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प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी ने तोड़ा भाजपा का प्रोटोकॉल ?

इंदौर, 6 जून 2024

लोकसभा चुनाव 2024 का परिणाम भले ही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और जादुई आंकड़े से पार पाते हुए गठबंधन की सरकार बनाने जा रहा है। चुनाव परिणाम के चलते एनडीए की सरकार का रास्ता साफ है लेकिन इस परिणाम से ये भी स्पष्ट है कि इस चुनाव में भाजपा ने भले ही 240  सीटें हासिल की हों, एनडीए ने 293 सीट पर जीत का परचम लहराया हो लेकिन ‘मोदी की गारंटी,’ ‘अबकी बार 400 पार’ जैसे वन मैन आर्मी के रूप में समूचे एनडीए की ओर से हर सीट पर खड़े नरेंद्र मोदी को जनादेश ने नकार दिया है।

समर्थन हासिल करने का रचा खेल

जनता ने साफ कहा कि मोदी उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार नहीं है। अब यहाँ से सबक लेने की जगह नरेंद्र मोदी ने जिस तरह पहले भाजपा से ऊपर स्वयं को रख कर मनमानी का जो दौर शुरू किया था, आज उसी की परिणीति है कि डगमग बैसाखियों के सहारे एक बार फिर मोदी, प्रधानमंत्री पद पर बने रहने की कवायद में जुट गए हैं। इतना ही नहीं खिसकती प्रधानमंत्री की कुर्सी देखकर नरेंद्र मोदी, अमित शाह इस कदर बैचेन हुए कि इन्होने भाजपा का प्रोटोकॉल तोड़ने से भी गुरेज नहीं किया है और पार्टी की बैठक बुलाने से पहले एनडीए की बैठक बुलाकर स्वयं को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बताकर समर्थन हासिल करने का खेल रच दिया।

भाजपा की ये रही है परंपरा …..

भारतीय जनता पार्टी को लंबे समय से कवर करने वाले जानकारों की मानें तो यह भाजपा की संवैधानिक परंपरा के खिलाफ है। दरअसल चुनाव परिणाम आने के बाद पहले पार्टी बैठक फिर चुने हुए सांसदों द्वारा नेता सदन चुने जाने की परंपरा है। इसके बाद घटक दलों का समर्थन जुटा कर घटक दलों के सामने प्रधानमंत्री पद पर चयन की परंपरा रही है लेकिन कहते हैं न, हाथ से छूटती सत्ता गुब्बारे की हवा की तरह हासिल की गई लोकप्रियता निकल जाने के बाद मोदी-शाह में मची छटपटाहट और अनेक गहरे स्याह रंग दिखाएगी। विश्वसनीय पार्टी सूत्रों की माने तो मोदी-शाह हर हाल में भाजपा के बूते पूर्ण बहुमत हासिल करने के लिए हॉर्स ट्रेडिंग करने से भी नहीं चूकेंगे। इतना समझ लीजिये, लोकतन्त्र को अभी कई कसौटियों से गुजरना बाकी है।

नायडू – नीतीश सभापति पद के लिए क्यों अड़े हैं ?

परिणाम सामने आते ही कयास लगाए जाने लगे कि तेलगु देशम (टीडीपी) के मुखिया चंद्रबाबू नायडू अपनी 16 सीटों के साथ तो जनता दल यूनाटेड के मुखिया नीतीश कुमार अपनी 12 सीटों के साथ, सत्ता में कौन होगा, यह तय करेंगे। इस बीच कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन ने साफ कर दिया कि फिलहाल वे सत्ता की दौड़ से बाहर हैं। ऐसे में अब यह साफ हो गया है कि नीतीश और चंद्रबाबू एनडीए के साथ रहकर सरकार में रहेंगे । दरअसल नायडू और नीतीश दोनों जानते हैं कि मोदी और शाह ने किस तरह पिछले एक दशक में क्षेत्रीय और छोटी पार्टियों का अस्तित्व या तो खत्म कर दिया या फिर पार्टियों को दो फाड़ कर दिया। महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी का दो फाड़ होना और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार का गिरना ऐसे कई ज्वलंत उदाहरण हैं। यही वजह है किनीतीश और नायडू लोकसभा का महत्वपूर्ण सभापति पद अपने पास रखना चाहते हैं। दरअसल भाजपा के पास लोकसभा के सभापति पद का नहीं होना, एनडीए के घटक दलों की सुरक्षा की गारंटी है।