सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार के दमनकारी कदमों पर रोक लगाई
इंदौर
देश के सर्वोच्च न्यायालय (supreme court) ने बीते कुछ महीनों में भाजपा नीत मोदी सरकार के ऐसे कई फैसलों को पलटते हुए एतिहासिक फैसले (Landmark Judgment) दिये हैं, जो भारतीय संविधान के तहत प्रद्द्त अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, मूल भूत अधिकारों के हनन के सीधे मामले थे। कोर्ट ने इन मामलों में सरकार और केंद्रीय जांच एजेंसियों को फटकार भी लगाई है । देश में लोक सभा चुनाव के दौरान ‘तानाशाही सरकार’ के गूँजते नारों के बीच यह फैसले नजीर बने हैं। सर्वोच्च न्यायालय के इन फैसलों पर बुद्धिजीवियों का कहना है कि अभी लोकतंत्र जिंदा है। आइए आपको बताते हैं हाल ही में आए देश के सुप्रीम कोर्ट के एतिहासिक फैसलों के बारे में:-
फरवरी 2024 – इलेक्ट्रोरल बॉन्ड (चुनावी चंदा) असंवैधानिक
सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी 2024 को एक याचिका की सुनवाई करते हुए कहा इलेक्ट्रोरल बॉन्ड (चुनावी चंदा) असंवैधानिक है । यह सूचना का अधिकार ( Right To Information) तथा संविधान के आर्टिकल 19 (1) (a) (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार) का उल्लंघन है । पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने आयकर अधिनियम और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में किए गए संशोधनों को भी रद्द कर दिया, जिन्होंने दान को गुमनाम बना दिया था । सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को चुनावी चंदा देने वालों के नाम, कितना चंदा दिया और किसको दिया, जैसी जानकारी सार्वजनिक करनी पड़ी थी । दरअसल सुप्रीम कोर्ट चुनावी सुधार के लिए काम कर रही गैर सरकारी संस्था एडीआर की याचिका पर कोर्ट ने सुनवाई की थी । एडीआर के अनुसार इलेक्ट्रोरल बॉन्ड भारतीय राजनीति और व्यवस्था पर बहुत बड़ा धब्बा था और इससे काले धन को बढ़ावा मिल रहा था । बड़े औधोगिक घराने सत्ताधारी पार्टियों को बेहिसाब चंदा दे रहे थे और सत्तासीन पार्टियां उनके हित में काम कर रही थीं।
मई 2024- न्यूज़क्लिक के फाउंडर की गिरफ्तारी गैर कानूनी
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार 15 मई 2024 को कहा कि डिजिटल मीडिया संस्थान न्यूज़क्लिक के फाउंडर प्रबीर पुरकायस्थ की गिरफ्तारी और रिमांड गैर कानूनी है । बिना कारण बताए किसी को इस तरह गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है । पुरकायस्थ 8 महीने से अधिक समय से जेल में रहे हैं। उन पर 17 अगस्त 2023 को गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत स्पेशल सेल, दिल्ली द्वारा केस दर्ज किया गया था । उन्हें 3 अक्टूबर 2023 को गिरफ्तार किया गया था। उन पर उन पर चीन से फंड लेकर भारत के खिलाफ प्रोपागांडा फैलाने का आरोप था। केंद्रीय जांच एजेंसियों द्वारा की गई इस कार्रवाई को जानकारी लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ ‘प्रेस’ पर हमला करार दिया है । https://newso2.com/supreme-court-declares-newsclick-founder-arrest-as-unlawful
मई 2024 – ला कॉलेज के प्रिंसिपल पर दर्ज एफआईआर बेतुकी
सुप्रीम कोर्ट ने 14 मई 2024 को एतिहासिक निर्णय देते हुए इंदौर में शासकीय नवीन विधि महाविध्यालय के प्राचार्य डॉ. इनामुर्रहमान पर दिसंबर 2022 में दर्ज हुई एफआईआर को बेतुकी (absurd) कहते हुए उसे रद्द कर दिया है । कोर्ट ने मप्र शासन और हाई कोर्ट को भी आड़े हाथों लेते हुए टिप्पणी की है कि ऐसा लगता है याची को परेशान करने में किसी की दिलचस्पी है ? यह उत्पीड़न का मामला लगता है!
उल्लेखनीय है 38 वर्ष से अधिक से शिक्षण कार्य में पारंगत और अनुभवी डॉ इनामुर्रहमान के साथ अन्य 3 लोगों पर अखिल भारतीय विध्यार्थी परिषद के एक छात्र नेता की शिकायत पर मप्र शासन के हस्तक्षेप के बाद एफआईआर दर्ज की गई थी । डॉ रहमान पर हिंदुफ़ोबिया फैलाने के आरोप लगे थे । दरअसल ला कॉलेज की लाइब्रेरी में ‘‘सामूहिक हिंसा एवं दांडिक न्याय पद्धति” के शीर्षक वाली पुस्तक पाई गई थी, जिस पर एबीवीपी छात्रों ने हँगामा किया था। जिसके बाद किताब की लेखिका डॉ. फरहत खान के घर इंदौर पुलिस ने दबिश धी। इंदौर हाई कोर्ट से प्राचार्य और इसी मामले में सह आरोपी एक असिस्टेंट प्रोफेसर की जमानत याचिका खारिज हो गई थी, जिसके बाद वे सुप्रीम कोर्ट गए । सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर को बेतुका कहते हुए एफआईआर और आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी है।https://newso2.com/supreme-court-quashes-fir-against-indore-college-principal
मार्च 2024 – फ़ैक्ट चेक यूनिट पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक
सुप्रीम कोर्ट ने बीते मार्च माह में केंद्र सरकार की फैक चेक यूनिट पर भी रोक लगाई है । केंद्र सरकार ने इंटरमीडियरी गाइडलाइन और डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड रूल्स, 2021 में संसोधन करके पीआईबी (प्रेस इन्फोर्मेशन ब्यूरो) के माध्यम से फ़ैक्ट चेक यूनिट के गठन का नोटिफिकेशन जारी किया था, जिसका उद्देश्य सोशल मीडिया पर केंद्र सरकार के खिलाफ वायरल हो रही भ्रामक , फर्जी खबरों की पहचान पर उन्हें प्रतिबंधित करना था । इस मामले में स्टैंड अप कोमेडियन कुणाल कामरा और एडिटर्स की संस्था एडिटर्स गिल्ड ने बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी । याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि केंद्र सरकार का टूल होगा जो सिर्फ उन्हीं खबरों को जनता तक पहुंचाएगी जो वह चाहती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा यह यूनिट अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ है।