तिल न केवल धार्मिक बल्कि आयुर्वेद में रखता है विशेष स्थान,
आयुर्वेद दवाओं में सिर्फ तिल के तेल का होता है इस्तेमाल
तिल का न केवल धार्मिक महत्व है बल्कि आयुर्वेद चिकित्सा में भी तिल विशेष महत्व रखता है। आयुर्वेद में दवाइयों में जो तेल इस्तेमाल होता है, वह तिल ही का होता है। आइये जानते हैं इंदौर के शासकीय अष्टांग आयुर्वेद कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर और आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ अखलेश भार्गव से तिल के महत्व के बारे में। डॉ भार्गव बताते हैं, भारतीय सनातन संस्कृति एवं त्योहार का धार्मिकता के साथ-साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्व है। आयुर्वेद में छह प्रकार की ऋतु में बताई गई है, शिशिर, वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत।
तिल प्रयोग का धार्मिक महत्व
डॉ भार्गव के अनुसार धार्मिक रूप से तिल का अधिक पूजन रूप में इसलिए प्रयोग लेते हैं ताकि लोग अधिक से अधिक इसका प्रयोग करें और शारीरिक लाभ ले सकें। इस साल तिल चतुर्थी या संकष्टी चतुर्थी 29 जनवरी को मनाई जाएगी। तिल चतुर्थी के दिन विशेष रूप से गणेश जी के पूजन के लिए जाना जाता है। गणपति पूजन, चंद्रमा को अर्घ्य और तिल का भोग इस दिन खास होता है। गणेश जी को प्रसाद के रूप में तिल का लड्डू, चिक्की और बर्फी समेत कई चीजों को प्रसाद के रूप में अर्पित की जाती है। साथ ही पूजन सामग्री में तिल का विशेष रूप से उपयोग किया जाता है, चाहे तिल चढाने के लिए हो या अर्घ्य देने के लिए, तिल के बिना संकष्टी चतुर्थी की पूजा अधूरी मानी जाती है। माघ मास में तिल चतुर्थी के अलावा और भी कई त्योहार मनाए जाते हैं, जिसमें तिल का महत्व है जैसे षटतिला एकादशी, मकर संक्रांति, तिल द्वादशी आदि। पुराणों में तिल का विशेष महत्व बताया गया है। https://newso2.com/?p=1373
आयुर्वेद में तिल का बीमारियों में प्रयोग
आयुर्वेद में तिल एवं तिल्ली के तेल का काफी महत्व है, सर्दियों के मौसम में जो सबसे अधिक च्यवनप्राश खाया जाता है, उसमें विशेष रूप से तिल्ली के तेल का प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद में जितनी भी दवाइयां बनाई जाती हैं, उनमें तेल के रूप में तिल्ली के तेल का भी प्रयोग किया जाता है। तिल्ली मुख्य तीन प्रकार की होती है श्वेत, कृष्ण एवं लाल।
काले तिलों को अधिक महत्वपूर्ण एवं शरीर के लिए फायदेमंद माना जाता है। संक्रांति के अवसर पर जब तापमान में कमी आ जाती है तो इसके लड्डुओं का प्रयोग पूरे भारतवर्ष में किया जाता है क्योंकि इसकी तासीर गर्म होती है अनेक प्रकार की बीमारियों में इसका फायदा है।
तिल प्रकृति से तीखी, मधुर, भारी, स्वादिष्ट, स्निग्ध, गर्म तासीर की, कफ तथा पित्त को कम करने वाली, बलदायक, बालों के लिए हितकारी, स्पर्श में शीतल, त्वचा के लिए लाभकारी, दूध को बढ़ाने वाली, घाव भरने में लाभकारी, दांतों को उत्तम करने वाली, मूत्र का प्रवाह कम करने वाली होती है।
आज के प्रदूषण और असंतुलित जीवनयापन का फल है बालों की समस्याएं। बालों का झड़ना, असमय सफेद बाल होना, गंजापन, रूसी की समस्या आदि ऐसी समस्याएं हैं जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग परेशान रहते हैं। तिल के तेल का इस्तेमाल इन बीमारियों में बहुत फायदेमंद साबित होता है। काले तिलों का काढ़ा बनाकर उनसे आंखें धोने पर नेत्र की बीमारियों में फायदा मिलता है, तिल को पानी में पीसकर सिर पर लगाने से सिर दर्द कम होता है, प्रतिदिन तिल को चबा चबा कर खाने से दांत मजबूत होते हैं।
यदि किसी को सूखी खांसी आती है तो मिश्री के साथ तिल का प्रयोग करने पर उसमें फायदा मिलता है। यदि मल मार्ग से खून आता है तो तिल्ली को मिश्री एवं बकरी के दूध साथ प्रयोग करने से खून का आना बंद हो जाता है।
तिल के काड़े को सौंठ, काली मिर्च, पिप्पली के साथ मिलाकर पीने से गर्भाशय से संबंधित रोगों में राहत मिलती है, एवं तिल के तेल को रूई में भिगोकर योनि में रखने से सफेद पानी आने की समस्या खत्म हो जाती है। इसके अलावा तिल का प्रयोग अनेक प्रकार की बीमारियों में आयुर्वेद में किया जाता है।