भारत में आस्था और विश्वास के नाम पर प्रचलित कई कट्टरपंथी प्रथाओं पर अंकुश लगाने के लिए ‘समान नागरिक संहिता’ (यूसीसी) की आवश्यकता है: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय
‘समान नागरिक संहिता’ को कागज के बजाय वास्तविकता में उतारने की जरूरत है– कोर्ट
इंदौर, 21 जुलाई 2024
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने पिछले सप्ताह एक महत्वपूर्ण अवलोकन में भारत में समान नागरिक संहिता (UCC) की आवश्यकता पर बल दिया ताकि समाज में प्रचलित कई ‘अवमूल्यन’, ‘मौलिकवादी’, ‘अंधविश्वासी’ और ‘अति-रूढ़िवादी’ प्रथाओं का मुकाबला किया जा सके, जो आस्था और विश्वास के नाम पर की जा रही हैं। न्यायमूर्ति अनिल वर्मा की पीठ ने टिप्पणी की, “समाज में आस्था और विश्वास के नाम पर कई अन्य अवमूल्यन, मौलिकवादी, अंधविश्वासी और अति-रूढ़िवादी प्रथाएं प्रचलित हैं। यद्यपि भारतीय संविधान में पहले से ही अनुच्छेद 44 शामिल है जो नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता का समर्थन करता है, फिर भी इसे केवल कागज पर नहीं बल्कि वास्तविकता में लागू करने की आवश्यकता है। एक अच्छी तरह से तैयार की गई समान नागरिक संहिता ऐसी अंधविश्वासी और बुरी प्रथाओं पर रोक लगा सकती है और राष्ट्र की एकता को मजबूत कर सकती है।”
शिकायतकर्ता के मामले के अनुसार, विवाह के बाद उसे दहेज की मांग के चलते उसके पति, सास (याचिकाकर्ता संख्या 1) और ननद (याचिकाकर्ता संख्या 2) द्वारा शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया। उसका कहना था कि उसके पति ने ‘तलाक’ तीन बार कहा और उसे घर से बाहर निकाल दिया। उच्च न्यायालय के समक्ष, याचिकाकर्ताओं (शिकायतकर्ता की सास और ननद) के वकील ने यह तर्क दिया कि 2019 के अधिनियम की धारा 4 केवल मुस्लिम पति पर लागू होती है और ससुराल वालों पर नहीं। इसलिए, वे इसके लिए उत्तरदायी नहीं हैं।
इस पर विचार करते हुए, अदालत ने यह निर्णय लिया कि याचिकाकर्ताओं (शिकायतकर्ता की सास और ननद) को 2019 के अधिनियम की धारा 4 के तहत तीन तलाक की घोषणा के अपराध के लिए अभियोजित नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह अपराध केवल पति द्वारा किया जा सकता है। इसलिए, याचिकाकर्ताओं के खिलाफ 2019 के अधिनियम की धारा 4 के तहत दर्ज किया गया अपराध निरस्त कर दिया गया।
फैसला सुनाने से पहले कोर्ट ने ट्रिपल तलाक को गंभीर मुद्दा बताते हुए इस पर टिप्पणी की।
न्यायमूर्ति ने कहा “तलाक मुस्लिम पर्सनल लॉ में डाइवोर्स के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है, जिसका अर्थ है विवाह का विघटन, जब मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी के साथ सभी वैवाहिक संबंध तोड़ देता है। मुस्लिम कानून के तहत, ट्रिपल तलाक का मतलब है विवाह के रिश्ते से तुरंत और अपरिवर्तनीय रूप से मुक्ति, जहां पुरुष, केवल तीन बार तलाक कहकर अपनी शादी को खत्म कर सकता है। इस तरह के तत्काल तलाक को ट्रिपल तलाक कहा जाता है, जिसे ‘तलाक-ए-बिद्दत’ भी कहा जाता है। यह स्पष्ट है कि तलाक-ए-बिद्दत या ट्रिपल तलाक में, शादी को कुछ ही सेकंड में तोड़ा जा सकता है और समय को वापस नहीं लाया जा सकता है। दुर्भाग्य से यह अधिकार केवल पति के पास है और अगर पति अपनी गलती सुधारना भी चाहता है तो निकाह हलाला के अत्याचारों का सामना महिलाओं को ही करना पड़ता है।”
तीन तलाक के खिलाफ कानून मुस्लिम महिलाओं को सुरक्षा देता है
न्यायालय ने कहा कि हालांकि तीन तलाक की प्रथा को शायरा बानो बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पहले ही अवैध घोषित किया जा चुका है, लेकिन इसके खिलाफ कानून 2019 में पारित किया गया था। संविधान पीठ द्वारा तीन तलाक को अवैध घोषित किया जा चुका है। मुस्लिम महिलाओं को वैवाहिक न्याय और सुरक्षा देने के लिए तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाया गया है। भारतीय संसद द्वारा 2019 में पास किया गया मुस्लिम महिलाओं (विवाह पर अधिकारों की रक्षा) बिल, 2019, तत्काल तीन तलाक को एक अपराध बनाता है। यह समानता और सामाजिक सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह समझने में कई साल लगे कि तीन तलाक संविधान के खिलाफ है और समाज के लिए हानिकारक है। हमें अब देश में एक “समान नागरिक संहिता” की आवश्यकता को समझना चाहिए।
कोर्ट ने ये भी कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत इस याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया गया है और एफआईआर संख्या 272/2021, थाना राजपुर, जिला बडवानी (मध्य प्रदेश) में 2019 के अधिनियम की धारा 3/4 के तहत दर्ज अपराधों के संबंध में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दायर की गई एफआईआर को रद्द किया जाता है। हालांकि, ट्रायल कोर्ट को याचिकाकर्ताओं के खिलाफ 2019 के अधिनियम की धारा 3/4 के तहत अपराधों को छोड़कर अन्य शेष अपराधों के संबंध में ट्रायल जारी रखने का निर्देश दिया जाता है।
आदेश से अलग होते हुए, यह स्पष्ट किया जाता है कि इस कोर्ट ने मामले की मेरिट पर कोई राय व्यक्त नहीं की है। ट्रायल कोर्ट को इस आदेश में की गई टिप्पणियों से प्रभावित या पूर्वाग्रहित हुए बिना याचिकाकर्ताओं के खिलाफ ट्रायल जारी रखना होगा।
राज्य शासन की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता अमय बजाज ने बताया कि 2019 में बड़वानी के राजपुर में एक मुस्लिम महिला ने एफआईआर दर्ज करवाई थी। उसके पति ने उसे तीन तलाक दिया था। एफआईआर पति, सास और ननंद के खिलाफ थी। ससुराल पक्ष ने हाई कोर्ट में एफआईआर शून्य कराने (quash) की मांग की थी जिस पर कोर्ट ने दलीलों को सुनते हुए तीन तलाक के मामले में सास और ननंद को बाहर कर दिया लेकिन इन पर पति के साथ दहेज प्रताड़ना का प्रकरण ट्रायल कोर्ट में चलेगा। इस मामले में कोर्ट ने समान नागरिक संहिता (UCC) को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है, जिसमें UCC को समानता की तरफ कदम बताया है।