इंदौर, 14 जनवरी 2025,(न्यूजओ2 डॉट कॉम)/7724038126: भोपाल त्रासदी के 40 साल पुराने यूनियन कार्बाइड के कचरे को पीथमपुर में अब जलाने को लेकर विरोध जारी है। कोर्ट में भी यह मामला चल रहा है। डेवलपमेंट फाऊंडेशन द्वारा जाल सभागृह में आयोजित चर्चा में शहर के प्रमुख बुद्धिजीवियों, कानूनविदों, पर्यावरण और जल संरक्षण पर कार्य कर रहे विशेषज्ञों, पीथमपुर औद्योगिक संगठन और श्रमिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने युनियन कार्बाइड के रासायनिक कचरे के पीथमपुर में निष्पादन पर विचार व्यक्त किए। विशेषज्ञों ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने केवल 10 टन कचरे को जलाने का आधार लिया है, जबकि यह कचरा संपूर्ण मात्रा का बहुत छोटा हिस्सा था।

यूनियन कार्बाइड कचरा जलाने से पूर्व नागरिकों को विश्वास में लेना जरूरी

विशेषज्ञों का मानना है कि कचरे की रासायनिक जांच के बारे में नागरिकों को विश्वास में नहीं लिया गया और गुपचुप तरीके से कचरा जलाने की कार्रवाई के कारण नागरिकों में असंतोष और नाराजगी उत्पन्न हुई है। सरकार को अगली कार्रवाई से पहले पारदर्शिता के साथ नागरिकों को विश्वास में लेना चाहिए। सबसे पहले साधारण और सामान्य भाषा में जानकारी दी जानी चाहिए। पीथमपुर और आसपास के क्षेत्रों में लाखों लोग रहते हैं, जिनमें मजदूरों और श्रमिकों की संख्या अधिक है। इन कर्मचारियों में असुरक्षा और भय की स्थिति है, जिसका समाधान जरूरी है।

बैठक में शामिल वुद्धिजीवियों ने कहा कि कचरा जलाने से पहले पीथमपुर, धार, महू और इन्दौर सहित आसपास के नागरिकों को विश्वास में लेना और उनके मन में उत्पन्न भय एवं आशंकाओं को दूर करना अत्यंत आवश्यक है। शासन ने जिस ताबड़तोड़ गति से यह प्रक्रिया शुरू की है, उससे नागरिकों में चिंता और असंतोष पैदा हुआ है, जिसका समाधान करना जरूरी है। यदि कचरा खतरनाक नहीं है, तो उसे 126 करोड़ रुपये खर्च कर यहां तक लाने की आवश्यकता नहीं थी।

यह सुझाव आए सामने

वक्ताओं ने सुझाव दिया कि कचरे की रासायनिक जांच पहले की गई थी, लेकिन अब एक नई और विस्तृत रासायनिक जांच करानी चाहिए, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर की किसी उन्नत लैब से कराया जा सकता है। इसके अलावा, कचरे में जहरीले तत्वों की उपस्थिति और उन्हें रासायनिक रूप से निष्क्रिय करने की प्रक्रिया पर वैज्ञानिक परामर्श लिया जाना चाहिए। कचरे के निष्पादन में उसी स्तर की सावधानी रखी जानी चाहिए जैसी न्यूक्लियर कचरे के निष्पादन में की जाती है। इसके साथ ही एक मानक अंतरराष्ट्रीय एजेंसी से पर्यावरण प्रभाव अध्ययन (EIA) कराए जाने का भी सुझाव दिया गया।

विशेषज्ञों ने इस बात पर भी जोर दिया कि पीथमपुर और आसपास के नागरिकों की चिंता को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। नागरिकों का मानना है कि वहां का पानी पीने योग्य नहीं है, और इसकी निष्पक्षता से जांच एवं समाधान की आवश्यकता है। इसके साथ ही, कचरा जलाने के बाद किसी भी प्रकार की दुर्घटना होने पर चिकित्सा और मेडिकल टेस्ट का प्रबंध भी किया जाना चाहिए। सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर कई भ्रामक जानकारियां भी फैल रही हैं, जिसका स्पष्टीकरण करना जरूरी है।

जल प्रदूषण की स्थिति को गंभीरता से लिया जाना चाहिए

जल विशेषज्ञों का कहना था कि जल प्रदूषण की स्थिति को गंभीरता से लिया जाना चाहिए, जबकि श्रमिकों ने यह माना कि समय रहते जागरूकता से कचरा यहां लाना टाला जा सकता था। चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि इस रासायनिक कचरे से कैंसर का प्रकोप बढ़ सकता है, जैसा कि भोपाल गैस दुर्घटना के बाद देखा गया था।

इस मुद्दे पर एक विशेषज्ञ समिति गठित की जा सकती है, जिसमें उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की अध्यक्षता हो, ताकि सभी समस्याओं का नए सिरे से समाधान किया जा सके। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि समस्या इतनी गंभीर नहीं है, लेकिन इसका वैज्ञानिक और तथ्यपरक समाधान आवश्यक है।

चर्चा में डॉ शरद पंडित, डॉ गौतम कोठारी, अभिनव धनोडकर, डॉ एसएस नैय्यर, श्याम सुंदर यादव, मुकेश चौहान, डॉ दिलीप वाघेला, डॉ ओ पी जोशी, श्रीमती एनी पंवार, सुनील व्यास, डॉ संदीप नारूलकर, डॉ शंकर लाल गर्ग, डॉ सलीम अख्तर, स्वप्निल व्यास सहित डेवलपमेंट फाउंडेशन के आलोक खरे, श्याम पांडे और राजेंद्र जैन ने भी भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन शफी शेख ने किया और अंत में रामेश्वर गुप्ता ने आभार व्यक्त किया।

By Neha Jain

नेहा जैन मध्यप्रदेश की जानी-मानी पत्रकार है। समाचार एजेंसी यूएनआई, हिंदुस्तान टाइम्स में लंबे समय सेवाएं दी है। सुश्री जैन इंदौर से प्रकाशित दैनिक पीपुल्स समाचार की संपादक रही है। इनकी कोविड-19 महामारी के दौरान की गई रिपोर्ट को देश और दुनिया ने सराहा। अपनी बेबाकी और तीखे सवालों के लिए वे विख्यात है। 

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