फोन से ही कलयुग आया, फ़ोन से ही आएगा सतयुग – शिवानी दीदी
इंदौर।
आज पेरेंट्स शिकायत करते हैं कि बच्चे बिना टीवी-मोबाइल के खाना नहीं खाते, गुस्सा करते हैं, जल्दी सोते नहीं आदि। याद रखिए संस्कार देने की शुरुआत स्कूल जाने के साथ नहीं बल्कि गर्भ से ही हो जाती है। यदि सुसंस्कृत बच्चे चाहिए तो गर्भावस्था के दौरान टीवी-मोबाइल आदि से दूर रहें, गुस्सा न कर मधुर वचन बोलें तथा जल्दी सोकर बह्ममुहूर्त में उठें।
यह जीवनोपयोगी सीख सुप्रसिद्ध मोटिवेशनल स्पीकर ब्रह्माकुमारी शिवानी दीदी ने स्टेट प्रेस क्लब, मध्यप्रदेश द्वारा आयोजित ‘संवाद’ कार्यक्रम में मीडियाकर्मियों के प्रश्नों के उत्तर में कही।
बाजार के खाने के साथ जुड़े इमोशन स्वास्थ्यकारी नहीं
उन्होंने कहा कि आज युवा वर्ग का झुकाव घर के खाने की बजाय बाहर के खाने की तरफ है। लेकिन बाज़ार के खाने के साथ कमाने की भावना जुड़ी है जबकि घर के खाने के साथ पोषण की। बाजार के खाने के साथ जुड़े इमोशन स्वास्थ्यकारी नहीं। इसलिए यथासंभव घर का खाना ही खाएं और गृहणियां रसोईघर में बहुत ध्यान से शुभ वातावरण बनाकर रखें, इससे पूरे घर का स्वास्थ्य बेहतर होगा। आज माता-पिता बच्चों को किसी बात के लिए ना नहीं कह पाते। इससे बच्चों की तनाव सहने और बाहरी दुनिया का तनाव सहने की शक्ति घटती जा रही है। शिवानी दीदी ने दावे के साथ कहा कि भारत को अपनी पुरातन संस्कृति, सभ्यता और दिनचर्या की ओर लौटना होगा। संयुक्त परिवार से हम एकल परिवार की ओर बढ़े और आज सिंगल पैरेंट तक आ गए हैं। इसीलिए आज सामंजस्य और साथ में रहने की भावना लुप्त होती जा रही है। संयुक्त परिवार की ओर लौटने से आज की अनेक समस्याओं का हल संभव है।
संतों के प्रयासों के बाद भी समाज में विकृति बढऩे के प्रश्न पर ब्रह्माकुमारी शिवानी दीदी ने कहा समाज में परिवर्तन आ रहा है तथा आज युवा वर्ग भी ध्यान और सत्संग से जुडऩे लगा है। आज संतों के प्रयास के कारण कम से कम लोगों को सही जीवन शैली का विकल्प दिख रहा है, यदि वह विकल्प दिखाना ही बंद हो गया तो और नुकसान होगा।
समाज के परिवर्तन में मीडिया की बहुत महत्वपूर्ण और गंभीर भूमिका बताते हुए उन्होंने कहा कि आज कंटेंट में इतनी ताकत है की फोन से ही कलयुग आया है और फोन से ही सतयुग आएगा। भारत की संस्कृति में विश्व को बदलने की शक्ति है तथा भारत विश्व गुरु बनेगा इसमें कोई संदेह नहीं है लेकिन इसमें मीडिया को अपनी भूमिका जिम्मेदारी से निभानी होगी। जैसा कंटेंट मीडिया दिखाएगा वैसी ही देश की मन:स्थिति बनेगी। उन्होंने सुझाव दिया की मीडिया किसी समस्या पर यदि तीन पैराग्राफ लिखता है तो एक पैराग्राफ उसके समाधान पर भी लिखे और यदि समाधान संभव न हो तो उससे प्रभावित लोगों के लिए दुआ की चंद लाइन लिखे। उन्होंने कहा कि जैसे वर्तमान में महीनों से युद्ध जारी है लेकिन उससे प्रभावित लोगों के प्रति जन भावना नदारत है। मीडिया को रील लाइफ के माध्यम से रियल लाइफ बदलने का प्रयास करना होगा।