हरिशंकर परसाई जी के व्यंग्य लेखों की कुछ पंक्तियाँ बहुत तीखी और सटीक हैं जो समाज में व्याप्त विसंगतियों और समस्याओं पर प्रकाश डालती हैं। ये पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं:-
- ईमानदार बाप निकम्मा लगता है।
- दिवस कमजोर का मनाया जाता है।
- व्यस्त आदमी को अपना काम करने में जितनी अक्ल की जरूरत पड़ती है, उससे ज्यादा अक्ल बेकार आदमी को समय काटने में लगती है।
- जिनकी हैसियत है वे एक से ज्यादा बाप रखते हैं।
- आत्मविश्वास कई प्रकार का होता है, धन का, बल का, ज्ञान का । लेकिन मूर्खता का आत्मविश्वास सर्वोपरि होता है ।
- सबसे निरर्थक आंदोलन भ्रष्टाचार के विरोध का आंदोलन होता है।
- हमारे लोकतंत्र की यह ट्रेजेडी और कॉमेडी है कि कई लोग जिन्हें आजन्म जेलखाने में रहना चाहिए वे जिन्दगी भर संसद या विधानसभा में बैठते हैं ।
- धन उधार देकर समाज का शोषण करने वाले धनपति को जिस दिन महा जन कहा गया होगा, उस दिन ही मनुष्यता की हार हो गई ।
- हम मानसिक रूप से दोगले नहीं तिगले हैं ।
- फासिस्ट संगठन की विशेषता होती है कि दिमाग सिर्फ नेता के पास होता है, बाकी सब कार्यकर्ताओं के पास सिर्फ शरीर होता है ।
- बेइज्जती में अगर दूसरे को भी शामिल कर लो तो आधी इज्जत बच जाती है।
- जब शर्म की बात गर्व की बात बन जाए, तब समझो कि जनतंत्र बढिय़ा चल रहा है।
- जो पानी छानकर पीते हैं, वो आदमी का खून बिना छाने पी जाते हैं।
- सोचना एक रोग है, जो इस रोग से मुक्त हैं और स्वस्थ हैं, वे धन्य हैं।
- हीनता के रोग में किसी के अहित का इंजेक्शन बड़ा कारगर होता है।
- नारी-मुक्ति के इतिहास में यह वाक्य अमर रहेगा कि ‘एक की कमाई से पूरा नहीं पड़ता।’
- एक बार कचहरी चढ़ जाने के बाद सबसे बड़ा काम है, अपने ही वकील से अपनी रक्षा करना ।