हमें आपस में सामंजस्य बनाकर चलना है- मोहन भागवत
अयोध्या
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने 13 मिनट के उद्बोधन में कहा राम लला के साथ भारत का स्वर लौट कर आया है। पूरे विश्व को त्रासदी से राहत देने वाला एक नया भारत खड़ा होकर रहेगा, इसका प्रतीक आज का कार्यक्रम बन गया है। पूरे देश में यही हर्ष उल्लास का वातावरण है। ऐसे जोश के माहौल में होश की बातें करने का मौका मुझे ही दिया जाता है। मुझे पता चला कि प्रधानमंत्री ने कठोर व्रत रखा। मेरा उनसे पुराना परिचय है, वे तपस्वी हैं ही। उन्हें जितना कठोर व्रत रखने कहा गया था, उन्होने उससे अधिक कठोर व्रत किया। यदि वे व्रत करेंगे तो हम क्या करेंगे ? अयोध्या में रामलला आए हैं, लेकिन वो अयोध्या से बाहर क्यों गए थे? अयोध्या उस पुरी का नाम है जिसमें कोई द्वंद नहीं, कोई कलह नहीं है। राम जी 14 वर्ष बाद वापस आए और कलह खत्म हुआ। ज एक बार फिर वे वापस आए हैं। राम लला के इस युग में फिर से वापस आने का इतिहास जो जो श्रवण करेगा उसके दुख समाप्त होंगे। इसमें एक संदेश है प्रधानमंत्री ने तप किया, हमें भी अब तप करना है।
उन्होने आगे कहा किराम राज्य के सामान्य नागरिकों का जो वर्णन है। हम सब इस भारत देश की सन्तानें हैं। हमें इस तरह के व्यवहार को रखने का आचरण करना पड़ेगा। छोटे छोटे मत- विचारों की भिन्नता पर लड़ाई छोडनी पड़ेगी। धर्म के 4 मूल्य सत्य, करुणा, शुचिता, तपस हैं। सत्य कहता है हर घट में राम है। हमें आपस में समंजस्य से चलना होगा। सब हमारे हैं इसलिए हम चल पाते हैं। करुणा दूसरा कदम है सेवा और परोपकार, सरकार की कई योजनाएँ गरीबों को लाभ दे रहीं फिर भी हमें जहां दुख, पीड़ा दिखती है, हम मदद के लिए दौड़ जाएँ। कमाएं लेकिन अपने लिए कम बचाएं। शुचिता यानि पवित्रता जिसके लिए संयम चाहिए, अपने को रोकना है। अन्य की भी इच्छाएं हैं। लोभ नहीं करना, अनुशासन में रहना। स्वतंत्र देश में संयम रखना और पालन करना देशभक्ति है। हम एक ही भाषा बोलेंगे। मिलके चलेंगे। देश को विश्व गुरु बनाएँगे। यह तप हम सबको करना है। 500 सालों में खून पसीना बहाकर, जान गंवा कर आज ये गौरव का क्षण आया है। यहाँ बैठने पर लगता है हमने क्या किया ? हमें उनके व्रत को आगे ले जाना है। हम समन्वय से चलेंगे तो मंदिर निर्माण पूरा होते होते ये देश विश्व गुरु बन जाएगा।