क्या मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनेंगे ?
इंदौर, 6 जून 2024
सोशल मीडिया से लेकर चौक-चौपालों तक यह सवाल खासा चर्चा में है कि क्या मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनेंगे? इस सवाल का जवाब दोनों पक्षों को टटोलने पर दो तरह के तर्क सामने आए हैं । एक पक्ष में खड़े हुए लोग नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार यह कहते हुए नहीं मानते हैं कि जब भाजपा की जगह मोदी की गारंटी पर पूरा चुनाव लड़ा गया था, तब ऐसे में भाजपा को बहुमत न मिलना मोदी की गारंटी फेल होना ही है, लिहाजा एनडीए का नेतृत्व अब भाजपा को अपने हाथ में ले लेना चाहिए और जनादेश का संदेश समझते हुए मोदी की जगह किसी अन्य योग्य चेहरे को अवसर दिया जाना चाहिए। इस धड़े में भारतीय जनता पार्टी के ही कई नेता, पत्रकार और बुद्धिजीवी वर्ग शामिल है। अपनी इस राय के समर्थन में ये लोग यह भी कहते हैं कि आप गौर से देखिये, तो मोदी 3.0 यानि तीसरी बार मोदी के प्रधानमंत्री पद पर काबिज होने के लिए भाजपा को बहुमत नहीं मिलने का कारण भी स्वयं मोदी ही हैं। भाजपा को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाने वाले मोदी के ही भाषण रहे हैं। यह भी साफ है कि मोदी सत्ता की शक्ति, अपार धन-बल और तमाम संवैधानिक संस्थाओं को अपने चुनावी फायदे के लिए उपयोग करने के आरोपों से घिरे हुए हैं। बावजूद भाजपा को बहुमत न मिलना मोदी की नैतिक , तकनीकी हार है।
लोकप्रियता और अनुभव की वजह से मोदी 3.0 …!
उधर मोदी को ही प्रधानमंत्री पद पर बनाए रखने के पक्ष में शामिल नागरिकों का कहना है कि यह पूरी तरह भाजपा और एनडीए के घटक दलों का निर्णय है। अब तक जबकि भाजपा या एनडीए की ओर से मोदी को प्रधानमंत्री पद पर स्वीकार नहीं किए जाने को लेकर कोई स्पष्ट बयान नहीं आया है, तब उन्हें हटाये जाने का प्रश्न ही काल्पनिक है। वहीं कई लोगों का मानना है कि चुनावी परिणाम भाजपा के अनुरूप नहीं आने के बावजूद नरेंद्र मोदी को तीसरी बार भी अवसर मिलना चाहिए। भाजपा में फिलहाल उनसे ज्यादा लोकप्रिय और अनुभवी नेता कोई नहीं है।
मोदी-शाह की जोड़ी के लिए नई ज़िम्मेदारी आसान नहीं
Newso2 से चर्चा में कई राजनीति विज्ञानियों ने बताया कि फिलहाल मोदी-शाह के बगैर भाजपा की कल्पना करना भी मुश्किल है। बीते एक दशक में मोदी-शाह भाजपा की मातृ संस्था आरएसएस के बड़े पदों पर अपने ही कई समर्थकों को बैठा चुके हैं। ब्यूरोक्रेसी में भी मोदी-शाह को व्यक्तिगत रूप से प्रधानता देने वाले अफसरों की एक पूरी फौज है। राज्यों में फैला व्यापार हो, शासकीय ठेके हों, औद्योगिक हिस्सेदारी हो या अर्थव्यवस्था की आधार चल-अचल पूंजी हो। बीते एक दशक में मोदी- शाह व्यक्तिगत रूप से अपना वर्चस्व कायम कर चुके हैं। इतना ही नहीं भारतीय जनता पार्टी शासित कई राज्यों के डीजीपी, मुख्य सचिव भी प्रोटोकॉल से इतर मोदी-शाह के संपर्क में रहते हैं। ऐसे में संघ या स्वयं भाजपा के लिए भी इस जोड़ी के लिए नए सिरे से नई ज़िम्मेदारी तय करना आसान नहीं होगा।