‘फूड या फ्यूल?’ — डॉ. डेविश जैन ने उठाया बड़ा सवाल, बोले- “भारत के लिए प्राथमिकता भोजन सुरक्षा होनी चाहिए”
इंदौर। देश जब ‘फ्यूल सिक्योरिटी’ की दिशा में बढ़ रहा है और बायोफ्यूल फसलों का ट्रेंड तेजी से उभर रहा है, तब सोयाबीन उत्पादकों के सामने एक नई चिंता खड़ी हो गई है। संवाददाता सम्मेलन में इस सवाल पर सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SOPA) के चेयरमैन डॉ. डेविश जैन ने स्पष्ट कहा — हिंदुस्तान 1.45 अरब की आबादी वाला देश है। ऐसे में सबसे पहले सवाल उठता है — फूड या फ्यूल? प्राथमिकता किसे दें? हमारा जवाब साफ है, पहले भोजन। जब तक हम अपनी थाली भरना नहीं सीखेंगे, ईंधन के नाम पर संसाधन जलाना खतरनाक होगा।
डॉ. जैन ने कहा कि आज देश में मक्का और धान जैसी खाद्य फसलों से इथेनॉल बनाया जा रहा है, जबकि खाद्य तेलों से बायो-डीज़ल तैयार किया जा रहा है। यह बड़ा विरोधाभास है। उन्होंने DGES जैसे बाय-प्रोडक्ट्स पर भी चिंता जताई, जिन्हें उन्होंने “नेप्रोटॉक्सिन और मानव स्वास्थ्य के लिए घातक” बताया। उन्होने कहा कि पॉल्ट्री और एक्वा कल्चर फीड में ऐसे उत्पादों का उपयोग बिल्कुल नहीं होना चाहिए।
भविष्य में सोयाबीन के रकबे को लेकर पूछे गए प्रश्न पर डॉ जैन ने कहा कि सोयाबीन के तेल से बायो-डीज़ल बनाना तकनीकी रूप से संभव है, लेकिन नीति-निर्माताओं को पहले इसकी फूड वैल्यू पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने आगाह किया कि अमेरिका से कॉर्न (मक्का) आयात कर एथेनॉल बनाने की चर्चाएँ चल रही हैं — “यह बीटी (GM) कॉर्न है। अगर यह भारत आया तो क्या गारंटी है कि वो सिर्फ एथेनॉल यूनिट्स में ही जाएगा, और देश की फीड इंडस्ट्री में नहीं पहुँचेगा?”
डॉ जैन ने कहा कि देश की आधी आबादी कृषि पर निर्भर है। यदि यहाँ के लोग कृषि से विमुख हो जाएँ तो कल्पना कीजिये कि उनके लिए रोजगार का क्या साधन होगा? अभी कृषि ने लोगों को स्व रोजगार तो दे रखा है, क्या आप इतना बड़ा रोजगार दे सकेंगे ? अपने पास ऐसा कोई विजन अभी नहीं है। नई जनरेशन तो और इतनी मेहनत का काम नहीं करना चाहती। बड़ा चैलेंज सामने दिख रहा है। अभी तकनीक से production और productivity बढ़ाने की जरूरत है। देश की खाद्य आत्मनिर्भरता की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। “जो चीज हम खुद उत्पादन कर रहे हैं, उसका आयात नहीं होना चाहिए। भले ही थोड़ा महंगा भोजन खाएँ, पर अपने उत्पाद को प्राथमिकता दें। यही असली आत्मनिर्भरता है।
