इंदौर, 10 सितंबर 2024 (न्यूजओ2 डॉट कॉम)। भावनात्मक धोखाधड़ी न करने का नाम आर्जव (सरलता) धर्म है। मन, वचन और काया की सरलता को ही आर्जव धर्म कहा जाता है। बच्चे स्वाभाविक रूप से सहज होते हैं, उनके पास आर्जव धर्म होता है, लेकिन बड़ों में यह गुण खो जाता है। आजकल लोग इतने कुटिल हो गए हैं कि वे अपने भाई का भी सब कुछ हड़पने की सोच रखते हैं। उनकी नजर दूसरों की संपत्ति, चाहे वह झोपड़ी में रहने वाले की जमीन ही क्यों न हो, पर भी रहती है। बाहर से वे मृदुता दिखाते हैं, लेकिन भीतर से कपटपूर्ण होते हैं। आपने भी किसी को विश्वास में लिया होगा और फिर उससे विश्वासघात किया होगा। यह विचार मुनि श्री विनम्र सागर जी महाराज ने छत्रपति नगर के दलाल बाग में व्यक्त किए।
मुनि श्री ने कहा कि पहले आपके मन, वचन और काया एक होती थी, प्रवृत्ति एक होती थी। लेकिन एक उम्र के बाद आपके भीतर मायाचारी और कुटिलता आ गई। अब हम इतने डिप्लोमेटिक हो गए हैं कि साधु बनने के बाद भी यही स्वभाव बना हुआ है।
मुनिश्री ने कहा कि व्यक्ति सोचता है कि मेरे पिताजी और भाई के पास बहुत कुछ है, लेकिन मेरे साथ रंचक दगा हो गया। बड़ी उम्र में दगा होने से आदमी टूट जाता है। वैसे जैन समुदाय के लोग नौकरी नहीं करते, लेकिन ऐसे हालातों में मजबूरी में नौकरी करनी पड़ती है। अपनों को ठगने से क्या मिलता है, यह सोचने का विषय है।
उन्होंने कहा कि रंचक दगा दो कारणों से होता है – लालच और डर। इसके अलावा और कोई कारण नहीं होता। जब एक के मन में लालच और दूसरे के मन में डर बढ़ता है, तो रंचक दगा होता है। आज वाणी और व्यवहार में सरलता दिखती है, लेकिन मन में नहीं। गुरु की बातों पर भी अब विश्वास नहीं होता। साधु कभी किसी के साथ रंचक दगा नहीं करते, इसलिए उनकी हर बात को माना जा सकता है। दान देने से केवल लालच या डर ही रोकता है। आर्जव धर्म के दिन भावनात्मक रूप से किसी को धोखा न दें।
मुनि श्री ने सभी से आह्वान किया कि वे तीन प्रमुख व्यक्तियों के साथ कभी दगा न करें:
- देव, शास्त्र और गुरु से दगा न करें।
- अपने परिवार के सदस्यों से दगा न करें।
- स्वयं से दगा न करें और अपने आप से झूठ न बोलें।
समाज के प्रचार प्रमुख सतीश जैन ने बताया कि आज प्रातः गुरुदेव के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन के बाद गुरुदेव की आठ द्रव्यों से सभी शिविरार्थियों ने पूजन की। काला परिवार ने अर्घ समर्पित किए। सुबह 5:00 बजे से मांगलिक क्रियाएं प्रारंभ हो गई थीं। जैन ने बताया कि दोपहर 2:15 बजे से तत्वार्थ सूत्र का वाचन हुआ और रात 7:00 बजे से संगीतमय आरती आयोजित की गई। इस अवसर पर सचिन जैन, राकेश सिंघई चेतक, मनीष नायक, सतीश डबडेरा, आनंद जैन, कमल अग्रवाल, अमित जैन, शिरीष अजमेरा, भूपेंद्र जैन, आलोक बंडा, प्रदीप स्टील, रितेश जैन, सुधीर जैन समेत समाज के कई गणमान्य सदस्य उपस्थित थे।
पूज्य मुनि श्री निस्वार्थ सागर जी, निसर्ग सागर जी एवं क्षुल्लक श्री हीरक सागर जी भी मंच पर विराजमान थे। आचार्य श्री जी की पूजन के पश्चात, 9:00 बजे मुनि श्री के प्रवचन हुए। धर्म सभा का सफल संचालन ब्रह्मचारी मनोज भैया ने किया।