दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत, भारत का ह्रदय राज्य यानि मध्य प्रदेश, इसी ह्रदय के स्वच्छ शहर इंदौर को सोमवार को गहरा आघात लगा है, यह आघात इतना गहरा रहा कि दुनिया में लोकतंत्र के पैरोकार द्रवित, चिंतित है। आज छलनी किये गए इसी शहर ने देश की पंद्रहवी लोकसभा को लोकसभा अध्यक्ष के रूप में सुमित्रा महाजन जैसा नेतृत्व दिया है। भाजपा पर यहां कि आवाम बीते 9 आम चुनावों से अपना विश्वास जताती रही है। बावजूद स्वस्थ लोकतंत्र के महापर्व 2024 के आम चुनाव में यहाँ भाजपा ने अपनी सभी मर्यादाओं को लांघकर कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति बम का नामांकन साम, दाम, दंड और भेद की नीति तले वापस करवा लिया है। 

भाजपा में जश्न, कांग्रेस में रुदन

भाजपा में जश्न, कांग्रेस में रुदन ने लोकतांत्रिक जनआकांक्षाओं का बेरहमी से कत्ल कर दिया । उस पर भी अठहास ऐसा कि भाजपा के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय लोकतांत्रिक मूल्यों के लाइव हरण का सकून प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, मध्य प्रदेश के सीएम डॉ मोहन यादव और प्रदेश भाजपा के मुखिया वी डी शर्मा के साथ साझा करते हुए नजर आए। आमतौर पर भारी भरकम उच्चस्तरीय सुरक्षा घेरे में महफूज चलने वाले विजयवर्गीय यहाँ लोकतंत्र का अपहरण कर स्वयं ही सारथी के रूप में कुटिल शक्ति प्रदर्शन करते नजर आए। दरअसल विजयवर्गीय उस कार को चला रहे थे जिस कार में नाम वापसी के बाद इंदौर लोक सभा के कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति बम सवार थे।

उधर, अपने ही गृहनगर इंदौर में धराशायी हुए कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी बेहद आक्रामक लेकिन पाशोपेश भरे तेवर में असंतुलित दिखाई दिये । दरअसल अपनी लुभावनी महत्वकांक्षाओं के चलते अक्षय कांति बम ने भाजपा का दामन थामा है । कांग्रेस नेता जीतू पटवारी समेत तमाम कांग्रेस के समर्थक, कार्यकर्ता और नेताओं का एक धड़ा जहां अक्षय बम पर दबाव डालकर उन्हें सत्तासीन भाजपा के समर्थन में नाम वापसी कराये जाने की सफाई देते रहे तो वहीं कांग्रेस का एक अन्य धड़ा अक्षय बम को फुस्सी बताकर तुरंत अशोभनीय टिप्पणी करने से भी बाज नहीं आया । इस बीच सबसे ज्यादा फजीहत में कांग्रेस के पटवारी दिखाई दिये क्योंकि बम को प्रत्याशी बनाने का श्रेय इससे पहले पटवारी कई बार सार्वजनिक सभाओं में ले चुके हैं । मसलन वे भी एक तरह से अक्षय बम का बचाव करते भाजपा को जिम्मेदार ठहराते नजर आए ।

प्रचारित गौरव समर्पण पर अतिक्रमण

दोनों पार्टियों की विचारधाराओं को अलग करना अनसुलझी पहेली !

इंदौर भाजपा और कांग्रेस का आम कार्यकर्ता दरअसल यह समझ ही नहीं पा रहा है, कि यह प्रचारित गौरव उसके ईमानदार समर्पण पर बार-बार होते अतिक्रमण का विस्तार ही है । अंतत: भाजपा में मिली कांग्रेस या कांग्रेस में मिली भाजपा अब दोनों पार्टियों की विचारधाराओं को अलग- अलग कर पाना मतदाताओं के लिये  एक अनसुलझी पहेली बनी रहेगी । तमाम सोशल मीडिया पोस्ट, आत्ममुग्धता से भरी तस्वीरें, अखबारों में मास्टर स्ट्रोक, कांग्रेस को झटका जैसी सुर्खियां एक-दो दिन खूब दोड़ेंगी । ब्रेन वॉश के इस खेल में घटनाक्रम होने के चार दिन पहले से ही षड्यंत्र रचयिताओं के करीबियों ने  इस अनहोनी के संकेत देना शुरू कर दिये थे  लेकिन तमाम चौंकन्नों (दोनों दल के नेताओं ) और जिम्मेदारों (केंचुआ) के लिए अब यह सब सूचनाएँ बेहद सामान्य और राजी-मर्जी का खेल बनकर रह गई हैं। लिहाजा संभलना और संभालना तो दूर किसी ने किसी को भनक तक नहीं लगने दी ।