस अध्ययन के आधार पर न्यायालय ने पीड़ितों के हक में फैसला सुनाया। न्यायालय ने पूर्व में भी कई महत्वपूर्ण अंतरिम आदेश जारी किए थे, जिनके तहत मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों के पीड़ितों को मुआवजा दिया गया था, लेकिन व्यापक पुनर्वास अभी तक पूरा नहीं हुआ था।

न्यायालय के हालिया फैसले के अनुसार, सिलिकोसिस पीड़ितों के पुनर्वास, मुआवजा और प्रतिबंधक उपायों की जिम्मेदारी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और केंद्रीय व राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को सौंप दी गई है।

फैसले में उद्योगों को अपने मजदूरों को सिलिकोसिस से बचाने के लिए मानकों का पालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है, और मानकों के उल्लंघन की स्थिति में उद्योगों को बंद करने का निर्णय लिया गया है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को पर्यावरणीय नियमों की निगरानी और सिलिकोसिस की संभावना वाले उद्योगों के प्रभाव की निगरानी करने के निर्देश दिए गए हैं।

इसके अलावा, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजा दिलाने के लिए मुआवजा प्रक्रिया की निगरानी करने का निर्देश दिया गया है, और संबंधित राज्यों के मुख्य सचिव और कर्मचारी राज्य बीमा निगम को निर्देशित किया गया है कि वे आयोग के निर्देशों का पालन करें और मुआवजा प्रक्रिया में देरी न करें। सर्वोच्च न्यायालय ने रजिस्ट्री विभाग को निर्देशित किया है कि सभी संबंधित रिपोर्ट्स और शपथ पत्र नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को भेजे जाएं। याचिकाकर्ता को भी ग्रीन ट्रिब्यूनल और मानवाधिकार आयोग को सहयोग देने का निर्देश दिया गया है। सिलिकोसिस पीड़ित संघ के अमूल्य निधि ने बताया कि संघ ने इस फैसले का स्वागत किया है और उम्मीद जताई है कि सभी जिम्मेदार संस्थाएं और निकाय न्यायालय के आदेशों का गंभीरता से पालन करेंगे, जिससे पीड़ितों को शीघ्र न्याय मिल सके।

क्या होती है सिलिकोसिस की बीमारी ?

सिलिकोसिस एक फेफड़ों की बीमारी है जो सिलिकॉन डाइऑक्साइड या सिलिका के बहुत छोटे क्रिस्टलीय कणों को साँस के ज़रिए अंदर लेने से होती है।