इंदौर हाई कोर्ट ने कांग्रेस नेता मोती सिंह पटेल की याचिका की खारिज

फॉर्म पर 10 प्रस्तावकों के हस्ताक्षर नहीं थे

इंदौर

मध्य प्रदेश के इंदौर में सोमवार को हुए अनैतिक राजनीतिक घटनाक्रम के बाद मंगलवार को इंदौर हाई कोर्ट में कांग्रेस नेता मोती सिंह पटेल की उस याचिका की सुनवाई हुई जिसमें उन्होने कांग्रेस का वैकल्पिक उम्मीदवार होने के नाते उन्हें अधिकृत प्रत्याशी मानकर चुनाव लड़ने और पार्टी का अधिकृत चुनाव चिन्ह देने की मांग की थी। जज विवेक रुसिया की पीठ ने पटेल की याचिका को खारिज कर दिया है।

कोर्ट ने दोनों पक्षों के तर्कों को सुनते हुए याचिकाकर्ता से कहा कि उनका नामांकन फार्म बीती 26 अप्रैल को स्क्रूटनी में ही खारिज हो गया है और उन्होने खारिज होने के तीन दिन बाद 29 अप्रैल को याचिका लगाई है लिहाजा कोर्ट उन्हें राहत नहीं दे सकता है। कोर्ट ने पटेल को हिदायद दी कि वे पृथक से चुनाव याचिका दाखिल कर चुनौती दे सकते हैं।

10 प्रस्तावकों के हस्ताक्षर (Sign) हैं अनिवार्य  

चुनाव आयोग ने कोर्ट को बताया कि बतौर वैकल्पिक (substitute candidate) या निर्दलीय उम्मीदवार नामांकन फॉर्म के साथ भाग 2 पर 10 प्रस्तावकों के हस्ताक्षर होना अनिवार्य है जो पटेल के फॉर्म पर नहीं थे। इस पर पटेल के अधिवक्ता विभोर खंडेलवाल ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के सेक्शन 36 के सब सेक्शन (5) का हवाला देते हुए कोर्ट को बताया कि रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा याचिकाकर्ता को एक दिन का समय देकर 10 प्रस्तावकों के हस्ताक्षर लिए जा सकते हैं। रिटर्निंग ऑफिसर के अधिवक्ता द्वारा बताया गया कि नियम अनुसार स्क्रूटनी में फॉर्म खारिज होने के बाद याचिकाकर्ता को आपत्ति दर्ज कर समय मांगना चाहिए था जो उन्होने नहीं मांगा लिहाजा उनका फॉर्म खारिज हो गया।   

क्या है मामला ?

मोती सिंह पटेल ने पार्टी के फॉर्म बी के आधार पर कांग्रेस के पूर्व प्रत्याशी अक्षय बम के साथ नामांकन फॉर्म आखिरी दिन 24 अप्रैल को भरा था। जिसमें अक्षय कांग्रेस के स्वीकृत प्रत्याशी और पटेल substitute candidate थे। यदि किसी कारण वश बम का फॉर्म खारिज होता तो पटेल कांग्रेस प्रत्याशी बतौर चुनाव लड़ सकते थे लेकिन 26 अप्रैल को स्क्रूटनी में पटेल का नामांकन फॉर्म रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि उसमें 10 प्रस्तावकों के साइन नहीं थे। इसके बावजूद पटेल ने रिटर्निंग ऑफिसर के समक्ष आपत्ति दर्ज नहीं करवाई। पटेल के मुताबिक तब तक बम अधिकृत प्रत्याशी घोषित हो चुके थे। लेकिन मामले ने नया मोड़ तब लिया जब फॉर्म वापसी के आखिरी दिन 29 अप्रैल को अक्षय बम अपना नामांकन वापस लेकर कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गएhttps://newso2.com/indore-lok-sabha-congress-candidate-akshay-kant-bham-joins-bjp। इसके बाद तुरंत पटेल ने रिप्रेजेंटेशन चुनाव आयोग को दिया, सुनवाई नहीं होने पर कोर्ट का रुख किया। कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।

ट्रेन में टिकट के उदाहरण से समझाया कोर्ट ने

कोर्ट ने याचिकाकर्ता को समझाते हुए कहा कि यदि ट्रेन में टिकट वेटिंग लिस्ट की है और वह कंफर्म नहीं होती है तो फिर टिकट स्वत: निरस्त (cancel) हो जाती है । ऐसे में जो भी यात्री है, उन्हें जनरल टिकट लेकर चलना होता है। यदि वेटिंग क्लियर नहीं हुई और कोई टिकट भी नहीं हुआ तो आप without ticket में आ जाओगे, इसी तरह आप अब मैदान से बाहर हो गए हो। कोर्ट ने कहा आपको 26 अप्रैल को स्क्रूटनी के बाद आपत्ति लेनी थी और 10 प्रस्तावकों के हस्ताक्षर करवाकर 29 अप्रैल तक अपना फॉर्म ज़िंदा रखना था, तब मूल प्रत्याशी के नाम वापसी के बाद आपका अधिकार पैदा होता। कोर्ट ने याचिका को गलत मानते हुए उसे खारिज कर दिया ।

अब क्या करेगी कांग्रेस ?

कांग्रेस के पास अब सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प है। कांग्रेस एक पृथक चुनाव याचिका लगाकर सर्वोच्च न्यायालय का दरबाजा खटखटा सकती है। उल्लेखनीय है इंदौर में मतदान 13 मई को है और कांग्रेस प्रत्याशी विहीन हो गई है।