तीखे सवालों पर बिफरी सीतारमण बोलीं – ये सवाल हमसे नहीं कांग्रेस से पूछो
इंदौर
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नोटबंदी, जीएसटी, महंगाई, बेरोजगारी और कारपोरेट को फायदा पहुंचाने जैसे गंभीर आरोपों पर घिरी राज्य और केंद्र में सत्तासीन भाजपा के शीर्ष मंत्री और प्रवक्ता पत्रकार वार्ताओं में इन दिनों असहज नजर आ रहे हैं। इसी क्रम में आज देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाये जाने के प्रश्न हो या भाजपा द्वारा 80 करोड़ देशवासियों को अनाज दिये जाने का प्रलोभन हो। इसी तरह के सवाल पूछे जाने पर मंत्री सीतारमण पत्रकारों पर जहमत लगाती नजर आईं। उन्होने सवालों का जवाब देते हुए एक तरह से इन समस्याओं के लिए विपक्षी दल कांग्रेस को ही जिम्मेदार ठहराने का प्रयास किया। उन्होने चंद पत्रकारों द्वारा इन ज्वलंत मुद्दों पर पूछे गए सवालों के जवाब में कहा कि पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में नहीं लाये जाने के पीछे कांग्रेस जिम्मेदार है। कांग्रेस आम सभाओं में, चुनावी रैलियों में तो पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाये जाने का प्रचार करती है। जबकि कांग्रेस जीएसटी काउंसिल में पेट्रोल डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने का विरोध करती है। वित्त मंत्री ने दावा किया कि भाजपा तो शुरू से ही पेट्रोल डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने की पक्षधर रही है। लेकिन कांग्रेस के विरोध के चलते आज पेट्रोल डीजल जीएसटी के दायरे से बाहर है। उन्होने न्यूजओ2 के द्वारा यह सवाल पूछे जाने पर झल्लाते हुए कहा कि यह सवाल आपको कांग्रेस से पूछना चाहिए।
आपको बता दें कि पेट्रोल डीजल जैसी अति आवश्यक वस्तु पर मध्य प्रदेश में सर्वाधिक 50 फीसदी से अधिक टैक्सेस (taxes) वसूले जा रहे हैं। जबकि जीएसटी के दायरे में पेट्रोल डीजल को लाने पर अधिकतम 40 प्रतिशत ही टैक्स लगाया जा सकेगा। महंगाई दर बढ्ने के मुख्य कारणों में पेट्रोल डीजल की ऊंची कीमतों को माना जाता है। इसे जीएसटी के दायरे में लाकर पेट्रोल डीजल की कीमत 10 प्रतिशत से अधिक तक घटाई जा सकती है। जिसका लाभ देश के प्रत्येक नागरिक को होना लाज़मी है।
सियासत से जुदा है वास्तविकता
क्यों पेट्रोल- डीजल को जीएसटी के दायरे में नहीं लाया जा रहा है?
इस मामले में आर्थिक मामलों के जानकार और पेट्रोल डीजल व्यवसाय से जुड़े डीलर्स की माने तो पेट्रोल-डीजल पर मध्य प्रदेश सरकार वर्तमान में 30 रु प्रति लीटर से अधिक का वैट टैक्स और सेस वसूल रही है। इसी तरह केंद्र सरकार 19 प्रतिशत से ज्यादा उत्पाद शुल्क की वसूली कर रही है। सभी करों को जोड़कर पेट्रोल-डीजल के क्रय विक्रय से राज्य सरकार के खजाने में सबसे मोटा राजस्व अर्जित किया जाता है। पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने पर राज्य सरकार को मोटी कमाई का सीधा नुकसान होना तय है। मध्य प्रदेश की तरह देश के लगभग सभी राज्यों का जीएसटी लागू करने के बाद राजस्व प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुआ है। विभिन्न सेवाओं और वस्तुओं पर भारत सरकार को मिलने वाला कर जीएसटी लागू होने के बाद भारी मात्रा में कम हुआ है। उधर केंद्र सरकार ने जीएसटी लागू करने के साथ राज्य सरकारों से ये वादा तो किया था कि उनको होने वाले कर राजस्व के नुकसान की पूर्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाएगी लेकिन राज्यों को अब तक होने वाले नुकसान का समय –समय पर पूरा भुगतान करने में केंद्र सरकार अब तक उदासीन ही रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चार साल पहले कई राज्य सरकारें केंद्र के इस रवैये के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय की शरण लेने का मन भी मना चुकी थीं। लेकिन इस मामले का अब तक उचित निराकरण नहीं हो सका है। यह भी तथ्य है कि भाजपा ही नहीं कांग्रेस शासित राज्य भी पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाये जाने की मांग अब तक मुखर होकर नहीं की है।