इंदौर प्रशासन की ‘स्पेशल एनओसी’ – नियम आम जनता के लिए, वीवीआईपी के लिए बस इशारा काफी!

इंदौर में हनी सिंह के कंसर्ट को लेकर 48 घंटे से चल रहा ड्रामा अब क्लाइमैक्स पर पहुंच गया है। पर्दा उठ चुका है और सामने आया है सिस्टम का असली चेहरा—जहां नियम सिर्फ कागज़ों में हैं और फायर एनओसी जैसी चीज़ें ‘कामन मैन’ के लिए हैं, जबकि वीवीआईपी और खास आयोजकों के लिए ‘मुंह दिखाई एनओसी’ ही काफी है।

फायर एनओसी? कौनसी एनओसी?

जहां 20 हजार से ज्यादा लोग इकट्ठा हो रहे थे, वहां फायर एनओसी की जरूरत थी। लेकिन प्रशासन ने इसे शायद ‘ओल्ड फैशन’ मानकर नज़रअंदाज़ कर दिया। महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने जब इस गड़बड़ी पर सख्ती दिखाई, तब जाकर कुछ घंटों पहले आयोजकों को 50 लाख का नोटिस भेजा गया। यानी खेल कुछ ऐसा था—पहले कंसर्ट होने दो, फिर दिखावे के लिए नोटिस भेज दो।

पुलिस की ‘नाइट मंजूरी’—सुरक्षा भगवान भरोसे!

पुलिस ने आयोजन की मंजूरी तब दी, जब नगर निगम खुद फायर एनओसी देने को तैयार नहीं था। वाह रे प्रशासन!—दिन में नियम-कायदे और रात में ‘स्पेशल परमिशन’। इसका सीधा मतलब था—हजारों लोगों की जान पुलिस के भरोसे नहीं, बल्कि भगवान के भरोसे छोड़ दी गई!

निगम-पुलिस की ‘गुप्त मित्रता’ – टैक्स जाए भाड़ में, कंसर्ट होना चाहिए!

अब सवाल उठता है कि क्या पुलिस और नगर निगम में कोई तालमेल है? जवाब साफ है—हां, लेकिन सिर्फ वीवीआईपी मामलों में! आम नागरिक अगर बिना हेलमेट पकड़ा जाए, तो चालान कटता है। लेकिन जब बात लाखों-करोड़ों के इवेंट की हो, तो नियम अपने आप बदल जाते हैं।

  • फायर एनओसी गायब—कोई दिक्कत नहीं!
  • टैक्स न भरा हो—कोई दिक्कत नहीं!
  • सुरक्षा मानकों की धज्जियां उड़ रही हों—कोई दिक्कत नहीं!

वीवीआईपी के लिए ‘स्पेशल नियम’, जनता जाए तेल लेने!

इंदौर का प्रशासन फिर एक बार यह साबित करने में सफल रहा कि नियम सिर्फ आम लोगों के लिए बने हैं। वीवीआईपी आयोजनों में सब कुछ जायज़ है, बशर्ते ‘ऊपर से आदेश’ हो।

निगम का ‘ऑस्कर वर्थ’ प्रदर्शन – पहले अनदेखा करो, फिर नोटिस भेजो!

महापौर ने ‘कागजी कार्रवाई’ की औपचारिकता निभाते हुए आखिरी समय में 50 लाख का नोटिस भेजा, लेकिन इससे यह सवाल नहीं मिटता कि—
जब नियम पहले से थे, तो मंजूरी ही क्यों दी गई?

अब कौन होगा ज़िम्मेदार?

  • क्या पुलिस यह मानेगी कि उसने बिना फायर एनओसी मंजूरी देकर जनता को खतरे में डाला?
  • क्या नगर निगम यह मानेगा कि उसने टैक्स और नियमों की परवाह किए बिना इवेंट होने दिया?
  • क्या कोई अधिकारी जवाब देगा या फिर हमेशा की तरह मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा?

इंदौर प्रशासन का ‘मॉडर्न लोकतंत्र’ – सबकुछ बिकाऊ है, बस दाम सही होने चाहिए!

इस पूरे मामले ने यह साबित कर दिया है कि इंदौर में नियम-कानून सिर्फ आम जनता के लिए हैं। जब बात रसूखदारों की हो, तो प्रशासन खुद ‘मंच सजाने’ में लग जाता है। कंसर्ट हुआ, मजा आया, लेकिन एक बड़ा सवाल छोड़ गया—क्या इंदौर में नियमों का कोई मूल्य बचा है, या फिर ‘म्यूजिक’ के शोर में सबकुछ दब चुका है?

By Jitendra Singh Yadav

जितेंद्र सिंह यादव वरिष्ठ पत्रकार | आरटीआई कार्यकर्ता | राजनीतिक विश्लेषक 15+ वर्षों का पत्रकारिता अनुभव, UNI से जुड़े। Save Journalism Foundation व इंदौर वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन के संस्थापक। Indore Varta और NewsO2.com से जुड़े। निष्पक्ष पत्रकारिता व सामाजिक सरोकारों के लिए समर्पित।